भारत का विश्व के साथ 'बांड'

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भारत का विश्व के साथ 'बांड' वर्ली, प्रभादेवी, एलफिंस्टन, दादर और बांद्रा के साथ मुंबई के लोअर परेल क्षितिज का हवाई विहंगम दृश्य

भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई के बोर्डरूमों में, एक सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण परिवर्तन सामने आ रहा है।

वर्ष 2023 के अंत में, जेपी मॉर्गन ने अपने ग्लोबल ईएम बांड सूचकांक में भारत को शामिल करने की घोषणा की । यह एक ऐसा निर्णय है जो देश के वित्तीय परिदृश्य को फिर से परिभाषित कर सकता है।

इसके तुरंत बाद, मार्च 2024 में, ब्लूमबर्ग ने अपने ईएम स्थानीय मुद्रा सरकारी सूचकांकों में भारत को शामिल करने की घोषणा की।

ये समावेशन चरणबद्ध तरीके से होंगे। जून 2024 में शुरू होने वाली भारतीय सरकारी बांड के सूचकांक धीरे-धीरे ऊपर चढ़ेंगे और मार्च 2025 तक जेपी मॉर्गन सूचकांक के 10 प्रतिशत हिस्से तक पहुंच जाएंगे। ब्लूमबर्ग इंडेक्स के लिए, इसी तरह की प्रक्रिया जनवरी, 2025 में शुरू होगी और अक्टूबर, 2025 तक चलेगी।

 

भारत के लिए इसका क्या अर्थ है?

यदि भारत को स्वतंत्रता की शताब्दी वर्ष 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के अपने सपने को साकार करना है, तो उसे प्रतिस्पर्धी बने रहने और अपने लोगों को उच्च जीवन स्तर प्रदान करने के लिए निजी पूंजी को आकर्षित करने की आवश्यक्ता  होगी। अब तक, निजी पूंजी को सही दाम पे उपलब्ध करना भारत की प्रमुख चुनौतियों में से एक रही है। अब तक, भारत बड़ी पहलों के वित्तपोषण के लिए मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा घरेलू फंडिंग पर निर्भर रहा है।   महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्यावरण-अनुकूल प्रयासों के लिए उधार लेना विशेष रूप से अधिक महंगा हो गया है।

अब अधिक सरकारी बांड विदेशी निवेशकों द्वारा खरीदे जा सकते हैं, और घरेलू वित्तीय संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) से परे निवेश के लिए उपलब्ध होगा। विशेषज्ञ अगले पांच वर्षों में,  30-40 अरब डॉलर के विदेशी निवेश के वार्षिक उछाल की भविष्यवाणी करते हैं, जिससे निजी क्षेत्र द्वारा निवेश के लिए घरेलू पूंजी की एक समान राशि मुक्त हो जाएगी।

इस कदम पर प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं।  कोटक अल्टरनेट एसेट मैनेजर्स लिमिटेड में सीईओ, निवेश और रणनीति, लक्ष्मी अय्यर ने कहा,  "भारत का जेपी मॉर्गन ईएम बांड इंडेक्स में शामिल होना एक मील के पत्थर से भी अधिक है। अर्थात यह वैश्विक निवेशकों के लिए भारत में गहरी दिलचस्पी लेने के लिए एक हरी झंडी है।"

बंधन म्यूचुअल फंड के सुयश चौधरी ने कहा, "यह न केवल भारत की वृहद स्थिरता की गारंटी देता है, बल्कि निवेशक आधार में विविधता लाता है, जिससे भारत के पूंजी बाजार में गतिशीलता आती है।"

इससे रातों-रात सब कुछ नहीं बदल सकता है, लेकिन इससे भारत में धन के निरंतर प्रवाह का द्वार खुलता है। आगे बढ़ते हुए यह उम्मीद की जाती है कि भारत एफटीएसई जैसे अन्य प्रमुख सूचकांकों में प्रवेश करेगा, जो छह गुना बड़ा है।

 

तो यह इतनी बड़ी बात क्यों है?

