गर्म हवाओं का प्रकोप बढ़ने से दक्षिण एशिया के समान रूप से शीतलन की आवश्यकता

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Workers at a construction site on the outskirts of Ahmedabad, India, try to cool themselves during the record-breaking heatwave earlier this year. Photo: Amit Dave / Alamy) Workers at a construction site on the outskirts of Ahmedabad, India, try to cool themselves during the record-breaking heatwave earlier this year. Photo: Amit Dave / Alamy)

नई दिल्ली के बाहरी इलाके में एक निर्माण स्थल पर एक राजमिस्त्री, रविंदर कुमार अपना दिन संगमरमर के विशाल ल्यूमिनसेंट स्लैब को काटते हुए बिताते हैं। इस अप्रैल और मई में, जब पूरे भारत में भयानक गर्मी पड़ रही थी, 34 वर्षीय कुमार ने काम करने के लिए संघर्ष किया। सूर्य की तपन से थोड़ा बचाव करते हुए, उन्होंने हरे रंग की प्लास्टिक की तिरपाल और ईंटों के टुकड़ों से एक अस्थायी आश्रय बनाया। फिर भी, दिन खत्म होते-होते, रविंदर थकान, सिरदर्द और बुखार से पीड़ित था। रात में, निर्माण स्थल पर बने इस अस्थायी आश्रय में टिन की छत से गर्मी होने के कारण उसे नींद नहीं आई। थका और अस्वस्थ होने पर भी परिवार के लिए पैसे कमाने के दबाव में, रविंदर ने काम करना जारी रखा। तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने पर, वह अपने नियोक्ता द्वारा आवश्यक 10 घंटे के बजाय बमुश्किल आठ घंटे काम कर पाया।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति की ताजा रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन हीटवेव की अधिक संभावना बना रहा है। इस वसंत में, पूरे भारत और पाकिस्तान में तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि बांग्लादेश और श्रीलंका में असामान्य रूप से भारी गर्मी थी। एक अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण पूरे भारत और पाकिस्तान में इस साल 100 साल पहले की तुलना में 30 गुना अधिक हीटवेव की आशंका थी। 

ठंडा करना और विकास साथ-साथ

पर्याप्त शीतलन के बिना, ये स्थितियां देशों के विकास को कमजोर करती हैं। जब दक्षिण एशिया में भीषण गर्मी पड़ती है, तो गरीब और सबसे कमजोर, जैसे रविंदर कुमार, सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। जब काम करने की दृष्टि से बहुत अधिक गर्मी होती है, तो मजदूरी नहीं हो पाती है, जिससे परिवार गरीबी के दुष्चक्र की ओर बढ़ जाते हैं। स्कूल के घंटे कम करने पड़ते हैं, जिससे बच्चे शिक्षा और भविष्य के अवसरों से वंचित हो जाते हैं। घरों में, जहां दक्षिण एशिया में बहुत से लोग अपर्याप्त हवादार इमारतों में रहते हैं और उनके पास शीतलन की सुविधा नहीं है, अत्यधिक गर्मी लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। इस सबके बीच, कोल्ड चेन के खंडित बुनियादी ढांचे के कारण भोजन और टीकों का नुकसान होता है, जिससे पोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है।

इसकी आर्थिक लागत स्तब्धकारी है। क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का एक बड़ा प्रतिशत गर्मी से त्रस्त अनौपचारिक श्रमिकों के कंधों पर आश्रित होने से, अत्यधिक गर्मी न केवल कामकाजी गरीबों के स्वास्थ्य और आजीविका को संकट में डालती है, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक उत्पादकता को भी खतरे में डालती है। 2030 तक, बढ़ती गर्मी और नमी से श्रम के नुकसान के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 4.5%, यानी लगभग 150-250 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश को सकल घरेलू उत्पाद के 5% तक का नुकसान हो सकता है।

पूरे दक्षिण एशिया में बढ़ती शहरी आबादी और तापमान से भी शीतलन की मांग बढ़ी है। पर्यावरणीय प्रभावों - एयर कंडीशनर और अन्य शीतलन उपकरण शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस छोड़ते हैं - को कम करते हुए नागरिकों के लिए शीतल स्थिति बनाए रखना पूरे दक्षिण एशिया में सरकारों के लिए एक चुनौती है, जिन्हें विकास रणनीति के रूप में शीतलन को प्राथमिकता देनी चाहिए।

