प्रकृति जमीनी या जलीय सीमाओं और विशेष रूप से कई सभ्यताओं और अर्थव्यवस्थाओं को जन्म देते हुए सहस्राब्दियों से कई देशों से गुजरती नदियों के प्रवाह पथ का कोई ध्यान नहीं रखती। दक्षिण एशिया कोई अलग नहीं है। क्षेत्र के आठ देशों में से छह - अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान – से कई बहुदेशीय नदियां गुजरती हैं, जिससे इन देशों और इनके नागरिकों के बीच जटिल परस्पर निर्भरता और भू-राजनीतिक संघर्ष पैदा होते हैं, खासकर जहां पानी राष्ट्रीय सीमाओं के जरिए बहता है। दक्षिण एशिया के लिए प्रचुर मात्रा में ताजे पानी का उत्पादन करने के लिए इस क्षेत्र की दिग्गज नदियां - गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र - हिमनदों के पिघलने और वार्षिक वर्षा द्वारा पोषित होती हैं।
फिर भी, यह विडंबना और विरोधाभास है कि दक्षिण एशिया आज जलसंकट से ग्रस्त है और पानी की कमी का सामना करता है।
दक्षिण एशिया में लगभग 190 करोड़ लोग रहते है जहां इसकी 20 प्रमुख नदियों को विश्व के 23% मनुष्यों की जरूरतें पूरी करनी हैं । लेकिन, दुनिया के वार्षिक नवीकरणीय जल का केवल 4% हिस्सा दक्षिण एशिया में है। यह जल भंडार न केवल अपनी बड़ी आबादी के लिए आनुपातिक रूप से अपर्याप्त है, बल्कि हाल ही में जलवायु परिवर्तन के कारण भौगोलिक क्षेत्रों के लिए और भी अधिक टिकाऊ नहीं है। इसके अलावा, नवीकरणीय जल का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषित है, और अत्यधिक निकासी ने भी इसे गैर-टिकाऊ बना दिया है।
यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और नॉर्वे द्वारा समर्थित और विश्व बैंक द्वारा प्रशासित हाल ही में बंद कार्यक्रम - साउथ एशिया वाटर इनीशिएटिव या एसएडब्लूआई - साझा पानी के लिए सहयोग पर दक्षिण एशियाई सरकारों, एजेंसियों, नागरिक संगठनों और तटवर्ती पड़ोसियों के साथ पानी एवं जलवायु लचीलापन के निरमान के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
स्रोत पर एक काला राज
दक्षिण एशिया का जलसंकट हिमालय के शिखरों से शुरू होता है, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, मौसमी बर्फ घट रही है, और वर्षा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं। यह इस क्षेत्र में जल संसाधनों की स्थिरता के लिए बहुत बड़े जोखिम पैदा कर रहा है। ग्लेशियर का पानी 75 करोड़ से अधिक लोगों के लिए एक जीवन रेखा है। एसएडब्लूआई (SAWI) कार्यक्रम द्वारा वित्तपोषित एक हालिया अध्ययन ने ग्लेशियर जल प्रबंधन पर दोहरी चोट का खुलासा किया : जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते तापमान और वर्षा के पैटर्न के अलावा, , बायोमास जलने, औद्योगिक एवं वाहन उत्सर्जन और जंगल की आग जैसी गतिविधियों से उत्पन्न कालिख या ब्लैक कार्बन (बीसी) हवा के तापमान को बढ़ा रहा है और हिमालय, काराकोरम और हिंदू कुश (एचकेएचके) पर्वत श्रृंखलाओं में ग्लेशियरों के पिघलने में 50% से अधिक की तेजी ला रही है।