मुख्य रूप से, वैश्विक बांड सूचकांक निवेशकों - जिनमें म्यूचुअल फंड, पेंशन फंड और निष्क्रिय निवेशक शामिल हैं -  को कई क्षेत्राधिकारों में बांड संचलनों को ट्रैक करने में मदद करते हैं, जिससे वे तुलना करने में सक्षम होते हैं जो उनके निवेश का मार्गदर्शन करते हैं। इस प्रकार वैश्विक सूचकांकों में भारत के शामिल होने से कई लाभ हो सकते हैं।

पहला, इसका अर्थ यह है कि विदेशी निवेशकों के बीच इस बात पर व्यापक सहमति है कि देश पर्याप्त वित्तीय स्थिरता तक पहुंच गया है और वैश्विक निवेश पोर्टफोलियो में भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) को शामिल करने की चाहत है।

दूसरा, इससे आम तौर पर सरकार और अंततः भारतीय कंपनियों के लिए उधार लेने की लागत में कमी आती है क्योंकि जब किसी देश में बांड की मांग बढ़ती है और आपूर्ति सीमित रहती है, तो मुनाफा (यील्ड) कम हो जाता है।

तीसरा, सरकारी प्रतिभूतियों का एक बड़ा हिस्सा विदेशी निवेशकों के पास होने से, घरेलू संस्थागत निवेशक बाजार में उपलब्ध अतिरिक्त धन के साथ दीर्घकालिक वित्त पोषण अंतरालों के निवारण के लिए, अपनी पूंजी निवेश करने के अन्य रास्ते तलाशेंगे । जैसे कि बुनियादी ढांचे और जलवायु फाइनेंस जैसे क्षेत्र जहां ज़रूरतें अधिक हैं।  

 

वित्तीय परिदृश्य का मार्गनिर्देशन

इन बदलती गतिशीलताओं से पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए, भारत को परियोजनाओं की तैयारी में सुधार, विश्वसनीय परियोजनाओं की पाइपलाइन तैयार करने, कार्यान्वयन क्षमता को उन्नत करने और ऐसी ही कुछ अन्य चुनौतियों का भी एक साथ समाधान करने की आवश्यकता होगी।

किसी भी अच्छी खबर की तरह, वास्तविकता की जांच भी जरूरी है। बड़ी लीग में शामिल होने से भारत का ऋण बाजार वैश्विक प्रतिकूलताओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है, जो रोलर कोस्टर की सवारी के समान है। इस आर्थिक रोलर कोस्टर को ट्रैक पर रखने के लिए, भारतीय मौद्रिक और वित्तीय क्षेत्र के अधिकारियों को विवेकपूर्ण बने रहने और सशक्त व्यापक आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र संकेतकों को बनाए रखने की आवश्यकता होगी।

पिछले कुछ वर्षों में, विश्व बैंक ने भारत की कई पहलों का समर्थन किया है।  जैसे कि निजी पूंजी जुटाने के लिए मिश्रित वित्त उपकरणों को बढ़ावा देना, जलवायु जोखिमों का आंकलन  करने के लिए देश की क्षमता में सुधार करने में मदद करना, डेकार्बोनाइज करने के लिए एमएसएमई की मदद करना।  इसके अलावा, नगर पालिकाओं और कृषि के वित्तपोषण के लिए नए दृष्टिकोण का समर्थन करने जैसी कई पहलों  का समर्थन किया है।

हम एक वित्तीय लैंडस्केप तैयार करने में सरकार और अन्य प्रमुख हितधारकों का समर्थन करना जारी रखेंगे जो बाजार के उतार-चढ़ाव के खिलाफ भारत के प्रतिरोधक्षमता को मजबूत करेगा और इसकी वित्तीय मध्यस्थता क्षमता को गहरा करने में मदद करेगा।


Authors

लोरौं गोने

अग्रणी वित्तीय क्षेत्र विशेषज्ञ, वित्त, प्रतिस्पर्धात्मकता और नवाचार वैश्विक अभ्यास

तुषार अरोड़ा

वरिष्ठ वित्तीय क्षेत्र विशेषज्ञ

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