लगभग चार दशकों के कड़े प्रयासों और नए अनुसंधानों का नतीज़ा है कि एचआईवी संक्रमण के नए मामले अपने सबसे निचले स्तर पर हैं. हालांकि, हालिया आंकड़ों के मुताबिक प्रगति की चाल धीमी पड़ गई है, और एचआईवी एक वैश्विक ख़तरा बना हुआ है। अब तक, एचआईवी के कारण लगभग 3 करोड़ 70 लाख जानें गई हैं, और वर्तमान में क़रीब 3 करोड़ 80 लाख लोग एचआईवी संक्रमण के साथ जीवन (पीएलएचआईवी, पीपल लिविंग विद एचआईवी) गुजार रहे हैं। (ग्लोबल एड्स अपडेट 2021)
भले ही अत्याधुनिक जैव-चिकित्सा उपायों और वैज्ञानिक अनुसंधानों के विस्तार ने एचआईवी के उपचार और रोकथाम के सफ़ल उपायों और रणनीतियों को जन्म दिया है, लेकिन इसका लाभ सभी लोगों तक एकसमान रूप से नहीं पहुंचा है और एचआईवी संक्रमण के ज्यादातर नए मामले सामाजिक रूप से हाशिए पर आने वाले कुछ विशेष समूहों के बीच पाए गए हैं।
2020 में 15 लाख नए एचआईवी संक्रमणों में से ज्यादातर (67%) विशिष्ट समुदायों (समलिंगी पुरुष, यौनकर्मी, और नशीली दवाओं का इंजेक्शन लेने वाले लोग) या उनके यौन साथी (2021 ग्लोबल एड्स अपडेट) थे।ये वे समुदाय हैं, जो लगातार समाज के हाशिए पर रहे हैं, और ये ज्यादातर देशों में एचआईवी सुविधाओं की पहुंच से बाहर हैं।
2030 तक एचआईवी और एड्स को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करने और यूएनएड्स (एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम) द्वारा निर्धारित वैश्विक 95-95-95 लक्ष्यों (90 प्रतिशत एचआईवी संक्रमितों का आधिकारिक परीक्षण, एचआईवी संक्रमण के पुष्ट मामलों में से 90 प्रतिशत मामलों में एंटी-रेट्रोवायरल थैरेपी (आर्ट) अपनाना , और उपचार के बाद 90 प्रतिशत लोगों के भीतर वायरस के लक्षणों का लगातार शमन करना) तक पहुंचने के लिए ये बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि एचआईवी से जुड़ी असमानताओं को पैदा करने वाले सामाजिक और संरचनात्मक कारकों से निपटा जाए और एचआईवी की रोकथाम, देखभाल और उपचार सेवाओं तक सभी की समान पहुंच सुनिश्चित की जाए। 2021 में विश्व एड्स दिवस का विषय भी यही है: “असमानता का अंत हो. एड्स का ख़ात्मा हो. महामारियों का विनाश हो।"
कोरोना महामारी का प्रभाव
महामारी ने न सिर्फ़ एचआईवी सुविधाओं को बाधित किया बल्कि इसके कारण सामाजिक-आर्थिक असमानता की खाई और भी चौड़ी हो गई। जिसके परिणामस्वरूप वंचित समूहों के एचआईवी से संक्रमित होने की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ गई हैं और उनकी एचआईवी सुविधाओं तक पहुंच भी घट गई है।
- पहली बात, एचआईवी संक्रमित लोग कोरोना वायरस के प्रति संवेदनशील हैं और आम लोगों की तुलना में उनके लिए कोरोना संक्रमण से मौत का जोखिम भी दो गुना है।
- दूसरा, एचआईवी संक्रमित लोगों की कोरोना के खिलाफ़ टीकाकरण समेत स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बेहद सीमित है। अभी तक, उप-सहारा अफ्रीका में 5 प्रतिशत से भी कम एचआईवी संक्रमित लोगों को कोरोना की कम से कम एक टीका लगाया गया है।
- तीसरा, कोरोना के कारण तालाबंदी के फ़ैसले ने कई देशों, ख़ासकर विकासशील देशों में एचआईवी सुविधाओं को बाधित किया है।