अच्छी खबर क्या है? जलवायु परिवर्तन के विपरीत, जो एक वैश्विक घटना है, ब्लैक कार्बन को दक्षिण एशियाई देशों द्वारा आर्थिक और तकनीकी रूप से व्यवहार्य नीतिगत कार्रवाइयों से 50% तक कम किया जा सकता है। हालांकि, ग्लेशियरों पर अधिकांश दीर्घकालिक डेटा सार्वजनिक डोमेन से अनुपस्थित है और डेटा साझा करने के लिए कोई उपयुक्त तंत्र नहीं है। SAWI कार्यक्रम ने इस क्षेत्र की ग्लेशियरों एवं पहाड़ों की राजसी विरासत पर सहयोग को सहज बनाने और एक साक्ष्य आधार बनाने के लिए 2018 में काठमांडू में अपनी तरह के पहले सम्मेलन के लिए अफगानिस्तान, भूटान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के नीति निर्माताओं, थिंक टैंक, शिक्षाविदों और गैर-सरकारी संगठनों को एकत्र किया।
हिंदू कुश हिमालय ग्लेशियर और माउंटेन इकोनॉमी नेटवर्क नामक इस मंच का एक परिणाम हिममंडल, ग्लेशियर पिघलने और पहाड़ अर्थव्यवस्था पर काठमांडू घोषणापत्र था, जिससे प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने पर भविष्य की नीति और अनुसंधान सहयोग के लिए मार्ग खुलेगा।
एक योजक के रूप में पानी : अंतर्देशीय परिवहन
पहले से ही प्यासे क्षेत्र में जल संकट का मुकाबला करने के लिए, SAWI टीम ने बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआईएन) के उप क्षेत्र में सड़क परिवहन के एक हरित और अधिक लागत प्रभावी विकल्प के रूप में अंतर्देशीय जलमार्गों का उपयोग करने पर नदी बेसिन पर महत्वपूर्ण बातचीत की सुविधा प्रदान की।
गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना के विशाल डेल्टा में नदियां परिवहन का सबसे पुराना साधन हैं, जहां जलमार्गों का एक घना संजाल कभी इस क्षेत्र के भीतर 70% से अधिक माल और यात्रियों को ले जाता था। परंतु आज, दक्षिण एशिया में 2% से भी कम माल जलमार्ग द्वारा ले जाया जाता है और 75% निर्यात-आयात सड़कमार्ग से होता है, जबकि अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन सड़क परिवहन की तुलना में 25-30% कम ऊर्जा की खपत करता है। हरित होने के अलावा, जलमार्ग से थोक माल के परिवहन की लागत भी सस्ती है – यह सड़क मार्ग का मात्र पांचवां हिस्सा है।
एक दशक से अधिक चले SAWI कार्यक्रम द्वारा कराए गए अध्ययन के परिणामस्वरूप पूर्वी जलमार्ग ग्रिड के माध्यम से पूरे क्षेत्र में एकीकृत नदी परिवहन के लिए भारत और बांग्लादेश के बीच नए व्यापार मार्गों का पता लगाने के लिए बीबीआईएन देशों के बीच उच्चतम स्तर पर चर्चा हुई। ग्रिड में पूर्वी उपमहाद्वीप की अर्थव्यवस्थाओं को फिर से जीवंत करने और इस क्षेत्र के लाखों लोगों, जिनमें से कई दक्षिण एशिया के सबसे गरीब लोगों में से हैं, के लिए बढ़िया लाभांश सृजित करने की क्षमता है। इसके अलावा, बेहतर मार्गदर्शन के साथ, मार्ग के किनारे टर्मिनलों, जेटी, कंटेनर डिपो और भंडारण सुविधाओं की स्थापना से नई नौकरियां उत्पन्न होंगी। क्षेत्र से परे, अंतर्देशीय जलमार्ग के परिणामस्वरूप म्यांमार, सिंगापुर और थाईलैंड के साथ नए वाणिज्यिक गलियारे बन सकते हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में कई प्रभाव पैदा हो सकते हैं। कुल मिलाकर, क्षेत्रीय सहयोग में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को 44 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने की क्षमता है और यह 2021 में 4.8-5.9 करोड़ नए गरीबों को जन्म देने वाली कोविड-19 महामारी के बाद बेहतर निर्माण में योगदान कर सकता है।
बढ़ता पानी, घटना जीवन : सुंदरबन
