भारत-बांग्लादेश सीमा के पास, मेघालय में डॉकी इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) की तरफ़ जाने वाली सड़क काफ़ी व्यस्त रहती है, क्योंकि सड़क के एक तरफ़ लगभग 750 ट्रक कतार में खड़ी होती हैं। इनमें से ज्यादातर ट्रकों में चूना-पत्थर और गिट्टियां लदी होती हैं, जो वहां से 250 मीटर दूर बांग्लादेश के तमाबिल जाने के लिए सरकारी इजाज़त मिलने का इंतज़ार करती हैं, जहां वे माल खाली करके दुबारा माल ढुलाई के लिए वापिस लौटती हैं। यह प्रक्रिया इसलिए बनाई गई है क्योंकि भारत और बांग्लादेश एक-दूसरे के ट्रकों को अपनी सड़कों से गुजरने की अनुमति नहीं देते। बांग्लादेश में आईसीपी के दूसरी तरफ़, ऐसी कोई कतार नहीं दिखाई देती, जहां महीने में बमुश्किल 15 ट्रकें भारत आती हैं जबकि दोनों देशों के बीच व्यापार की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में, सीमाओं पर लंबे इंतज़ार, व्यस्त सड़कों और सीमित संपर्क सुविधाओं के कारण विकास के मार्ग में बाधाएं खड़ी होती हैं। इसने क्षेत्र में व्यापार,आर्थिक गतिविधियों और समग्र विकास को बाधित किया है।
प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाने जाना वाला पूर्वोत्तर क्षेत्र संपर्क सुविधाओं की कमी का शिकार है। शेष भारत से संपर्क के लिए यह बेहद तंग (22 किमी लम्बी) सिलीगुड़ी गलियारे पर निर्भर है, जिसे "चिकन नेक" के नाम से भी जाना जाता है। इसके कारण, सड़क मार्ग और व्यापार के लिए रास्ते अनावश्यक रूप से लंबे हो गए हैं। उदाहरण के लिए, सिलीगुड़ी मार्ग के जरिए त्रिपुरा में अगरतला से कोलकाता में सबसे नजदीकी बंदरगाह तक पहुंचने के लिए 1600 किमी की लंबी सड़क यात्रा करनी पड़ती है।
किसी कार्गो ट्रक के लिए इतनी लंबी दूरी तय करने का मतलब है कि यात्रा का खर्च बढ़ जाएगा, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं के के दाम भी बढ़ेंगे। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल की तुलना में, पूर्वोत्तर में वस्तुओं के दाम ग्रामीण क्षेत्रों में 60 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 30 प्रतिशत ज्यादा हैं। एकीकृत परिवहन, बुनियादी ढांचे के निर्माण और व्यापार सुविधाओं के माध्यम से इस स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है।
बेहतर जीवन के लिए बेहतर संपर्क की ज़रूरत
पूर्वोत्तर भारत में बेहतर आर्थिक अवसरों के लिए जनवरी 2023 में असम में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जहां बांग्लादेश, भारत और नेपाल के बीच मोटर वाहन समझौते को लागू करने की आवश्यकता पर व्यापक रूप से सहमति जताई गई थी। 2015 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया जा सकता है। यह समझौता इन देशों के बीच मालवाहक गाड़ियों, यात्री एवं निजी वाहनों की सीमापार अप्रतिबंधित आवाजाही को सुगम बनाने के लिए किया गया था। अगर इन ट्रकों को बांग्लादेश से होकर गुजरने की अनुमति दे दी गई तो पूर्वोत्तर के लिए, परिवहन दूरी लगभग 65 प्रतिशत और परिवहन लागत 68 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। बांग्लादेश के सड़क मार्गों से गुजरने पर अगरतला और कोलकाता के बीच 1600 किमी की दूरी घटकर 450 किमी हो जाएगी, और बांग्लादेश में चटगांव बंदरगाह तक सीधी पहुंच के बाद यह दूरी महज 200 किमी रह जाएगी।
दूरी कम होने से परिवहन लागत भी कम हो जायेगी, जिसके परिणामस्वरूप कई दूरगामी आर्थिक प्रभाव भी सामने आएंगे। जैसे, इसके कारण, प्रतिस्पर्धा और उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, वस्तुओं के दामों में कमी आयेगी और वेतन में वृद्धि होगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, सीमा से लगे भारतीय राज्यों में औसतन 4.5% से 11% वेतन वृद्धि हो सकती है, और बांग्लादेशी राज्यों, विशेष रूप से ढाका और चटगांव में औसत वेतन में 24% तक वृद्धि हो सकती है।
