सुरजमनी देवी को वह समय याद है जब वह परिवार के भोजन के लिए आग जलाने के लिए अपने मिट्टी के चूल्हे को टहनियों से जलाती थीं। "कमरा धुएं से भरा जाता था। हमें बहुत खांसी हुई, यह हमारी आंखों के लिए हानिकारक था और बच्चे पढ़ाई नहीं कर सकते थे ।"
जब हम भारत के पूर्वी राज्य बिहार के खुदवा गांव में उसके छोटे से मिट्टी और फूस के घर में गए तो हमें एहसास हुआ की सूरजमणि को इस बात का पता नहीं था कि उसके परिवार के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के अलावा, लकड़ी से जलने वाला चूल्हा हर सर्दियों में उनके चारों ओर भारी मात्रा में फैलने वाले धुएं को बढ़ा रहा था।
बिहार राज्य वायु प्रदूषण से बहुत अधिक प्रभावित है। लकड़ी और गोबर जलाने वाले चूल्हों से निकलने वाला धुआं इस समस्या को और बढ़ाता है। यद्यपि बिहार में स्वच्छ ईंधन जैसे तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) और बायोगैस के इस्तेमाल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है (2011 में 8.4% की तुलना में 2019-21 में 37.8%), लेकिन अब भी कई गरीब परिवार खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर का ही इस्तेमाल करते हैं।
इन चूल्हों से निकलने वाला धुआं न सिर्फ इस्तेमाल करने वालों का दम घोंटता है, बल्कि महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। यही नहीं, यह बिहार में वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है - करीब 40 प्रतिशत।
क्यूंकि बड़े पैमाने पर एलपीजी या बिजली के चूल्हों की उपलब्धता में अभी कुछ साल लग सकते हैं, बिहार सरकार स्वच्छ ईंधन चूल्हों को बढ़ावा देकर इस समस्या का अल्पावधि में समाधान करने में मदद कर रही है। ये चूल्हे पारंपरिक चूल्हों की तुलना में लकड़ी और गोबर आदि का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं और कम धुआं निकालते हैं।
चूंकि वायु प्रदूषण कम करना विश्व बैंक की प्राथमिकता है, इसलिए बैंक ने एक पायलट प्रोजेक्ट का समर्थन किया जिसमें बिहार के सफल स्वयं सहायता समूह (जीविका) की महिलाओं को इन बेहतर चूल्हों का विपणन, बिक्री और मरम्मत करने का प्रशिक्षण दिया गया। वित्तीय वर्ष 2021-2022 के दौरान, ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI), जीविका और बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के सहयोग से, यह पायलट प्रोजेक्ट संचालित किया गया।
प्रारंभिक तौर पर, 5 जिलों की 25 महिलाओं को इस क्षेत्र में सफल उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया जो पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्र रहा है । विपणन, उत्पाद प्रदर्शन और बिक्री के बाद की सेवाओं में कौशल से लैस ये महिलाएं, उत्तम ऊर्जा केंद्र नामक विशेष रूप से स्थापित सौर मार्ट के माध्यम से बेहतर चूल्हों को बेचने लगीं। खास बात यह कि इन मार्टों का संचालन केवल महिलाओं के ही हाथ में है। वे अन्य स्वच्छ ऊर्जा उत्पादों जैसे सौर ऊर्जा से चलने वाले पंखे, बिजली के बल्ब और मोबाइल फोन चार्जर भी बेच रही हैं, जो अनियमित बिजली आपूर्ति वाले इलाकों में काफी उपयोगी हैं।
पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित व्यापार मॉडल
जब हम बिहार के गया जिले के लखीपुर गांव गए, तो हमारी मुलाकात अन्नू से हुई। वह एक आत्मविश्वास से भरपूर युवती हैं। उसने बताया कि इन ऊर्जा दक्ष उत्पादों की बिक्री से होने वाली नियमित आमदनी न सिर्फ उसे अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाती है, बल्कि कभी-कभी नई साड़ी खरीदने में भी मदद करती है। इतना ही नहीं, अपनी दुकान को सफलतापूर्वक चलाने वाली एक आत्मनिर्भर महिला के रूप में, उसने समाज में एक नया मुकाम हासिल किया है, जो उसके आसपास के लोगों की पितृसत्तात्मक मानसिकता में बदलाव ला रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि बेहतर चूल्हों की पूरी आपूर्ति श्रृंखला महिलाओं द्वारा ही संचालित की जाती है। जहां महिलाएं जीविका की महिला उद्यमिता एवं समाधान प्राइवेट लिमिटेड (जे-वायर्स) में नए चूल्हों को बनाने और जोड़ने का काम करती हैं। वहीं व्यापार के अन्य सभी पहलुओं, जैसे बिक्री और बिक्री के बाद सेवा को, सौर मार्ट चलाने वाली महिलाएं ही संभालती हैं।
पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद ऐसे और महिला-प्रधान छोटे व्यवसायों की मांग बढ़ गई। वास्तव में, पायलट प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद से, जीविका ने किसी और समर्थन के बिना अपने नेटवर्क और प्रणालियों के माध्यम से अन्य गांवों में इस व्यापार मॉडल का विस्तार किया है। महिलाओं ने बिक्री से हुए मुनाफे के जरिये अपना माल भंडार बढ़ाना जारी रखा है, साथ ही महिला स्वयं सहायता समूहों के संघों से मिलने वाले सूक्ष्म वित्त ऋणों के माध्यम से अपने ग्राहकों की संख्या का भी विस्तार किया है।
2024 तक, 25 उद्यमियों के शुरुआती समूह में 382 महिलाएं शामिल हो गईं, जिनके पास सोलर मार्ट की स्वामित्व थी। इस प्रभावशाली समूह ने 2021 और 2024 के बीच बिहार के 38 जिलों में से 14 में 7,749 उन्नत चूल्हे बेचे। 2012 के बाद से, जीविका पहल के माध्यम से, पूरे बिहार में कुल 50,000 बेहतर चूल्हे बेचे गए हैं - और संख्या में वृद्धि जारी है।
यह अभिनव व्यापार मॉडल न केवल महिलाओं के लिए नए रोजगार पैदा करता है, बल्कि खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर आदिf से चलने वाले चूल्हों पर निर्भर गरीब परिवारों के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। इतना ही नहीं, प्रशिक्षण और कौशल विकास पर जोर देने से महिलाओं को मूल्यवान विशेषज्ञता मिलती है, जिससे उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ती है। साथ ही, लैंगिक मानदंडों और रूढ़ियों को चुनौती देकर, यह मॉडल कार्यबल में महिलाओं को अधिक से अधिक शामिल करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
वायु प्रदूषण रोकने के लिए व्यापक दृष्टिकोण
भविष्य की बात करें तो, विश्व बैंक 5-6 साल की अवधि में एक करोड़ ग्रामीण परिवारों तक तेजी से इस मॉडल का विस्तार करने के लिए बिहार सरकार और जीविका के साथ सहयोग कर रहा है। इस कार्यक्रम के तहत, जीविका का लक्ष्य 3,500 से अधिक सौर मार्ट स्थापित करना है, जो ग्रामीण खरीदारों को घर पर ही सेवा प्रदान करेंगे।
स्वच्छ ईंधन वाला यह व्यापार मॉडल अब पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी शुरू हो गया है। इसकी शुरुआत TERI द्वारा छोटे स्तर की पायलट परियोजना के माध्यम से की गई है। बाद में, इसे विश्व बैंक के वित्त पोषण के साथ यूपी के स्वच्छ वायु प्रबंधन कार्यक्रम के तहत बड़े पैमाने पर लागू किया जाएगा।
फिर भी, भारत की उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम करने में स्वच्छ ईंधन चूल्हे सिर्फ एक कारक हैं। इसलिए, ये कार्यक्रम व्यापक वायुमंडल-स्तरीय दृष्टिकोण का हिस्सा हैं, जिनकी योजना गंगा के मैदानी इलाकों के सभी भारतीय राज्यों के साथ-साथ पड़ोसी देशों बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और पाकिस्तान के साथ विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से बनाई जा रही है। अन्य भागीदारों और दानदाताओं के वित्तपोषण के साथ इस तरह का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम इस साझा वायुमंडल में रहने वाले 80 करोड़ से अधिक लोगों के लिए स्वच्छ हवा सुनिश्चत करने के लिए आवश्यक है।
इस बीच, अन्नू और उनकी जैसी अन्य नई व्यावसायिक महिलाएं जमीनी स्तर पर बदलाव लाने में व्यस्त हैं, जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
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