भारतीय के छोटे से हिमालयी गांव नोग में, गांव को काटती हुई एक स्थानीय सड़क की ढलानें हरी-भरी वनस्पतियों से भरी हुई हैं, जिनमें कठोर, स्थानीय किस्म के पेड़ और झाड़ियां शामिल हैं। 2009 में, वनस्पति लगाए जाने से पहले, मानसून के दौरान चट्टानों के फिसलने (भूस्खलन) के कारण सड़क टूट गई थी। सड़क के अंत में एक पहाड़ी की चोटी पर, नर्मदा देवी का घर है। उसे याद है कि कैसे भूस्खलन मलबे के आखिरी छोर उसके घर के आँगन तक आ गए, जिससे पूरी सड़क बाधित हो गई। इस आशंका से कि उनके घर कीचड़ भरे दलदल में गिर जाएंगे, नर्मदा देवी और आसपास की बस्तियों के निवासियों ने भूस्खलन मलबे को साफ नहीं करने का फैसला किया। इसके बजाय, उन्होंने अगली बारिश का इंतजार किया।
भारत हमेशा वार्षिक मानसून के प्रकोप से पीड़ित रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में, देश भर में रिकॉर्ड बारिश - और इसके परिणामस्वरूप भूस्खलन - जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों की एक और याद दिलाते हैं। भूस्खलन और कटाव, अचानक बाढ़, तटीय तूफान और अत्यधिक तापमान सहित प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों से देश का परिवहन क्षेत्र विशेष रूप से कमजोर और खतरे के दायरे में है। बाधित परिवहन संपर्क से सबसे ज्यादा असर कमजोर आबादी पर पड़ता है, जिससे आर्थिक अवसरों, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच और सामुदायिक संपर्क में बाधा आती है। भारत भर में समान आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए लचीले परिवहन का निर्माण महत्वपूर्ण है।
वह समुदाय जिसने भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में ढलानों पर बायोइंजीनियरिंग तकनीकों को लागू करने में मदद की। फोटो: हिमाचल प्रदेश रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड।
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में, जहां नोग स्थित है, भारी वर्षा का खतरा विशेष रूप से अधिक है। हिमालय के विशाल पहाड़ों की पृष्ठभूमि के बीच, लगातार भूस्खलन और अचानक बाढ़ स्थानीय परिवहन के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करते हैं और अक्सर सड़क संपर्क को नष्ट कर देते हैं। अतीत में, स्थानीय अधिकारियों ने दस फुट ऊंची कंक्रीट की दीवार का निर्माण करके भूस्खलन को रोकने की कोशिश की, लेकिन ये उपाय महंगे साबित हुए और निर्माण के दौरान सड़कों को लंबे समय तक यातायात के लिए बंद रखा।
2010 में, विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश राज्य सड़क परियोजना के हिस्से के रूप में जलवायु लचीली सड़कों पर एक प्रशिक्षण सत्र में भाग लेने के बाद, स्थानीय अधिकारियों ने गांवो की भूस्खलन समस्या के समाधान के रूप में प्रकृति की ओर रुख करने का फैसला किया। हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग (एचपीपीडब्लूडी) के कार्यकारी अभियंता ने पहाड़ी इलाकों को स्थिर करते हुए पूरे भूस्खलन क्षेत्र की सतह को कवर करने के लिए तार की जाली के उपयोग का आदेश दिया। फिर जाली के छिद्रों के भीतर देशी पेड़, झाड़ियां और घास लगाकर वानस्पतिक अवरोधक तैयार किया गया। जहां स्थानीय नदी से कटाव के कारण भूस्खलन होते थे, वहां इंजीनियरों ने कठोर लकड़ी के टुकड़ों और स्थानीय बाड़ पौधों का उपयोग करके क्षरण को रोकने के लिए ब्रश हेज लेयर तकनीक लागू की। जल्द ही, वानस्पतिक आवरण द्वारा ढीली मिट्टी और सतही अपवाह को स्थिर कर दिया गया, जिससे क्षेत्र में भूस्खलन की घटना कम हो गई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना ने नर्मदा देवी सहित गांव की महिलाओं को काम प्रदान किया, जिससे सामुदायिक लचीलापन बढ़ा।