दक्षिण एशिया में शीतलन सुविधाएं और अवसर

2019 में, भारत एक व्यापक शीतलन कार्य योजना - भारत शीतलन कार्य योजना (आईसीएपी) शुरू करने वाले दुनिया के पहले देशों में से एक बन गया। यह कार्ययोजना जलवायु प्रभावों को कम करते हुए देश की शीतलन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षी पहल है। जून 2022 में, बांग्लादेश ने अपनी राष्ट्रीय शीतलन योजना प्रकाशित की, जबकि पिछले साल अक्टूबर में पाकिस्तान ने घोषणा की कि वह 2026 तक एक कार्ययोजना को अपनाएगा।

कुमार जैसे कमजोर लोगों की मदद करने की इन योजनाओं के लिए, इस क्षेत्र के देशों को फिर से सोचना चाहिए कि आवास, कृषि और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सेवाओं का लाभ कैसे दिया जाए।

उदाहरण के लिए, दक्षिण एशिया के शहरों को लें, जिनमें से कई भारी गरीबी और खराब आवास स्थितियों से त्रस्त हैं। आवास जरूरतों को पूरा करने के लिए 2050 से पहले दक्षिण एशिया में 20 करोड़ से अधिक नए घरों के निर्माण की आवश्यकता है। यह क्षेत्र में शहरी विकास की दिशा को बदलने और तापीय आराम को प्राथमिकता देने वाली रणनीतियों को अपनाने का अवसर प्रदान करता है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश किफायती आवास कार्यक्रमों के साथ इस चुनौती को पूरा कर रहे हैं।

भारत में, जहां आवास मांग को पूरा करने के लिए सालाना एक करोड़ नए घरों का निर्माण करने की आवश्यकता है, सरकार की किफायती आवास योजना में घरों के भीतर से पैदा होने वाली गर्मी को रोकने के लिए निर्माण और शहरी नियोजन में प्रकृति-आधारित समाधान और सहनशील शीतलन तकनीकों को शामिल करने का अवसर है। इसका मतलब उच्च तापीय द्रव्यमान वाले सामग्रियों के साथ पुआल जैसी जलवायु अनुकूल इन्सुलेशन सामग्री का उपयोग करना है। विश्व बैंक समूह के विश्लेषण के अनुसार, 2040 तक अकेले भारत में क्षेत्र शीतलन 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का अवसर प्रस्तुत करता है, जिसमें से 1.25 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर आवासीय भवनों के लिए निर्धारित है।

पूरे क्षेत्र में आवासीय योजनाओं में किफायती क्षेत्र शीतलन तकनीकों को बढ़ाने के अवसर मौजूद हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि बांग्लादेश, जहां शहरी आबादी 2000 में 3.1 करोड़ से बढ़कर 2020 में 6.5 करोड़ हो गई, में मौजूदा कमी को पूरा करने के लिए हर साल 2,50,000 नए घरों का निर्माण करने की आवश्यकता है। पाकिस्तान में, सरकार ने 2030 तक गरीब और मध्यम आय वाले समुदायों 50 लाख आवास इकाइयां प्रदान करने के लिए 2019 में एक आवास कार्यक्रम शुरू किया।

ब्रशलेस सीलिंग, या बीएलडीसी, पंखे जैसे उच्च दक्षता वाले सामान्य घरेलू उपकरणों को बढ़ाकर लाखों लोगों के लिए आराम सुनिश्चित किया जा सकता है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में छत के पंखे सबसे ज्यादा बिकने वाले उपकरण हैं। ब्रशलेस पंखों को नियमित पंखों की तुलना में लगभग 65% कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और इनसे घरेलू ऊर्जा खर्च में प्रत्येक वर्ष लगभग 20 अमेरिकी डॉलर प्रति पंखा बचाने में मदद मिलती है। यह पहले हो चुका है। उदाहरण के लिए, भारत ने बड़े पैमाने पर एलईडी प्रकाश बल्बों की राष्ट्रव्यापी थोक खरीद और वितरण करके बड़े पैमाने पर परिवर्तनकारी ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकी का उपयोग देखा है। ब्रशलेस पंखे जैसी अन्य ऊर्जा-कुशल तकनीकों के लिए एक व्यवहार्य बाजार बनाने के लिए एलईडी कार्यक्रम को दोहराना भी इस क्षेत्र में आर्थिक विकास का अवसर पैदा करता है।

