भारत में भूजल की खतरनाक गिरावट को रोकना के प्रयास

This page in:
Picture of a farmer pumping water from a tubewell Picture of a farmer pumping water from a tubewell

भारत विश्व स्तर पर भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जो अकेले उससे ज्यादा पानी का दोहन करता है जितना अमेरिका और चीन मिलाकर करते हैं। आज, भारत के अधिकांश लोगों के लिए भूजल ही पानी का एकमात्र स्रोत है, जो खेती और घरेलू उपयोग के लिए भारी मात्रा में पानी उपलब्ध कराता है। 

जहां भूजल ने हरित क्रांति को आधार दिया जिससे भारत एक खाद्य-सुरक्षित राष्ट्र बन गया, वहीं इस बहुमूल्य संसाधन के व्यापक निष्कर्षण से इसमें खतरनाक गिरावट आई है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न तेजी से अप्रत्याशित होते जाने से भूजल और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा।

भारत के लगभग दो-तिहाई - 63 प्रतिशत – जिले भूजल स्तर गिरने से पहले ही खतरे में हैं। कई मामलों में, भूजल दूषित हो रहा है। चिंताजनक बात यह है कि जिन जिलों में भूजल स्तर 8 मीटर से नीचे चला गया है, वहां गरीबी दर 9-10 प्रतिशत अधिक है, जिससे छोटे किसान विशेष रूप से कमजोर हो गए हैं। यदि मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो भारत की कम से कम 25 प्रतिशत कृषि जोखिम में होगी।

Picture of farmer with cattle
भारत का दो तिहाई हिस्सा सूखा जोखिम से ग्रस्त है। सूखा मुख्य रूप से वर्षा आधारित कृषि को प्रभावित करता है जो भारत के बोए गए क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत है। फोटो: कैरोलीन सुजमैन

2019 में, भारत सरकार ने इस तेज गिरावट को रोकने के लिए अपना ऐतिहासिक भूजल कार्यक्रम, अटल भूजल योजना शुरू की।  चूंकि भूजल संरक्षण करोड़ों लोगों के हाथों में रहता है, इसलिए कार्यक्रम ने इस जटिल चुनौती का समाधान करने के लिए पारंपरिक ज्ञान के साथ वैज्ञानिक जानकारी को मिलाते हुए इस प्रयास के केंद्र में समुदायों को रखा।

2020 में, विश्व बैंक ने - उत्तर में हरियाणा और उत्तर प्रदेश से, पश्चिम में राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से लेकर मध्य भारत में मध्य प्रदेश और दक्षिण में कर्नाटक – जैसे सात भारतीय राज्यों में 9,000 से अधिक जल संकट ग्रस्त ग्राम पंचायतों (ग्राम परिषदों) में सरकार के कार्यक्रम के लिए समर्थन देना शुरू किया।

ये राज्य भूजल दबाव वाले क्षेत्र - यानी, जहां वार्षिक निष्कर्षण वार्षिक प्राकृतिक पुनर्भरण से अधिक है या ऐसी प्रवृत्ति प्रदर्शित कर रहा है कि यह जल्द ही होगा - का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न जलभूगर्भीय प्रणालियां शामिल हैं जिनमें इंडो-गंगा के मैदान के गहरे जलोढ़ जलभरण क्षेत्र और प्रायद्वीपीय भारत के उथले, कठोर चट्टानी जलभरण क्षेत्र, दोनों शामिल हैं। 

परियोजना में दो साल का अनुभव फायदेमंद और चुनौतीपूर्ण, दोनों रहा है – फायदेमंद यह देखना रहा कि समुदायों ने भूजल प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को कैसे समझा है। लेकिन इसका व्यावहारिक समाधान खोजना चुनौतीपूर्ण है कि इसे बड़े पैमाने पर कैसे किया जाए।

उदाहरण के लिए, आप एक ऐसे संसाधन, जो दिखाई नहीं दे रहा है, के लिए सामुदायिक समर्थन को कैसे हासिल करते हैं? जब आगामी वर्षों में परिणाम नहीं दिखेंगे तो आप दीर्घकालिक प्रतिबद्धता कैसे बनाए रखते हैं? आप ऐसे संसाधन को कैसे समेकित और उसकी पुनःपूर्ति करते हैं जो प्रशासनिक सीमाओं के अनुरूप नहीं है? आप संरक्षण प्रथाओं को कैसे संस्थागत बनाते हैं, खासकर जब इस विशाल देश में भौगोलिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिस्थितियां इतनी विविध हैं?

