2015 में, भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' पहल की शुरुआत की ताकि लैंगिक असमानता को दूर करते हुए लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके| इस पहल के कई सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए, जिसमें स्कूलों में पंजीकृत लड़कियों की संख्या में उछाल आना और जन्म पर लिंगानुपात में सुधार आना शामिल है।
लेकिन ऐसी सफलताओं के बावजूद, लिंग समानता के लिए भारत का संघर्ष एक जटिल मुद्दा है, जिस पर अभी तक पूरी तरह से ध्यान दिया जाना बाकी है| विश्व आर्थिक मंच के हालिया ग्लोबल जेंडर गैप रैंकिंग के अनुसार, भारत 146 देशों में से 135वें स्थान पर है| जिससे साफ़ तौर पर पता चलता है कि इस चुनौती को हल करने के लिए अभी भी काफी प्रयास की आवश्यकता है।
इसलिए, भारत की बेटियों को बचाने और उन्हें पढ़ाने के साथ-साथ उनका कमाना भी बहुत ज़रूरी है| इस तीसरे पहलू, जिसे 'बेटी कमाओ' का नाम दिया जा सकता है, का अर्थ है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और उन्हें देश के भीतर एक उद्यमी और रोज़गार प्रदाता के रूप में बढ़ावा देना।
महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना आर्थिक प्राथमिकता है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होगा| वर्तमान में भारत में 137- 147 लाख महिला व्यवसायी हैं, यानी भारत के 20 प्रतिशत उद्यम महिलाओं द्वारा नियंत्रित हैं। एक उचित माहौल और राज्य का समर्थन मिलने से ऐसे उद्यमों की संख्या, उनकी पहुंच और स्थायित्व में प्रभावी वृद्धि दर्ज की जा सकती है, और लगभग 17 करोड़ नौकरियां पैदा की जा सकती हैं| यह संख्या 2030 तक भारत में पैदा होने वाली नई नौकरियों की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है।
इस स्थिति तक पहुंचने के लिए, सूक्ष्म (माइक्रो) स्तर की महिला उद्यमियों को अपने व्यवसायों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने, बड़े बाजारों तक पहुंचने और वित्त तक आसान पहुंच रखने की आवश्यकता होगी।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, विश्व बैंक ने बेटी नामक एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, जिसका पूरा नाम बिजनेस एंटरप्राइज टेक्नोलॉजी फॉर इंडियन वूमेन (भारतीय महिलाओं के लिए व्यावसायिक उद्यम प्रौद्योगिकी) है। इसके लिए वह सेवा (सेल्फ एंप्लॉयड विमेंस एसोसिएशन) के साथ मिलकर काम कर रहा है| सेवा असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का एक संघ है, जो दुनिया के कुछ सबसे बड़े संगठनों में से एक है, जिसका लक्ष्य स्वरोजगार में लगी निम्न आय वर्ग की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है।
गुजरात के चार जिलों - मेहसाणा, अहमदाबाद, आनंद और बोडेली - में चल रही इस पायलट परियोजना का मकसद है कि वह मोबाइल आधारित कुछ ऐसे उपकरणों का पता लगा सके, जो इन महिलाओं को बहीखाता बनाने, भंडार और ऋण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और अपने उत्पादों की बिक्री हेतु उन्हें व्यवस्थित ढंग से सूचीबद्ध करने में मददगार सिद्ध हो।
चूंकि कई सूक्ष्म स्तर की महिला उद्यमी डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं, इसलिए इस परियोजना का एक और मकसद उन रणनीतियों का पता लगाना है, जो उन्हें इन उपकरणों को अपनाने में सहायता प्रदान कर सके। इन रणनीतियों में डिजिटल उपकरणों के संचालन संबंधी पाठ्यक्रमों का निर्माण, सहकर्मियों के बीच आपसी अनुभवों का आदान-प्रदान और एक-दूसरे की मदद करने के लिए एक नेटवर्क बनाने संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
हालांकि इस परियोजना के परिणाम आने अभी बाकी हैं, लेकिन इनमें भाग लेने वाली महिलाएं काफ़ी उत्साहित हैं क्योंकि इसके ज़रिए उन्हें राजस्व, लागत और मुनाफे जैसी बुनियादी व्यावसायिक अवधारणाओं की बेहतर समझ मिली है।