Ravinder Kumar (right), a mason in New Delhi. The green tarpaulin rigged up to provide some shade was his sole protection from the scorching temperatures earlier this year. Photo: IORA Ecological Solutions
नई दिल्ली में एक राजमिस्त्री रविंदर कुमार (दाएं)। इस साल की शुरुआत में झुलसा देने वाले तापमान से कुछ छाया प्रदान करने के लिए ताना गया हरा तिरपाल उसका एकमात्र बचाव था। फोटो: आईओआरए इकोलॉजिकल सॉल्यूशंस।

दक्षिण एशिया में शीतलन को बढ़ावा देने की रणनीति में कोल्ड चेन क्षेत्र में बड़े निवेश को भी शामिल किया जाना चाहिए। भारत में, कोल्ड चेन क्षेत्र की सीमाओं के कारण उत्पादित खाद्यान का लगभग 40% हिस्सा हर साल नष्ट या बर्बाद हो जाता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी ऐसी ही स्थिति है, जहां अनुमान है कि सालाना प्रति व्यक्ति क्रमश: 74 किलो और 65 किलो भोजन बर्बाद हो जाता है। भारत में, कृषि क्षेत्र को कोल्ड चेन बुनियादी ढांचे में कमी को पूरा करने के लिए तत्काल 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की निवेश की आवश्यकता है जिससे 17 लाख नौकरियां पैदा होंगी। इस निवेश का अधिकांश भाग खाद्य उत्पादों और टीकों को संरक्षित करने के लिए प्रशीतित परिवहन सहित सतत एवं ऊर्जा-कुशल एंड-टू-एंड कोल्ड चेन नेटवर्क विकसित करने में खर्च होना है।

 

रविंदर कुमार जैसे श्रमिकों के लिए यह बदलाव इतनी तेजी से नहीं आ सकता। कुमार 6 अमेरिकी डॉलर की अपनी दिहाड़ी से राजस्थान में अपने घर में रह रहे परिवार के सात सदस्यों का जीवन चलाता है। वह सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने का सपना देखता है क्योंकि इससे उसे गर्मी से बचते हुए इमारत के भीतर अधिक समय बिताने की अनुमति मिलती है। एक रहने योग्य शहर में नए क्षेत्रों में नए अवसर उसके और उसके परिवार के भविष्य के लिए परिवर्तनकारी होंगे।

 

यह ब्लॉग पोस्ट सबसे पहले थर्डपोल वेबसाइट में प्रकाशित हुआ। यह कार्य विश्व बैंक, आईसीआईएमओडी और द थर्ड पोल के बीच एक सहयोगी संपादकीय श्रृंखला का हिस्सा है जो "दक्षिण एशिया में जलवायु लचीलेपन के लिए क्षेत्रीय सहयोग" पर जलवायु विशेषज्ञों और क्षेत्रीय आवाज़ों को एकसाथ लाता है। लेखकों द्वारा व्यक्त किए गए विचार और मत उनके अपने हैं। इस श्रृंखला को विश्व बैंक द्वारा प्रशासित एक ट्रस्ट फंड - प्रोग्राम फॉर एशिया रेजिलिएंस टू क्लाइमेट चेंज के जरिए यूनाइटेड किंगडम का विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय द्वारा वित्त पोषित किया गया है।


Authors

आभास झा

प्रैक्टिस मैनेजर, जलवायु परिवर्तन एवं आपदा जोखिम प्रबंधन, दक्षिण एशिया क्षेत्र

मेहुल जैन

जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ, विश्व बैंक की दक्षिण एशिया जलवायु परिवर्तन एवं आपदा जोखिम प्रबंधन इकाई

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