गर्मियों में जब अचानक से बिजली चली जाती थी तो हम बच्चे ये देखकर आश्चर्य से भर जाते थे कि कैसे एक बड़े से बक्से की मदद से घर के बड़े बिजली का पंखा चल जाता था। ये तो हमें बहुत बाद में समझ आया कि ये बक्से असल में कुछ और नहीं बल्कि बिजली संग्रहित करने वाली बैटरी थीं जो बिजली चले जाने पर लाइटें और पंखे चलाने में काम आती थीं। बस इनमें इतनी कमी थी कि ये बक्से सिर्फ़ घर जैसी छोटी जगहों पर ही काम करते थे।
फिर, 2017 में ऑस्ट्रेलिया ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। यह दुनिया का पहला देश बना जिसने दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के हॉर्न्सडेल नामक शहर में एक बड़ा बैटरी भंडारण संयंत्र शुरू किया। यह संयंत्र नवीकरणीय ऊर्जा को बड़े पैमाने पर संग्रहित करता था और ज़रूरत पड़ने पर उसे ग्रिड में भेजता था। वर्तमान में, ऐसे कार्यक्रम पर्यावरण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं जो सभी देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल में सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
जब ऑस्ट्रेलिया ने यह कार्यक्रम शुरू किया था, उसी दौरान विश्व बैंक भी अक्षय ऊर्जा पर आधारित कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए भारत की सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SECI) कंपनी के साथ मिलकर काम कर रहा था। विश्व बैंक के नेतृत्व वाला यह कार्यक्रम अपने आखिरी चरण में था और इसे व्यावसायिक रूप से लागू किया जा सकता था।
इस पहल के परिणामस्वरूप भारत में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार बैटरी ऊर्जा भंडारण सुविधा (BESS) की स्थापना की गई। इसे भारत के पूर्वी राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगाओं में 100 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र के साथ स्थापित किया गया। इसकी क्षमता 40 मेगावाट की है जो तीन घंटे तक सौर ऊर्जा को संग्रहित कर सकती है। हालांकि यह भारत के सौर ऊर्जा लक्ष्यों के हिसाब से एक बहुत छोटी उपलब्धि है लेकिन फिर भी यह कई मायनों में ऐतिहासिक है क्योंकि यह अब तक की सबसे बड़ी बैटरी भंडारण सुविधा है जो किसी सौर संयंत्र के साथ स्थित है।
भारत में इस तरह की यह पहली परियोजना थी। इसने बैटरी स्टोरेज सिस्टम में व्यापारिक निवेश का रास्ता खोल दिया। इसके बाद बाजार में तेजी आई। 2018 से 2025 के बीच SECI और दूसरी संस्थाओं ने कुल मिलाकर करीब 38 गीगावॉट-घंटा (GWh) क्षमता के बैटरी स्टोरेज सिस्टम के टेंडर जारी किए। यह छत्तीसगढ़ की बैटरी सुविधा से 300 गुना ज्यादा है। सिर्फ साल 2024 में ही इतने टेंडर निकाले गए, जितने पिछले पाँच सालों में भी नहीं निकले थे। 2024 में बैटरी स्टोरेज के लिए छह गुना ज्यादा टेंडर जारी किए गए।
यह सुविधा छत्तीसगढ़ के लिए एक बड़ी कामयाबी है। यह वही राज्य है जो अब तक बिजली बनाने के लिए ज़्यादातर कोयले पर निर्भर था। अब, इस बैटरी स्टोरेज सुविधा की वजह से वहां सौर ऊर्जा को संजोकर रखा जा सकता है। इसका सीधा फायदा लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा। सूरज ढलने के बाद भी घर, स्कूल, अस्पताल और दुकानें रोशन रह सकेंगी। इससे आम लोगों के जीवन की गुणवत्ता बेहतर होगी।
अब छत्तीसगढ़ के पॉवर ग्रिड में सौर ऊर्जा भी शामिल है। इसके कारण जब शाम के वक्त बिजली की सबसे ज्यादा मांग होती है, उस दौरान लोगों को बहुत कम कीमत पर स्वच्छ ऊर्जा पर आधारित बिजली की आपूर्ति की जा रही है। इससे हर साल करीब 1.7 लाख टन कार्बन उत्सर्जन भी कम हुआ है। इसने राज्य को स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद की है।
