सड़क दुर्घटनाओं का प्रभाव महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग तरह से पड़ता है: जानिए क्यों?

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Globally, males under 25 are 2.7 times more likely to die in a road crash than their female counterparts. Photo: Andrzej Kubik / Shutterstock.com Globally, males under 25 are 2.7 times more likely to die in a road crash than their female counterparts. Photo: Andrzej Kubik / Shutterstock.com

दक्षिण एशिया के लिए सड़क सुरक्षा का मुद्दा उसकी विकास जरूरतों के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है, जो स्वास्थ्य, कल्याण और आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करता है। इसके लिए इस क्षेत्र के सभी देशों को एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना होगा ताकि 2030 तक सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मौतों की संख्या घटकर आधी रह जाएं। यह ब्लॉग हमारे "टुगेदर फॉर रोड सेफ्टी" अभियान का हिस्सा है।

हर साल सड़क दुर्घटना में 13.5 लाख लोग मारे जाते हैं। यह एक बहुप्रचारित आंकड़ा है। लेकिन सड़क सुरक्षा पर उपलब्ध मौजूदा वैश्विक आंकड़े दुर्घटना में मारे गए व्यक्तियों के भौगोलिक वितरण, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, और आश्चर्यजनक रूप से उनकी लैंगिक पहचान जैसी कई बारीकियों पर अधिक प्रकाश नहीं डालते। 

विश्व स्तर पर, 25 वर्ष से कम आयु वर्ग में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के सड़क दुर्घटना में मारे जाने की संभावना 2.7 गुना ज्यादा होती है। भारत के मामले में, ये अंतर और भी ज्यादा है। जहां सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले युवा लड़कों की संख्या युवा लड़कियों की तुलना में 6.2 गुना ज्यादा है। 

कम से कम इतना तो कहा जा सकता है कि ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। और ये स्पष्ट है कि परिवहन विशेषज्ञों को सड़क सुरक्षा का मुद्दा लैंगिक दृष्टिकोण से देखने की ज़रूरत है। आखिर हम सड़क दुर्घटना  से होने वाली मौतों के लैंगिक पहलू को कैसे समझाएंगे?  चलिए हम भारत के संदर्भ में इन सवालों को एक-एक करके देखें।

सड़क सुरक्षा पर उपलब्ध मौजूदा वैश्विक आंकड़े दुर्घटना में मारे गए व्यक्तियों के भौगोलिक वितरण, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, और आश्चर्यजनक रूप से उनकी लैंगिक पहचान जैसी कई बारीकियों पर अधिक प्रकाश नहीं डालते।

लैंगिक स्तर पर मौजूदा अंतराल के पीछे यात्रियों के व्यवहार और उनकी परिवहन आदतों को कारण के रूप में देखा जा सकता है। शोध ये बताते हैं कि विकासशील देशों में पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक यात्राएं करते हैं, जो उनके सड़कों पर जोखिम भरे फैसले लेने से सीधे तौर पर संबंधित है।  और कुछ हद तक ये बात सही है कि इसी कारण उनके गंभीर हादसों के शिकार होने की संभावना भी ज्यादा होती है।

लेकिन यह स्वरूप सीमित गतिशीलता, संसाधनों तक पहुंच और अवसर जैसे गंभीर मुद्दों को भी दर्शाता है। भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में एक है, जहां के श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम, महज़ 27 प्रतिशत है, जहां अधिकांश महिलाएं सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों से बाहर हैं। इसका अर्थ ये है कि वे पुरुषों की तुलना में बाहर कम निकलती हैं, अपेक्षाकृत कम दूरी की यात्राएं करती हैं और सड़क सुरक्षा से जुड़े खतरों का जोख़िम भी कम उठाती हैं।

जब कोई सड़क हादसा होता है, तो इसका प्रभाव महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग तरह से पड़ता है। अध्ययन बताते हैं कि समान गंभीरता वाले सड़क हादसों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के घायल होने और मारे जाने की संभावना कहीं ज्यादा होती है। चोटिल होने पर उनके उपचार और दुर्घटना संबंधी समुचित देखभाल मिलने की संभावना कम होती है क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं होती। साथ ही महिलाओं के पास स्थाई रूप से आर्थिक मजबूती के अन्य साधन भी कम होते हैं।

Many women are at risk of falling into poverty when a man dies or finds himself unable to work after a road crash. Photo: stockpexel / Shutterstock.com
Many women are at risk of falling into poverty when a man dies or finds himself unable to work after a road crash. Photo: stockpexel / Shutterstock.com

इसके अलावा, जैसा कि विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है, भले ही सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों और चोटों के कारण निम्न वर्गीय भारतीय परिवारों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन महिलाओं के मामले में ये स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर है। प्रत्येक आर्थिक वर्ग में सड़क दुर्घटनाओं का ज्यादा से ज्यादा बोझ महिलाओं को उठाना पड़ता है, जहां उनके कंधे घरेलू जिम्मेदारियों समेत काम का अतिरिक्त भार होता है, ख़ासकर किसी दुर्घटना के बाद देखभाल करने करने का ज़िम्मा उन्हें लेना पड़ता है। 

अपनी वित्तीय निर्भरता के कारण, सड़क हादसे में घर के पुरुष की मौत या घायल होने के बाद काम पर न जा पाने के चलते, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्र के निम्न आय वाले परिवारों की औरतें गरीबी के दलदल में फंस जाती हैं। "औरतों” पर ही मरीज़ों की देखभाल की जिम्मेदारियां होती हैं, जिसके कारण उन पर शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह के श्रम का दोहरा दबाव होता है। इस कारण महिलाओं के काम पर वापिस लौटने, आय कमाने से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने के अवसर बेहद सीमित और असमान होते हैं।"

