वर्तमान में लैंगिक हिंसा एक वैश्विक महामारी है, जहां लगभग 27 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवनकाल में कभी न कभी शारीरिक या यौन उत्पीड़न का सामना करती हैं। ख़ासकर दक्षिण एशिया में, अंतरंग साथी के हाथों आजीवन घरेलू हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस) सहने करने के मामले वैश्विक औसत की तुलना में 35 प्रतिशत ज्यादा हैं। इसके कारण काफ़ी जटिल हैं, और जिसके लिए पितृसत्तात्मक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था और रूढ़िगत परंपराएं ज़िम्मेदार हैं, जो लैंगिक भूमिकाओं को परिभाषित करती हैं।
हम जानते हैं कि महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध की गई हिंसा का प्रभाव भावनात्मक स्तर पर काफ़ी गहरा होता है और इसके कारण उन्हें (सर्वाइवर्स) अपनी सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक ज़रूरतों में रुकावटों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इससे जुड़ा सबसे दु:खद पहलू तो ये है कि एक इंसान अपनी पूरी क्षमता का दोहन नहीं कर पाता। हिंसा पीड़ित लड़कियां और महिलाएं अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मोर्चे पर पिछड़ जाती हैं और साथ ही समाज में उनकी भागीदारी पर भी प्रभाव पड़ता है। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा अर्थव्यवस्था के लिए भी काफ़ी घातक है। ऐसा अनुमान है कि इसके चलते वैश्विक स्तर पर 15 खरब अमेरिकी डॉलर (वैश्विक जीडीपी का 2 प्रतिशत) का नुकसान उठाना पड़ता है।
लैंगिक हिंसा विकास और समृद्धि के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है
बीते कुछ सालों में लैंगिक हिंसा को लेकर विश्व बैंक के दृष्टिकोण में और ज्यादा विकास हुआ है, महिला अधिकारों के लिए वैश्विक आंदोलनों से प्रभावित होने के साथ-साथ हिंसा के नकारात्मक प्रभावों को लेकर गहरी समझ रखता है। पिछले दस सालों में विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया में कृषि, खाद्य, जल और परिवहन जैसे कई क्षेत्रों में चलाए जा रहे कार्यक्रमों के साथ लैंगिक हिंसा के खिलाफ लड़ाई को एक अभिन्न अंग के रूप में शामिल किया है। जैसा कि हम जानते हैं कि लैंगिक हिंसा के विरुद्ध 2022 का 16 डेज ऑफ एक्टिविज्म शुरू हो गया है, ऐसे में विश्व बैंक हिंसा रोकने के लिए विशेष नीतियों और समाधानों के माध्यम से विभिन्न देशों की सहायता के लिए पहले से कहीं ज्यादा प्रतिबद्ध है।
लैंगिक हिंसा के विरुद्ध लड़ाई का समर्थन
लैंगिक हिंसा कई क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली एक जटिल चुनौती है। हमारा दृष्टिकोण महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य, सामान्य हितों और सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली सेवाओं के वितरण को प्राथमिकता देता है। इसमें महिलाओं एवं लड़कियों के लिए सुरक्षित स्थानों का निर्माण, आर्थिक अवसरों तक पहुंच को सुनिश्चित करना और उनकी सुरक्षा के लिए बुनियादी अवसंरचना और व्यवस्थाओं का निर्माण शामिल है।
वकक्षा में शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए संसाधनों के प्रबंधन पर आधारित परियोजना (इनहैंसिंग क्लासरूम टीचिंग एंड रिसोर्सेस प्रोजेक्ट) विश्व बैंक के समर्थन से भारत के नागालैंड में लगभग 2,000 सरकारी स्कूलों में लैंगिक हिंसा के विरुद्ध पहलों को लागू कर रही है। नागलैंड में लगभग 64 प्रतिशत महिलाएं अपने खिलाफ होने वाली हिंसा की न तो रिपोर्ट दर्ज कराती हैं और न ही कोई सहायता मांगती हैं। 2015-2019 के बीच चाइल्डलाइन कोहिमा जैसे एक नागरिक समाज संगठन ने अपनी हेल्पलाइन के आधार पर "बच्चों की सुरक्षा" जुड़े 500 मामले दर्ज किए। यह परियोजना स्कूलों में शिक्षा के वातावरण को हिंसा से सुरक्षित बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसके तहत लड़कियों के लिए अलग शौचालयों का निर्माण करना; बाल-हिंसा के प्रति समझ पैदा करने के लिए अभिवावकों, शिक्षकों, छात्रों और समुदाय के साथ मिलकर काम करना और स्कूलों को हिंसा की घटनाओं से निपटने के लिए तैयार करना शामिल है।
तमिलनाडु में, चेन्नई सिटी पार्टनरशिप: सस्टेनेबल अर्बन सर्विसेज़ प्रोग्राम बस स्टॉप के स्थान, पर्याप्त रोशनी और फुटपाथ जैसी सुरक्षा आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान देकर महिलाओं और लड़कियों के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को हिंसा या यौन उत्पीड़न से सुरक्षित बनाने का प्रयास करता है। इसके अलावा, इस कार्यक्रम का लक्ष्य लैंगिक हिंसा के मामलों की निगरानी करना और उससे निपटने के लिए एक मजबूत व्यवस्था के निर्माण करना है। चूंकि 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं सार्वजनिक परिवहनों में असुरक्षित महसूस करती हैं, शहरी कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी और उनकी गतिशीलता बढ़ाने के लिए ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं। इससे महिलाओं के श्रमबल का हिस्सा बनने में आने वाली बाधाएं भी दूर होंगी।