कवायद के बड़े पैमाने को देखते हुए, परियोजना में राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर बहु-विशिष्टता वाले विशेषज्ञों की टीमों को शामिल किया। संदर्भ विशिष्ट संचार अभियान चलाए गए, जिसमें किसानों, नागरिक संगठनों के नेताओं, स्कूली बच्चों, युवाओं और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को लक्षित किया गया।

Picture of woman fetching water
चूंकि जल संग्रहण का बोझ ग्रामीण महिलाओं को ढोना होता है, इसलिए वे भूजल के उपयोग पर जागरूकता प्रयासों का नेतृत्व कर रही हैं। फोटो: माइकल फोले

यद्यपि परियोजना की गति महामारी से प्रभावित रही, परंतु स्वतंत्र मूल्यांकन से पता चलता है कि जागरूकता बढ़ रही है और समुदायों ने 6,000 से अधिक अवलोकन कुओं में भूजल स्तर की निगरानी शुरू कर दी है।

2,200 से अधिक गांवों ने जल बजट तैयार किया है जो दर्शाता है कि कितना भूजल उपलब्ध है, कितना पुनर्भरण होने का अनुमान है, और कृषि के लिए कितना अलग रखा जा सकता है जो इस संसाधन का अब तक का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। यह योजना किसानों को उच्च दक्षता वाली सिंचाई पद्धतियों को अपनाने और उन्हें कम पानी वाली फसलों को बोने के अधिक जटिल मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित करती है।

उदाहरण के लिए, गुजरात में, किसान कपास और गेहूं जैसे पानी की अधिकता वाली फसलों से अनार और जीरा की ओर जाने की आवश्यकता को समझने लगे हैं, जो न केवल कम पानी का उपयोग करते हैं बल्कि अच्छी कीमत भी प्राप्त करते हैं।  विश्व बैंक अब एक अध्ययन कर रहा है और इन किसानों को मूल्य श्रृंखला के विकास के माध्यम से समर्थन देने के लिए योजना तैयार कर रहा है जो गुणवत्ता इनपुट स्रोत और फसल प्रबंधन में सुधार करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि योजनाओं में सामूहिक विपणन के माध्यम से किसानों को बाजार के बेहतर अवसरों से जोड़ने और ग्रेडिंग एवं पैकिंग द्वारा उपज के प्राथमिक प्रसंस्करण का समर्थन करने का प्रस्ताव है।

दूसरी ओर, हरियाणा में, राज्य सरकार का 'मेरा पानी, मेरी विरासत' कार्यक्रम किसानों को अधिक पानी की जरूरत वाले धान को मक्का, बाजरा या दालों से प्रतिस्थापित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। 

भारत सरकार अब अपने प्रमुख भूजल कार्यक्रम - अटल भूजल योजना - का उपयोग मंच के रूप में कर रही है जिससे अन्य राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कार्यक्रम जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, यह किसानों को जल संचयन संरचनाओं के निर्माण में मदद करने के लिए मनरेगा कार्यक्रम और पीएमकेएसवाई के वाटरशेड विकास घटक का लाभ उठा रहा है, और उच्च दक्षता वाली सिंचाई प्रणाली को अपनाकर 'प्रति बूंद अधिक फसल' प्राप्त कर रहा है।

इसके बावजूद, आगे की राह आसान नहीं होगी। महत्वपूर्ण चुनौती यह होगी कि किसान प्रत्येक मौसम में उपलब्ध पानी के अनुरूप अपने फसल पैटर्न में बदलाव करें और सरकार इस संकट का प्रबंधन करने के लिए आर्थिक साधनों का उपयोग करे।

फिर भी, हमारे प्रयास जारी रहते हैं क्योंकि हम सीखते हैं, खारित करते हैं, फिर से सीखते हैं, और प्रत्येक क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त समाधानों के बारे में सोचते हैं।

क्योंकि, यदि भूजल का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाता है, तो यह न केवल मानसून के विफल होने पर एक बहुत ही आवश्यक जलभंडार प्रदान कर सकता है, बल्कि भारत के सबसे कमजोर लोगों पर जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है। 

 

इस काम को विश्व बैंक के जल वैश्विक प्रथा पर आधारित एक बहु-दाता ट्रस्ट फंड वैश्विक जल सुरक्षा और स्वच्छता भागीदारी द्वारा आंशिक रूप से वित्तपोषित किया गया था।


Authors

जॉन रूमे

क्षेत्रीय निदेशक, दक्षिण एशिया सतत विकास

Join the Conversation

The content of this field is kept private and will not be shown publicly
Remaining characters: 1000