बादल मंडल की कहानी सुंदरबन के पानी की अस्थिरता को दर्शाती है। सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है जो पूर्व में बांग्लादेश और पश्चिम में भारत के पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है। "मैं यहां जो देख रहा हूं, वह मेरे लिए नया है ... आज सब कुछ गंगा नदी से घिरा हुआ है", बादल अपने सामने विशाल गंदे पानी को देखकर दुखी होता है- नजदीक के घोरीमारा द्वीप जाने के लिए मजबूर किए जाने से पहले कासीमीरा द्वीप कभी उनके परिवार का घर था। चढ़े हुए पानी के कारण परिवार ने इस दूसरे घर को भी खो दिया, जिससे उन्हें तीसरी बार, सागर द्वीप पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो हिमालय से गंगा के 1500 मील के प्रवाह मार्ग के आखिरी छोर पर स्थित है। बढ़ते पानी को देखते हुए, सागर द्वीप के परिवार का अंतिम पड़ाव होने की संभावना नहीं है।
सुंदरवन मानव जाति की सबसे बड़ी अनुकूलन चुनौती में से एक का प्रतिनिधित्व करता है: आप दो देशों के बीच 40,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इसके लोगों की समुद्रों के अथक हमलों से कैसे रक्षा करते हैं, और साथ ही जीवन और नौकरियों को बनाए रखने के लिए आवश्यक पानी के अन्य रूपों - मीठा पानी, आर्द्रभूमि और भूजल भंडार- की रक्षा और विकास भी करते हैं?
हमें उम्मीद है कि SAWI कार्यक्रम के तहत किए गए कार्य ने सुंदरबन में फोकस को सिर्फ पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौती के मुद्दे से मानव विकास और इसके निवासियों की भेद्यता तक बढ़ाया है।
नीतिगत थिंक टैंक, नागरिक संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों के एक समूह बांग्लादेश-भारत सुंदरबन क्षेत्र सहकारी पहल या BISRCI की स्थापना के माध्यम से SAWI कार्यक्रम ने सुंदरबन की सततता के प्रबंधन और विकास पर 2011 से दोनों सरकारों के बीच समझौतों को आगे बढ़ाने में मदद किया है। उच्च स्तरीय BISRCI फोरम ने जल संसाधन प्रबंधन, जैव विविधता और परिदृश्य संरक्षण, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, पर्यावरण पर्यटन, और अन्य सहित विकास के कई मुद्दों पर चर्चा की सुविधा प्रदान की। BISRCI की गतिविधियों और संवादों ने बांग्लादेश और भारत के बीच - भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों पर वैज्ञानिक सहयोग और बंगाल की खाड़ी एवं हिंद महासागर में समुद्री सहयोग से लेकर इस क्षेत्र की दृश्यता को दुनिया के विकास मंडलों में उच्च बनाए रखने के लिए मीडिया सहयोग तक - कई नए सहयोगों की भी जानकारी दी।
वास्तविकता यह है कि सुंदरबन पर काम कभी भी पर्याप्त नहीं होता है, और कार्य हमेशा प्रगति पर रहता है। जैसा कि हमारे सहयोगी तापस पॉल बताते हैं, "यदि व्यापक, साहसी और तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती है, तो जलवायु परिवर्तन इसके 1.3 करोड़ निवासियों में से कई को विस्थापित कर देगा, जो इतिहास में सबसे बड़े प्रवासन में से एक होगा।"
SAWI कार्यक्रम के भागीदार और संस्थानों के इस क्षेत्र में अपना काम करते रहने से हम आशा करते हैं कि कार्यक्रम द्वारा स्थापित सहयोग की धाराएं पूरे क्षेत्र में स्रोत से समुद्र तक, पानी जैसे कालातीत नए विचारों और संवादों को प्रवाहित करती रहेंगी।
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