वास्तविक आय लाभों के संदर्भ में देखें तो सबसे ज्यादा लाभ असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों को होगा। इससे पश्चिम बंगाल सहित भारत के अन्य राज्यों को भी लाभ होगा, जहां सबसे अधिक वेतन वृद्धि पश्चिम बंगाल में होगी; वहीं उत्तर प्रदेश अपनी श्रम शक्ति और बांग्लादेश से निकटता का लाभ उठा सकता है; और महाराष्ट्र, जो भारत के प्रमुख औद्योगिक राज्यों में से एक है, वह पूर्वोत्तर और बांग्लादेश के साथ व्यापार के बेहतर अवसरों का फ़ायदा उठा सकता है। कुल-मिलाकर, मोटर वाहन समझौते से भारत और बांग्लादेश की राष्ट्रीय आय में क्रमशः 8 प्रतिशत और 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।
मूल्य शृंखलाओं के विस्तार के ज़रिए अवसरों में वृद्धि
पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में, कृषक उत्पादक कंपनियां अपने कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन मूल्य शृंखलाओं की मज़बूती के लिए नवाचारी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर रही हैं, और छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों की स्थापना में सहयोग कर रही हैं, जिनमें से ज्यादातर महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यम हैं। ये कंपनियां असम एग्री बिजनेस एंड रूरल ट्रांसफॉर्मेशन प्रोजेक्ट द्वारा समर्थित हैं और विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित हैं। क्षेत्र में उत्पादन धीरे-धीरे बढ़ रहा है ताकि मांगों को पूरा किया जा सके, और साथ ही क्षेत्र में भारत के अन्य राज्यों, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों और यहां तक कि दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ कुछ हद तक व्यापार की संभावनाएं मौजूद हैं। एकीकृत संपर्क से इन बाजारों तक पहुंच बनाई जा सकती है, जो व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा। भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में पूर्वोत्तर का महज़ 2.8 प्रतिशत योगदान है, जो इसकी क्षमताओं का बेहद छोटा हिस्सा भर है।
इस क्षेत्र की ताकत उसकी अनूठी संस्कृति, प्रकृति के प्रति सम्मान और पारंपरिक खूबसूरती में भी निहित है। मेघालय में, खासी जनजाति पेड़ों की जीवित जड़ों से पुल बनाने की पारंपरिक कला में सिद्धहस्त है, जो अब यूरोपीय शहरों में पहुंच रही है। समुदाय प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक कौशलों के संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं, और ईको-टूरिज्म (पारिस्थितिकी तंत्र को हानि पहुंचाए बिना की गई यात्रा) के लिए तैयार हैं। क्षेत्र की ताकत और पर्यावरण के अनुकूल पारंपरिक अभ्यासों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पूर्वोत्तर पर्यावरण और स्वास्थ्य से जुड़े पर्यटन के सबसे बड़े केंद्र के रूप में उभर सकता है।
अभी तो ये शुरुआत है, विकास के कई पड़ाव बाकी हैं
डॉकी की बाते करें तो इस इलाके में काफ़ी चहल-पहल बनी हुई है क्योंकि आईसीपी अभी निर्माणाधीन है। यह चेकपोस्ट 23 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, और सीमा शुल्क, आप्रवासन, परीक्षण और डिजिटल उपकरणों सहित अपनी एकीकृत सुविधाओं के साथ अगले कुछ महीनों में पूरी तरह से चालू हो जाएगा।मोटर वाहन समझौता लागू होने के बाद आईसीपी बड़ी संख्या में पर्यटकों और व्यापारियों का स्वागत करने के लिए तैयार है। विश्व बैंक के सहयोग से भारत के पूर्वोत्तर, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल में, रेलवे लाइनों के विस्तार, अंतर्देशीय जलमार्गों के निर्माण और सीमा पार व्यापार और यात्रा में सुधार समेत इस क्षेत्र में एकीकृत विकास से जुड़ी कई अन्य परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। पूर्वोत्तर में विकास की अपार संभावनाएं हैं, जिसके दोहन के लिए प्रयास शुरू किए जा चुके हैं। और यही प्रयास भविष्य में उच्चतम विकास की नींव साबित होंगे।
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