कोविड-19 महामारी के दौरान जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तब गुजरात के आनंद ज़िले की महिला कारीगर मुस्कानबेन वोहरा और उनके समूह की दूसरी महिलाएं बहुत चिंतित हो गई थीं|
लेकिन ख़ुशक़िस्मती ये थी कि मुस्कानबेन और उनके समूह को कुछ ही दिन पहले सेल्फ़ इंप्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन (सेवा) ने डिज़िटल स्किल में प्रशिक्षित किया था| सेवा एक सदस्यता आधारित संस्था है जो असंगठित क्षेत्रों में सिलाई कढ़ाई करने वालों, कारीगर, वेंडर और छोटे एवं सीमांत किसानों के जीवन और आजीविक को उत्तम बनाने के लिए काम करती है|
इस प्रशिक्षण के चलते, मुस्कानबेन का समूह तुरंत अपने उत्पादों की तस्वीरों को ऑनलाइन शेयर करने, उपभोक्ताओं का व्हाट्सऐप ग्रुप बनाने में और ख़रीददारी के लिए डिज़िटल भुगतान लेने में सक्षम था|
सेवा की निदेशिका रीमा नानावती ने बताया, “हमारी लीलावती परियोजना ज़रूरत के हिसाब से समयोचित साबित हुई| जब हमने इसे शुरू किया था जब परंपरागत पेशों के सामने भूमंडलीकरण और उदारीकरण सहित दूसरी आर्थिक चुनौतियां थी| हमने तब नहीं सोचा था कि यह प्रशिक्षण महामारी के समय कितना उपयोगी साबित होगा|”
डिज़िटल अवसरों की नई दुनिया
प्रशिक्षण के चलते मुस्कानबेन और उनके समूह के दूसरी महिलाओं ने फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम के ज़रिए अपने उत्पादों के नए ख़रीददारों को जोड़ा, प्रशिक्षित होने की वजह से ज़्यादातर कारीगरों के लिए महामारी के दौरान ऑनलाइन लेन देन करने में कोई मुश्किल नहीं हुई|
इनमें से अधिकांश पेटीएम, भीम ऐप और गूगल पे के ज़रिए नगदीरहित भुगतान का आदान प्रदान कर रहे हैं| इसमें लोगों से मिलने और नकद साथ में रखने की ज़रूरत नहीं होती है और संक्रमित होने का ख़तरा भी नहीं होता|
अहमदाबाद में मिताली प्रजापति के पिता की बर्तनों की दुकान है| महामारी के शुरुआती दिनों में उन्हें काफ़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा| मिताली प्रजापति कहती हैं, “हमारा कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ था क्योंकि मेरे पिता अब दूसरे गांवों में जाकर सामान नहीं पहुंचा सकते थे| लेकिन प्रशिक्षण से मुझे मदद मिली| नुकसान का डर भी नहीं रहा और अब मैं उनके लिए डिज़िटल भुगतान का काम देखती हूं|”
गुजरात के कच्छ ज़िले की जयश्री घरौदा ने अपने मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल बात करने के सिवा किसी और काम के लिए नहीं किया था | लेकिन अब 30 साल की जयश्री अपने पति के 14 सदस्यीय परिवार के सभी बिलों का भुगतान ऑनलाइन कर रही हैं|
जयश्री याद करती हैं, “पहले तो घर के पुरुषों के पास ही स्मार्टफ़ोन हुआ करते थे| लेकिन जब मेरे पति ने देखा कि मैं क्या क्या कर सकती हूं तो उन्होंने मुझे भी स्मार्टफ़ोन दिलाया| मैं अब प्लेस्टोर से ऐप डाउनलोड कर सकती हूं और यूट्यूब पर वीडियो देखकर घरेलू सज्जा के सामानों को तैयार करने के नए तरीके सीखती हूं| इससे अतिरिक्त आमदनी भी होती है|”
राजस्थान के डुंगरपुर ज़िले की 35 साल की रितिका कुमारी राजपूत समुदाय की परंपरागत रिवाज़ों के मुताबिक घर से कम ही बाहर निकलती थीं| दो बच्चों की हंसमुख मां रितिका बताती हैं, “ससुराल में दूसरे पुरुषों के सामने भी मैं अपना चेहरा ढंके रखती थी| मैं 2014 में सेवा से जुड़ी और उसके बाद मेरा आत्म विश्वास इतना बढ़ा कि मैं ग्राम पंचायत की बैठकों में बोलने लगी|”
हाल ही में मिली डिज़िटल प्रशिक्षण ने रितिका कुमारी को कहीं ज़्यादा आत्म निर्भर बना दिया है| उन्होंने बताया, “अब मैं किसी पर निर्भर नहीं रही क्योंकि घर की ज़रूरतों का सारा सामान ऑनलाइन मंगा सकती हूं| जोधपुर और अहमदाबाद जैसी नई जगहों पर जाने के लिए मैंने गूगल मैप का इस्तेमाल भी सीख लिया है|”
मुश्किल समय में लोगों का साथ
अपने सदस्यों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए जोड़कर सेल्फ़ इंप्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन (सेवा) ज़मीनी स्तर की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने में सक्षम है| उदाहरण के लिए जब ग्रामीण इलाकों में लोगों को ज़रूरत के राशन इत्यादि मिलने में मुश्किल हुई तो सेवा ने कृषि उत्पादों की आपूर्ति करने वालों के साथ संयोजन करके उचित मूल्य पर लोगों को राशन उपलब्ध कराया|
गुजरात के सुरेंद्रनगर ज़िले की हीनाबेन दवे ने बताया, “हमलोग लॉकडाउन के दौरान नहीं मिल पा रहे थे| लेकिन वर्चुअल बैठक के द्वारा हमलोग एक दूसरे को देख पाते हैं और अपनी समस्याओं पर बात कर पाते हैं| इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और हमें महसूस होता है कि मुश्किल वक़्त में हमारी मदद करने के लिए एक संस्था है|”
विश्व बैंक भारत के डायरेक्टर जुनैद अहमद कहते हैं, “कोविड-19 महामारी के पहले भी डिज़िटल वित्तीय लेन देन विकास को लेकर भारत की प्राथमिकताओं में शामिल था, लेकिन अब इसके बिना काम नहीं चल सकता|
ज़ुनैद अहमद बताते हैं, “इस कार्यक्रम के द्वारा हमारी कोशिश ग्रामीण इलाक़ों की ग़रीब महिलाओं के लिए आजीविका के नए अवसर खोलने हैं| इसके अलावा महिला नेतृत्व वाले उद्यमों को बढ़ावा देना और मानव संसाधन में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ाना भी कार्यक्रम के उद्देश्य में शामिल है|”
लीलावती प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत के छह राज्यों- गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मेघालय और असम में करीब पांच लाख महिलाओं को डिजिटल वित्तीय लेन देन में सक्षम बनाना है| इस प्रोजेक्ट को जापान सोशल डेवलपमेंट फंड (जेएसडीएफ़) की मदद प्राप्त है और इसका प्रबंधन विश्व बैंक कर रहा है|
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