इकबाल इलाही ने स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ी और सबसे महत्वाकांक्षी रेलवे परियोजनाओं में से एक, पूर्वी समर्पित फ्रेट कॉरिडोर (ईडीएफसी) के एक परियोजना स्थल पर नई नौकरी शुरू करने से पहले अपनी पहली ब्रीफिंग प्राप्त की।
जब उन्होंने ठेकेदार की निर्माण-संबंधी ब्रीफिंग के हिस्से के रूप में 'लिंग आधारित हिंसा' और 'यौन उत्पीड़न' शब्द सुना तो उनकी आँखें चौड़ी हो गईं। उन्होंने पहले कभी किसी नियोक्ता को इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर बात करते नहीं सुना।
ठेकेदार ने एकत्र कामगारों से यह पूछते हुए शुरुआत की कि यदि कोई उनकी पत्नियों, बहनों, माताओं या चचेरी बहनों के साथ अनुचित व्यवहार करता है तो उन्हें कैसा लगेगा। एक बार जब सबने इस मुद्दे की गंभीरता समझ ली, तब प्रत्येक कर्मचारी को एक विशेष रूप से तैयार की गई और स्थानीय भाषा में लिखी हुई आचार संहिता पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। दिन में लड़कियों के स्कूलों और कॉलेजों के पास – जैसे संभावित 'हॉटस्पॉट' पर पुरुषों को उचित व्यवहार का पालन करने की याद दिलाने वाले निर्देशों के पोस्टर लगाए गए।
ये रोजाना की प्रात: ब्रीफिंग और रणनीतिक रूप से लगाए गए पोस्टर, लिंग-आधारित हिंसा (जीबीवी) रोकने के उपायों की श्रृंखला में से एक हैं, जो ईडीएफसी के विश्व बैंक समर्थित अनुभाग के निर्माण स्थलों पर नियमित विशेषता बन गए हैं। बैंक कुल लगभग 2 अरब डॉलर के ऋण के जरिए पंजाब में लुधियाना से उत्तर प्रदेश में मुगलसराय तक रेल कॉरिडोर के निर्माण में सहायता कर रहा है।
एक विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना में लिंग आधारित हिंसा के मुद्दों को पेश करना
विश्व बैंक की कॉर्पोरेट प्राथमिकताओं में लिंग आधारित हिंसा पर ध्यान 2018 से बढ़ गया है। यह इसलिए, क्योंकि अफ्रीका में एक बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना के एक निर्माण स्थल के पास रहने वाली नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण उन श्रमिकों द्वारा किया गया था जो कहीं और से आए थे।
इसके तुरंत बाद, ईडीएफसी के निर्माण के लिए जिम्मेदार भारतीय रेलवे की एजेंसी - डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) ने परियोजना के दायरे में जीबीवी चिंताओं को शामिल किया।
डीएफसीसीआईएल के लिए देश के कुछ सर्वाधिक घनी आबादी वाले इलाकों को पार करते हुए तीन राज्यों से गुजरने वाली 1200 किलोमीटर लंबी, इतनी विशाल ग्रीनफील्ड परियोजना में अतिरिक्त चिंताओं को शामिल करना आसान नहीं था। दिक्कतों में वृद्धि इस तथ्य से हुई कि यह परियोजना पांच साल से अधिक समय से निर्माणाधीन थी और पहले से ही भूमि अधिग्रहण की भारी चुनौतियों से निपट रही थी। भूमि अधिग्रहण ने 83,000 से अधिक भूस्वामियों को प्रभावित किया था।
फिर भी, डीएफसीसीआईएल के प्रबंध निदेशक अनुराग सचान ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने परियोजना में जीबीवी चिंताओं को जोड़ने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की और दो वरिष्ठ महिला अधिकारियों को बोर्ड में शामिल किया। सचान ने कहा, "चूंकि कस्बों और गांवों के पास श्रम शिविरों में या स्थानीय आबादी के बीच किराए के कमरों में लगभग 8,000 निर्माण श्रमिकों को महीनों तक रहना था, इसलिए हम समुदायों के लिए हमारी परियोजना के कारण उत्पन्न हो सकने वाली सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के इच्छुक थे।"