फरवरी 2025 तक इस नए बैटरी भंडारण संयंत्र को शुरू हुए एक साल पूरे हो गए थे। अब यह सुविधा अगले 25 सालों तक चलती रहेगी। इससे आने वाले समय में बैटरी तकनीक को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह भारत के 2030 तक गैर-कोयला आधारित संयंत्रों के जरिए 500 गीगावॉट के लक्ष्य को पूरा करने में भी सहयोग करेगी।
कार्यक्रम की सफ़लता का राज
इस परियोजना से हमें पता चला कि भारत में किसी भी नए कार्यक्रम को सफ़ल बनाने के लिए सभी का मिलकर काम करना, नए तरीके अपनाना और आवश्यकता के हिसाब से कार्यक्रम में बदलाव करना ज़रूरी है।
- नियमित परामर्श: इस परियोजना में विश्व बैंक ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोगों के साथ मिलकर परामर्श और काम किया। इससे इस कार्यक्रम को आसानी से पूरा करने में मदद मिली। साथ ही सरकारों से भी अच्छा सहयोग मिला।
- पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव: यह सुविधा 450 एकड़ बंजर ज़मीन पर बनाई गई। SECI ने कार्यक्रम के लिए भूमि अधिग्रहण करने के दौरान इस बात का ख़ास ध्यान रखा कि इसके लिए कोई ऐसी ज़मीन न ली जाए जिससे गांव के लोगों को जंगल, पानी या खेती के साधनों से दूर होना पड़े या उनकी रोज़ी-रोटी पर असर पड़े। इस सोच से गांव के लोगों का भरोसा भी बना रहा, भले ही ज़मीन कम मिल पाई।
- मानकों को तय करना: भारत में बैटरी भंडारण से जुड़ी इस तरह की बड़ी परियोजनाएं अपने शुरुआती दौर में है। इसलिए SECI बैटरी निर्माता कंपनियों और जांच एजेंसियों के साथ मिलकर निर्माण और सुरक्षा से जुड़े कई मानक तय किए। इससे आगे की परियोजनाओं में मदद मिलेगी।
- वैश्विक संपर्क स्थापित करना: SECI ने इस क्षेत्र में दुनिया भर की सभी बड़ी कंपनियों से बात की। ये प्रक्रिया तीन चरणों में हुई। इससे बैटरी निर्माण से जुड़े बाज़ार को समझने में मदद तो मिली ही, इसके अलावा जब इस परियोजना के लिए टेंडर निकाला गया और कंपनियों को बोली के लिए आमंत्रित किया गया तो उसमें कई नामी कंपनियों ने हिस्सा लिया और एक अच्छी प्रतियोगिता हुई।
- कार्यक्रम का तकनीकी पक्ष: क्योंकि यह भारत में इस तरह की पहली परियोजना थी, इसलिए SECI ने यह शर्त रखी कि जो भी कंपनी बोली जीतेगी वह उसे इस क्षेत्र से जुड़ी सभी तकनीकी को सिखाने का जिम्मा लेगी, जिसमें परियोजना की स्थापना, उसके संचालन और अगले दस साल तक रखरखाव से जुड़ी जानकारियां शामिल हैं।
- प्रदर्शन के आधार पर भुगतान: कार्यक्रम का कार्यान्वयन बेहतर ढंग से हो इसके लिए यह तय किया गया कि कंपनियों को उनके प्रदर्शन यानी काम की गुणवत्ता के आधार पर ही पैसा दिया जायेगा। शुरू में ही यह स्पष्ट कर दिया गया कि इस कार्यक्रम से जुड़ी तकनीकी आवश्यकताएं क्या-क्या हैं, और उनसे क्या उम्मीदें हैं।
- वित्तीय सहायता और कार्यक्रम की रूपरेखा: इस परियोजना के लिए क्लीन टेक्नोलॉजी फंड (CTF) से 80 लाख डॉलर की मदद मिली। जिससे परियोजना पर होने वाले कुल खर्च में कमी आई। साथ ही, परियोजना को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया ताकि उसके संचालन और कामकाज को आसान और बेहतर बनाया जा सके। इससे इस परियोजना को व्यावसायिक रूप से लाभकारी बनाने में भी मदद मिली।
अब अगर हम उन पुराने 'जादुई बक्सों' को याद करते हैं तो छत्तीसगढ़ की यह नई पहल एक बड़ी उपलब्धि लगती है। यह स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदमों की दिशा का मील का पत्थर बन गई है। आने वाले समय में इस परियोजना से मिली सीख केवल भारत के ही नहीं पूरी दुनिया के काम आयेगी।
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