युद्ध, आपदा एवं अन्य कोई समस्या लैंगिक हिंसा को और ज्यादा तीव्र कर देती है। वर्तमान में बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले में लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं, जो म्यांमार के रखाइन राज्य में हिंसा और उत्पीड़न के वातावरण से भागकर आए हैं। बांग्लादेश की सरकार कॉक्स बाजार में विश्व बैंक की सहायता से हेल्थ एंड जेंडर प्रोजेक्ट चला रही है, जो हिंसा पीड़ित महिलाओं को सुरक्षित प्रवास की सुविधा प्रदान करता है, जहां वे दूसरी महिलाओं के साथ रह सकती हैं, अपने बच्चों के लिए पोषण सुविधाएं हासिल कर सकती हैं, और मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्राप्त कर सकती हैं।
वर्तमान में, शिविरों के भीतर और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाली चार लाख से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां इन सुविधाओं का उपयोग कर रही हैं। इनमें रोहिंग्या शरणार्थियों के अलावा कॉक्स बाजार में रहने वाली स्थानीय महिलाएं भी शामिल हैं।
समृद्धि और सशक्तिकरण की राह
ऐसे में, नीति निर्माता और अंतर्राष्ट्रीय विकास संस्थान महिलाओं और लड़कियों को हिंसा से सुरक्षित रखने के लिए क्या कर सकते हैं??
सबसे पहले तो कानूनी और नीतिगत सुधारों का समर्थन जारी रखना होगा। लैंगिक समानता स्थापित करने की दिशा में ऐसी नीतियों का विकास करना होगा, क्योंकि लैंगिक हिंसा लिंग असमानता के कारण जन्म लेती है और उसे बनाए रखने में योगदान देती है। उदाहरण के लिए, भूटान सरकार के साथ मिलकर हमने राष्ट्रीय लिंग समानता नीति तैयार करने में उनकी मदद की। इसका मुख्य लक्ष्य महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा को रोकना है। हमने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और लैंगिक हिंसा की घटनाओं से जुड़ी शिकायतों को दर्ज कराने के लिए महिलाओं की सुरक्षा की खातिर ऐसी व्यवस्थाओं के निर्माण में बांग्लादेश सरकार की भी सहायता की है, जिसके तहत जॉब्स डेवलपमेंट पॉलिसी क्रेडिट परियोजना चलाई जा रही है।
दूसरा, घरेलू हिंसा और लैंगिक हिंसा के खिलाफ बनाए गए मौजूदा कानूनों के बारे में जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। हालिया वर्षों में, नेपाल, पाकिस्तान और मालदीव जैसे कई दक्षिण एशियाई देशों ने यौन हिंसा और उत्पीड़न से जुड़े कानूनों में बदलाव किया है। हालांकि, इन्हें लागू करना इसलिए भी कठिन हो जाता है क्योंकि महिलाओं के अधिकारों को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है। हमें इन कानूनों को अपनाने, उन्हें लागू करने और उसके संबंध में जागरूकता फैलाने के लिए अधिकारियों के क्षमता निर्माण में सरकारों के साथ मिलकर काम करना होगा।
तीसरा, लैंगिक हिंसा की रोकथाम के लिए ज़रूरी है कि युद्धस्थलों या विवादित इलाकों में ज़रूरी सुविधाओं के अभाव को दूर किया जाए। अतीत के अनुभवों से हमें पता चलता है कि संघर्षरत क्षेत्रों में राज्य की सुविधाओं की पहुंच सीमित होती है। इसलिए ये ज़रूरी है कि इस संदर्भ में चलाए जा रहे कार्यक्रमों में लैंगिक हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए लाइफलाइन सुविधाएं भी शामिल की जाएं। विश्व बैंक जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान संयुक्त राष्ट्र संघ और गैर -सरकारी संगठनों जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं के साथ मिलकर ये सुनिश्चित करें कि ऐसे क्षेत्रों में आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों। संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में महिला पीड़ितों तक पहुंचने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे महिला संगठनों के साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है।
लैंगिक हिंसा से सिर्फ़ मानवीय क्षति नहीं होती बल्कि इससे किसी समाज की गरीबी, असमानता से जूझने और समृद्धि हासिल करने की क्षमता भी नष्ट होती है। आइए लैंगिक हिंसा से मुक्त एक दुनिया बनाने के लिए एक साथ मिलकर काम करें।
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