विश्व बैंक में वरिष्ठ परिवहन विशेषज्ञ और रेलवे सॉल्यूशंस के प्रमुख मार्था लॉरेंस ने कहा, "हालांकि हमने सोचा था कि कोई भी कार्रवाई किए जाने से पहले इसमें कुछ समय लगेगा, परंतु डीएफसीसीआईएल के त्वरित निर्णय लेने की दृष्टि और जिस गति से उन्होंने इस संवेदनशील मुद्दे को हल करने के उपायों को शुरू किया, वह वास्तव में सराहनीय था।"
"ईडीएफसी कार्यस्थल के पास रहने वाली महिलाओं ने कहा, "पहले जब भी कोई ट्रक चालक हमारे पास से गुजरता था, तो वे बार-बार हॉर्न बजाते थे।" "लेकिन, अब, वे रुक जाते हैं और हमें जाने देते हैं।"
ज्यादा तेजी से कार्रवाई करना
तब से, ईडीएफसी के विश्व बैंक समर्थित अनुभाग के लिए काम करने वाले सभी परियोजना ठेकेदारों को उनकी श्रम शक्ति को यौन शोषण, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न (एसईए / एसएच) के साथ-साथ वैवाहिक हिंसा के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए जिम्मेदार बनाया गया है।
और अब जब यह वर्जना टूट गई है, तो हर कोई -डीएफसीसीआईएल, अनुबंध कंपनियां, और परियोजना प्रबंधन सलाहकार – तेजी से इस दिशा में काम कर रहे हैं। वे नुक्कड़ नाटकों को प्रायोजित करके, स्कूलों और कॉलेजों तक पहुंचकर और लड़कियों को स्थानीय महिला पुलिस कर्मियों से जोड़कर ग्रामीण समुदायों के बीच जागरूकता बढ़ा रहे हैं।
डीएफसीसीआईएल के अंबाला कार्यालय में मुख्य परियोजना प्रबंधक ने एक विशेष प्रकोष्ठ भी स्थापित किया है, जहां स्थानीय लड़कियां और महिलाएं गोपनीय रूप से शिकायत दर्ज करा सकती हैं। यह प्रकोष्ठ दिल्ली मुख्यालय में स्थापित प्रकोष्ठ के अतिरिक्त है।
लैंगिक मुद्दों के बारे में जागरूक होने के कारण, एक ठेका कंपनी उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक महिला कॉलेज में शौचालय बनाने के साथ-साथ लड़कियों को आत्मरक्षा में प्रशिक्षण देने के लिए अपने स्वयं के धन का उपयोग भी कर रही है।
एनजीओ 'टुगेदर वी कैन' के साथ परियोजना की साझेदारी ने इसे और भी अधिक करने में सक्षम बनाया है। इस साल, पहली बार, अंबाला के एक महिला कॉलेज में हुए संवाद में भारतीय रेलवे में महिलाओं के लिए करियर के अवसरों को उजागर किया गया और लड़कियों को बताया गया कि वे शारीरिक एवं मानसिक हिंसा और दुर्व्यवहार के मामले में किससे संपर्क कर सकती हैं। साथ ही उन्हें उपलब्ध परामर्श और कानूनी सेवाओं के बारे में बताया गया।
संवाद में हिस्सा लेने वाली एक छात्रा ने कहा, “हमारे माता-पिता हमारे घर से दूर नौकरी करने को लेकर चिंतित होते हैं। इसलिए, यह सुनना बहुत आश्वस्त करता है कि एक नियोक्ता के पास इन मुद्दों पर मदद करने की नीति है।"
सब मिलाकर, इन उपायों का वांछित प्रभाव पड़ा है। नजदीकी गांवों की महिलाओं का कहना है कि छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न की घटनाओं में काफी कमी आई है। टोंस ब्रिज कर्यस्थल के पास रहने वाली महिलाओं ने कहा, "पहले जब भी कोई ट्रक ड्राइवर हमारे पास से गुजरता था, तो वे बार-बार हॉर्न बजाते थे। लेकिन, अब, वे रुक जाते हैं और हमें जाने देते हैं।"
हालांकि परियोजना को अभी भी स्थानीय समुदाय के साथ एक निरंतर संपर्क बनाए रखने की जरूरत है, फिर भी पीड़ितों का समर्थन और परामर्श देने वाले गैर सरकारी संगठनों और अन्य एजेंसियों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करके, और घटनाओं की सूचना दिए जाने के लिए एक टोल-फ्री नंबर स्थापित करके, यह विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना जीबीवी चिंताओं को दूर करने के लिए सही मायने में अच्छी तरह से पटरी पर है।
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