इससे आगे बढ़ते हुए, हिमाचल प्रदेश राज्य सड़क कायाकल्प परियोजना हिमाचल प्रदेश के 35,000 किलोमीटर के पहाड़ी सड़क नेटवर्क पर इन बायोइंजीनियरिंग भूस्खलन रोकथाम तकनीकों का विस्तार करेगी। परियोजना राज्य भर में सड़क परियोजनाओं के डिजाइन और कार्यान्वयन में जलवायु जोखिमों को व्यवस्थित रूप से एकीकृत करने के लिए भी काम करेगी, जिसमें प्रकृति आधारित समाधानों सहित विशेष प्रावधानों को व्यक्तिगत लोकनिर्माण कार्य अनुबंध में शामिल किया जाएगा। हिमालय की पहाड़ी सड़कों में जलवायु लचीलापन को स्थायी बनाने में मदद के लिए एक आपदा जोखिम प्रबंधन नीति और आपातकालीन चेतावनी एवं प्रतिक्रिया प्रणाली विकसित की जाएगी। इससे हिमाचल प्रदेश में स्थानीय समुदायों, व्यवसायों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को रणनीतिक परिवहन नेटवर्क से जुड़े जलवायु और प्राकृतिक आपदाओं के अनुकूल होने और प्रतिक्रिया करने की अपनी क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
चूंकि भारत चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं का सामना करता है, इसलिए विश्व बैंक की साउथ एशिया रीजन ग्लोबल ट्रांसपोर्ट प्रैक्टिस इकाई देश के राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों, ग्रामीण सड़कों, रेलवे, शहरी परिवहन और अंतर्देशीय जलमार्गों में सुधार करके लचीला परिवहन नेटवर्क बनाने के लिए काम कर रही है। दिसंबर 2021 में, विश्व बैंक की डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट ग्लोबल प्रैक्टिस की साझेदारी में, टीम ने भारत के लिए आभासी "जलवायु लचीला परिवहन" वेबिनार की श्रृंखला की पहली कड़ी प्रस्तुत की। इन वेबिनार का लक्ष्य पूरे भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में दीर्घकालिक लचीला परिवहन बुनियादी ढांचा और सेवाएं प्रदान करना और संपूर्ण समुदाय एवं शासन के सभी स्तरों पर निर्णयकर्ताओं के साथ काम करने के लिए एक साझा दृष्टिकोण और रणनीति बनाना है।
स्थानीय अधिकारियों द्वारा नोग गांव में, पहली बार तार-जाल लगाने के तीन साल बाद, हरे-भरे भूस्खलन रोधई वनस्पतियों ने जड़ें जमा ली हैं। पीले बेल के फूलों से लदी टेकोमा जैसी किस्में, ढलानों को एक स्वर्णिम रंगत देती हैं। झाड़ियों को लगाने और उन्हें पानी देने में अपने पड़ोसियों के साथ मदद करने वाली नर्मदा देवी के लिए, बायोइंजीनियरिंग तकनीक ने भूस्खलन के जोखिम को कम किया है और स्थानीय समुदाय के लिए प्रभावी सुधार किया है। उसने कहा कि "भूस्खलन अब बहुत कम होता है, और मेरे घर के नीचे की सड़क मानसून के दौरान पूरी तरह से चालू रहती है"। यही सड़क हर मानसून के दौरान औसतन एक महीने तक बंद रहती। जलवायु परिवर्तन के भूगोल में, कुछ स्थान दूसरों की तुलना में अधिक जोखिम में हैं, और शक्तिशाली हिमालय की तलहटी में, हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय गांव, विशेष रूप से असुरक्षित हैं। लेकिन झाड़ियों पर झाड़ियां लगाकर, नोग के निवासियों ने अपने घरों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाते हुए और अपने समुदाय के लिए अधिक समृद्ध भविष्य का निर्माण करते हुए स्थानीय परिवहन डिजाइन में जलवायु लचीलापन की अवधारणा को जोड़ने में मदद की है।
इस आलेख को विश्व बैंक परिवहन विशेषज्ञ विजेता बेज़म और विश्व बैंक के वरिष्ठ परिवहन विशेषज्ञ ओसीन केउ के इनपुट से समृद्ध किया गया है।
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