ग्लोबल फंड द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर में 40 प्रतिशत से अधिक एचआईवी परीक्षण सेवाएं बाधित हुईं, जिसके कारण एचआईवी निदान, देखभाल के लिए परामर्श और उपचार की शुरुआत जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं में भारी गिरावट आई है। यूएनएड्स के एक मॉडल विश्लेषण के अनुसार एचआईवी की उपचार सुविधाओं में 50 प्रतिशत की गिरावट अगर 6 महीनों तक जारी रही तो एड्स से संबंधित मृत्यु दर वापिस 2011 के स्तर पर पहुंच जाएगी। इसके अलावा, आर्थिक मंदी के कारण राजस्व में कमी आई है, जिसके कारण कई गरीब देशों की एचआईवी सहित आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित करने की क्षमता को बाधित किया है। कोरोना महामारी के दौरान एचआईवी कार्यक्रम सुचारू रूप से चल सकें, इसके लिए ज़रूरी है कि दुनिया भर में एचआईवी और कोविड-19 से जुड़ी प्रतिक्रियाओं में निवेश को बढ़ाया जाए और ये सुनिश्चित किया जाए कि वे समावेशी, न्यायसंगत, सुलभ और अधिकार-आधारित हों। ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी है ताकि हाशिए पर आने वाले उन समूहों तक पहुंच बनाई जा सके जो एचआईवी और एड्स के खिलाफ़ वैश्विक प्रतिक्रियाओं का हिस्सा नहीं बन सके है।
भारत के एचआईवी कार्यक्रमों से जुड़े सबक
सामान्य आबादी तक एचआईवी के प्रसार (0.22 प्रतिशत) का स्तर बेहद कम होने के बावजूद, भारत में एचआईवी संक्रमण में दुनिया में (दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद) तीसरे स्थान पर है, जहां लगभग 24 लाख भारतीय एचआईवी संक्रमण से पीड़ित हैं। भारत में एचआईवी महामारी कुछ ख़ास तबकों और वंचित समूहों के बीच संकेंद्रित है। विश्व बैंक ने इन समूहों के बीच लक्षित रोकथाम (टीआई) पर ध्यान केंद्रित करते हुए विगत दो दशकों में अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए) के ज़रिए भारत के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में लगभग 81 करोड़ अमरीकी डॉलर (एनएसीपी I, II, III और IV) का निवेश किया है।
विश्व बैंक ने कार्यक्रम में वैश्विक अनुभवों को लागू करते हुए विश्व भर में भारतीय कार्यक्रम से जुड़े सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों का प्रसार करने में सहायता की है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के विभिन्न चरणों के आंकड़े, जिनमें से कुछ जुलाई 2020 में प्रकाशित हुए हैं, ये बताते हैं कि एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में 2010 के स्तर से 37 प्रतिशत और 1997 में महामारी के चरम से 86 प्रतिशत की गिरावट आई है. साथ ही, 2004 से 2019 तक एड्स से संबंधित मौतों में 66% की लगातार गिरावट आई है। विश्व बैंक समर्थित राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण सहायता परियोजना के मूल्यांकन से पता चला है कि लक्षित हस्तक्षेप लागत प्रभावी थे और परियोजना की लक्षित आबादी तक पहुंच की इकाई लागत वैश्विक स्तर पर अनुमानित लागतों से लगभग तीन गुना कम थी।
एचआईवी कार्यक्रमों के प्रसार जुड़ी असमानताओं, ख़ासकर कोरोना महामारी के दौरान असमानताओं में हुए इज़ाफे को समाप्त करने के लिए भारत में एचआईवी प्रतिक्रियाओं द्वारा नवाचार आधारित सेवा मॉडलों को अपनाना बेहद ज़रूरी है।
भारत का एचआईवी कार्यक्रम दुनिया के सबसे बड़े और सफ़ल कार्यक्रमों में से एक था, जिससे जुड़े महत्त्वपूर्ण सबकों में शामिल हैं:
1) हाशिए पर आने वाले समुदायों को प्रतिक्रिया के केंद्र में रखना:
कार्यक्रम का मूल सिद्धांत है: "स्वास्थ्य और मानवाधिकार." जो हाशिए पर आने वाले समुदायों को संरक्षित और सशक्त करता है। कार्यक्रम से जुड़े समूहों को लक्षित हस्तक्षेपों की कार्यान्वयन योजना, मानचित्रण, सहकर्मी आधारित पहुंच-विस्तार योजना और अधिकारों के प्रचार-प्रसार में शामिल किया गया था. इसके कारण वे एचआईवी और एड्स के अलावा अन्य मुद्दों जैसे कोरोना महामारी के विरुद्ध कदम उठाने में सफ़ल रहे। कई राज्य एड्स नियंत्रण इकाइयों, रणनीति बैठकों, और कार्यान्वयन समीक्षा और परामर्श प्रक्रिया में भी इन समूहों को शामिल किया गया. ऐसे मॉडलों की सहायता से वंचित समुदायों तक सेवाओं को पहुंचाने में मदद मिली है, जो उनकी ज़रूरतों पर आधारित होने के साथ-साथ दंडात्मक कानूनों जैसी कानूनी और राजनीतिक बाधाओं को दूर करने के लिए साहसिक और सतत प्रयासों पर आधारित है।
2) एचआईवी रोकथाम, परीक्षण और उपचार सेवाओं के घर और समुदाय आधारित वितरण का विस्तार और देखभाल के विभेदित मॉडल को बढ़ावा देना:
ये मॉडल वंचित समुदायों तक सेवाओं को पहुंचाने और उन्हें उनकी ज़रूरतों के अनुरूप आकार देने में सहायक हैं। इस तरह के दृष्टिकोणों का उपयोग उन सभी रणनीतियों में किया जाता है जिनका उद्देश्य ऐसे समुदायों तक पहुंच स्थापित करके असमानताओं को समाप्त करना है, जो हाशिए पर हैं और कोरोना महामारी के दौरान तालाबंदी की स्थिति में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं. उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) ने एनएसीपी के चौथे के दौरान बनाए गए समुदाय-आधारित एंटी-रेट्रोवायरल उपचार (एआरटी) केंद्रों का लाभ उठाया और कई महीनों तक चलने वाली उपचार प्रक्रिया का विस्तार करते हुए अपनी नीतियों में संशोधन किया। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति 3 महीने तक इन केंद्रों से या अपने घर पर एंटी-रेट्रो वायरल दवाएं प्राप्त कर सकते हैं।
3) डिजिटल तकनीकों जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफार्मों (व्हाट्सएप, ऑनलाइन मैसेंजर, चैटबॉट, टेक्स्ट मैसेजिंग इत्यादि) के प्रयोग को बढ़ावा देते हुए उन छिपे हुए समुदायों की पहचान करना, जिन तक कोविड-19, एचआईवी एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बेहद सीमित है: एचआईवी संक्रमण से पीड़ित ऐसे लोगों, जो अपने उपचार की अगली तारीख भूल गए हैं, को याद दिलाने के लिए टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए संबंधित तारीख और आवश्यकता पड़ने पर फ़ोन पर पूछताछ करने के लिए हेल्पलाइन नंबर भेजा जा सकता है. इसके अलावा, एनएसीपी के चौथे चरण के दौरान स्थापित की राष्ट्रीय टेलीफोन हेल्पलाइन सेवा ने कोरोना महामारी के दौरान लाखों-करोड़ों भारतीयों की मदद की है।
इस साल के विश्व एड्स दिवस का विषय अत्यंत सामयिक है.
एचआईवी के खिलाफ चालीस साल की लड़ाई ने हमें सिखाया है कि बिना असमानताओं को ख़त्म किए, बिना नवाचार के और बिना समुदाय-केंद्रित, अधिकार आधारित दृष्टिकोणों को लागू किए हम महामारी को हरा नहीं सकते, ख़ासकर तब जब पूरे विश्व में एक और भयानक महामारी फैली हुई हो।
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