अहमदाबाद जिले की अमीना बेन, जो एक कपड़ा व्यवसायी हैं, का कहना है कि इन उपकरणों की मदद से वह अपनी आय और व्यय पर नज़र रख पा रही हैं। वह बताती हैं, "इससे पहले मैं ये काम नहीं करती थी। अब मैं उन खर्चों को काबू करने में सक्षम हूं, जिन्हें मैं पहले अनदेखा करती थी| इसके कारण मुझे अपने व्यवसाय की स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलती है। ”
फिर भी, इस परियोजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। छोटे-स्तर की कई महिला कारोबारियों तक स्मार्टफोन की पहुंच नहीं है, जबकि कई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें नई तकनीकों पर भरोसा नहीं है| ख़ासकर, अपने कारोबार से जुड़ी जानकारियों को लेकर वह इन उपकरणों पर भरोसा नहीं करतीं| इसके अलावा, सुदूर इलाकों में प्रशिक्षकों के पहुंचने में आने वाली बाधाएं, इन महिलाओं को ऐसे उपयोगी उपकरणों को अपनाने से रोक सकती हैं।
हालांकि यह परियोजना अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन उससे हमें कई महत्वपूर्ण सबक मिले हैं, जिनसे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि अलग-अलग पृष्ठभूमि या अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की महिलाएं इन उपकरणों को कैसे अपनाती हैं या अस्वीकार करती हैं। इन सबकों को अन्य भारतीय राज्यों या देशों में लागू किया जा सकता है या फिर मौजूदा तकनीकों में सुधार करके उनकी पहुंच का विस्तार किया जा सकता है।
एक सबक तो ये है कि हमें ऐसे उपकरणों की ज़रूरत है, जिसमें वित्तीय सुविधाओं (बहीखाता दर्ज करना, व्यय पर नियंत्रण रखना आदि) के साथ-साथ गैर-वित्तीय सुविधाएं भी हों, जो महिलाओं को सोशल मीडिया (जैसे कि ई-कैटालॉग) के माध्यम से अपने उत्पादों को बेचने या समान व्यवसाय से जुड़े अन्य लोगों से संपर्क स्थापित (जैसे कि क्लस्टर नेटवर्किंग उपकरण) करने में मदद कर सकें| अगर इन उपकरणों को स्थानीय भाषाओं में वॉयस-इनेबल्ड (आवाज़ से नियंत्रण की सुविधा) कमांड के साथ उपलब्ध कराया जाता है, तो इससे उन महिलाओं को आसानी होगी, जो डिजिटल उपकरणों के संचालन में कमज़ोर है और जिनके पास सीमित वित्तीय कौशल है।
इसके अलावा, जब महिलाओं को यह बताना ज़रूरी है कि किन चीज़ों ने अन्य लोगों की सहायता की है, ख़ासकर उनके साथियों ने किन नई चीज़ों को अपनाया है, क्योंकि ये जानकर कि लोगों को इन उपकरणों से काफ़ी मदद मिली है, दूसरे भी उनका अनुसरण करने को प्रोत्साहित होंगे।
आने वाले महीनों में, हमें इस परियोजना से ये पता चलेगा कि किन उपकरणों की सहायता से महिलाओं को अपना व्यवसाय बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिली और कौन सी रणनीतियां उन्हें इन उपकरणों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुईं। यह विभिन्न सूक्ष्म उद्योगों के बीच नए उपकरणों को अपनाने की दर और व्यवसायिक परिणामों की तुलना करेगा और हमें ये जानने में मदद करेगा कि महिलाओं ने इन उपकरणों को प्रशिक्षण (प्रत्यक्ष हस्तक्षेप) मिलने के बाद अपनाया है या फिर उनसे जुड़े फायदों के बारे में जानने और समझने के बाद स्वयं उनका प्रयोग करना शुरू किया है।
इस परियोजना से मिलने वाले परिणामों से नीति-निर्माताओं को इन डिजिटल उपकरणों की पहुंच बढ़ाने के बेहतर तरीकों का पता चला चलेगा ताकि महिला उद्यमियों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सके| समय के साथ, इन आंकड़ों की सहायता से महिला कर्ज़दारों के लिए क्रेडिट स्कोर की एक वैकल्पिक व्यवस्था की स्थापना की जा सकती है, जिससे औपचारिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा|
अभी के लिए, ये जानना सुखद है कि इस परियोजना से अमीना बेन और मीता बेन को अपने कारोबार को सही दिशा में आगे बढ़ाने में मदद मिली है|
बेटी परियोजना में डिसरप्टिव टेक्नोलॉजीज फॉर डेवलपमेंट (डीटी4डी) प्रोग्राम ने निवेश किया है| इस परियोजना का मुख्य साझेदार विश्व बैंक समूह है, जिसमें समूह का कोरिया कार्यालय, सियोल सेंटर ऑफ फाइनेंस एंड इनोवेशन और लैटिन अमेरिका और कैरिबियन का स्पेनिश फंड शामिल हैं|
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