इसके अलावा, निम्न साक्षरता दर और रोजगार के कम अनुभवों के चलते महिलाओं के लिए बीमा लाभ और मुआवजे के लिए आवेदन करना या उसका दावा करना बहुत कठिन हो जाता है । इसका परिणाम है कि ज्यादातर भारतीय महिलाओं के लिए सड़क दुर्घटना के बाद स्वास्थ्य खर्चे को उठाने या आय की हानि की भरपाई का कोई ठोस साधन नहीं होता।

 

औरतें अक्सर अतिरिक्त कामों के बोझ तले दबी होती हैं, उन पर अपेक्षाकृत अधिक जिम्मेदारियों का भार होता है, दुर्घटना के बाद घायल की देखभाल भी उन्हें ही करनी पड़ती है।

Ghaziabad, Uttar Pradesh/India- Woman with mask riding bike. Photo Credit: PradeepGaurs / Shutterstock.com
Mass transit needs to be upgraded to provide women with a safe, reliable transport alternative that will allow them to reach more jobs and services. Photo: PradeepGaurs / Shutterstock.com

जैसा कि देश भर में सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है, कुछ ऐसे कदम हैं, जो भारतीयों ख़ासकर औरतों के ऊपर पड़ने वाले सड़क दुर्घटनाओं के बोझ को कम कर सकते हैं:

  • सुरक्षित सड़कों और फुटपाथों के अलावा, गति पर बेहतर नियंत्रण और सुरक्षित वाहनों के माध्यम से हम सड़कों को सभी के लिए और भी ज्यादा सुरक्षित बना सकते हैं। विश्व बैंक के नेतृत्व में ‘ग्लोबल रोड सेफ्टी फैसिलिटी’ द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में ये सामने आया है कि सुरक्षित सड़कों के लाभकारी प्रभाव हो सकते हैं: आने वाले 24 सालों में, अगर सड़क दुर्घटनाओं में मरने और घायल होने वालों की संख्या में 50 फीसदी की कमी आती है तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 14 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो सकता है। 
  • दुनिया के कोने-कोने से हमें पढ़ने वाले, पुरुषों और महिलाओं समेत सभी लोगों से हमारा अनुरोध है कि हम अपनी प्रतिक्रियाएं भेजिए! आप क्या सोचते हैं कि किस तरह से आपकी लैंगिक पहचान ने सड़क परिवहन के आपके अनुभवों को प्रभावित किया है? आपको क्या लगता है कि नीति निर्माताओं को परिवहन क्षेत्र में व्याप्त लैंगिक अंतराल को दूर करने के लिए किस तरह के कदम उठाने चाहिए? नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय दीजिए, हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा। 
  • पीड़ितों को वित्तीय मुआवजे के लिए कानूनी परामर्श और मुफ्त कानूनी सहायता (सरकारी और गैर-सरकारी संगठन द्वारा) दी जाए |
  • इसके अलावा, स्वास्थ्य-देखभाल से जुड़ी एक वैकल्पिक प्रणाली की स्थापना और ऐसे सरकारी कार्यक्रमों को लागू करना होगा, जहां देखभालकर्ता को वेतन दिया जाए या फिर परिवार के सदस्य की देखरेख के लिए आंशिक छूट दी जाए।
  • महिलाओं के आवागमन के लिए विश्वसनीय और सुरक्षित परिवहन के साधन विकसित करने के लिए समूचे परिवहन तंत्र में बदलाव लाना होगा, जिससे की उनक़ा रोजगार और सुविधाओं तक पहुंचना आसान होगा।  इसे हासिल करने के लिए, जन-परिवहन तंत्र को महिलाओं की जरूरतों के अनुसार ढालना होगा। ख़ासतौर पर उपयोगिता, सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित करना होगा। बस स्टॉपों, स्टेशनों के आस पास प्रकाश की बेहतर व्यवस्था, और अधिक खुली जगहों के निर्माण, भीड़ के नियंत्रण और पैदल चलने की सुविधाओं के विस्तार जैसी कार्रवाईयां महत्त्वपूर्ण हैं, जो आगे चलकर प्रभावी बदलावों को जन्म दे सकती हैं।
  • भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा और दुर्घटना बीमा कार्यक्रमों को अपनी पहुंच का विस्तार करके ऐसी महिलाओं को अपने कार्यक्रमों के दायरे में शामिल करना होगा, जो कमज़ोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं या फिर जो सुविधाओं से जुड़ी जानकारियों तक पहुंच नहीं रखतीं।

दुनिया के कोने-कोने से हमें पढ़ने वाले, पुरुषों और महिलाओं समेत सभी लोगों से हमारा अनुरोध है कि हम अपनी प्रतिक्रियाएं भेजिए! आप क्या सोचते हैं कि किस तरह से आपकी लैंगिक पहचान ने सड़क परिवहन के आपके अनुभवों को प्रभावित किया है? आपको क्या लगता है कि नीति निर्माताओं को परिवहन क्षेत्र में व्याप्त लैंगिक अंतराल को दूर करने के लिए किस तरह के कदम उठाने चाहिए?  नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय दीजिए, हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।

 


Authors

वेई यान

परिवहन विशेषज्ञ

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