ग्रामीण भारत में नए कौशल की मदद से नई ऊंचाईयां छू रहे उद्यमी

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ग्रामीण भारत में नए कौशल की मदद से नई ऊंचाईयां छू रहे उद्यमी तमिलनाडु में एक व्यक्तिगत पहल प्रशिक्षण में भाग लेती महिलाएं। फ़ोटो क्रेडिट: विश्व बैंक

वालरमथी अपने परिवार में स्नातक करने वाली पहली सदस्य थीं, जहां बाकी सभी मजदूर हैं।   लेकिन इसके बावजूद वह नौकरी नहीं पा सकीं। इसलिए उन्होंने कुछ अलग करके दिखाया। उन्होंने तमिलनाडु के सलेम जिले में अपने घर के पास ही साड़ी की एक छोटी सी दुकान खोल ली। अपने इलाके में फैशन में चल रही साड़ियों की जबरदस्त मांग को देखते हुए उन्होंने चेन्नई और तिरुपुर जैसे नजदीकी परिधान केंद्रों से माल मंगवाना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे उसने उसका व्यवसाय आगे बढ़ा, उसने अन्य लोगों को भी रोज़गार दिया।

अपने व्यवसाय को सफ़ल होते देख वालरमथी ने व्हाट्सएप के जरिए ऑनलाइन बिक्री शुरू की और अपने गांव के आसपास होने वाली शादियों, सांस्कृतिक समारोहों में फूलोंं की आपूर्ति का काम भी शुरू किया।

वालरमथी के लिए व्यवसायी बनना बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि इसका मतलब था गरीबी के उस चक्र को तोड़ना जिसमें उनका परिवार पीढ़ियों से फंसा हुआ था। उसने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा, “अगर मैं भी मज़दूरी करती तो मेरा परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी की दलदल में फंसा रहता। इसलिए मैंने अपना खुद का रास्ता चुना।”

वालरमथी की कहानी उन कई कहानियों में से एक है जो ग्रामीण भारत में उद्यमिता की ओर लोगों के बढ़ते रुझान की ओर इशारा करती हैं।

उद्यमिता एक ज़रूरत है

पिछले दो दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था में एक तरह का संरचनात्मक बदलाव हुआ है, जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोग कृषि कार्यों को छोड़कर दूसरे व्यवसायों में जा रहे हैं। महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप लगभग दो गुने हो गए हैं। 2017 में इनकी संख्या 10 प्रतिशत थी, वो 2022 में बढ़कर 18 प्रतिशत हो गई है।  सूक्ष्म और लघु उद्यमों को पहली बार चलने वाले व्यवसाईओं को काफ़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा ह।  उन्हें अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में कठिनाई होती है। नतीजा, उनमें से कई केवल जीवन निर्वाह के स्तर पर ही रह जाते हैं और विकास की संभावनाएं सीमित रहती हैं। विशेष रूप से महिला उद्यमियों के पास न इतने अवसर होते हैं और न इतने संसाधन कि वे अपने व्यावसायिक कौशल में सुधार ला सकें और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते उन्हें व्यापार विस्तार के लिए भी पर्याप्त समय नहीं मिलता।

कई नए अध्ययनों से पता चला है कि मनोविज्ञान आधारित प्रशिक्षणों से किसी व्यक्ति में व्यावसायिक गुणों के विकास से सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के मालिकों की निर्णयन क्षमता में सुधार लाया जा सकता है।  और कुछ मामलों में पुरुषों और महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों के बीच मौजूद कार्य प्रदर्शन के अंतराल को कम भी किया जा सकता है।

इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर, विश्व बैंक के साउथ एशिया जेंडर इनोवेशन लैब ने बैंक की कृषि टीम के साथ मिलकर तमिलनाडु की कुछ महिला उद्यमियों के बीच सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण के प्रभावों का अध्ययन किया। यह अध्ययन विश्व बैंक द्वारा समर्थित तमिलनाडु ग्रामीण परिवर्तन योजना (जिसे स्थानीय स्तर पर 'वझंदु कट्टुवोम’ नाम से भी जाना जाता है) के एक हिस्से के तौर पर किया गया था।

व्यक्तिगत पहल प्रशिक्षण क्या है ?

व्यक्तिगत पहल प्रशिक्षण के तहत सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण दिया गया। यह एक मनोविज्ञान आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम है जिसे उद्यमियों के लिए डिजाइन किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य एक सक्रिय सोच विकसित करना है ताकि उद्यमी अपने व्यवसाय में विस्तार करने के साथ-साथ, नए रोजगार सृजित करें और गरीबी कम करने में योगदान दे सकें।

दक्षिण एशिया के लिए इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम नए हैं क्योंकि यहां की सांस्कृतिक और उद्यमिता संबंधी पृष्ठभूमि दुनिया के अन्य हिस्सों से अलग हैं। इसलिए, भारत में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की प्रभावशीलता की जांच के लिए विश्व बैंक की जेंडर लैब ने 'डोरवेज' और 'हैंड इन हैंड इंडिया' के सहयोग से एक सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील  पाठ्यक्रम बनाया।

कोर्स की 12 सप्ताह की अवधि में तमिलनाडु के 10 जिलों से आए 1300 उद्यामियों (महिला और पुरुष दोनों) ने 3 घंटों के साप्ताहिक प्रशिक्षण सत्रों में भाग लेना शुरू किया।  इस प्रशिक्षण ने समस्याओं के समाधान, स्वयं-प्रेरणा, रचनात्मकता, नवाचार और संसाधनशीलता जैसे महत्वपूर्ण कौशलों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया और प्रतिभागियों से अपेक्षा की गई कि वे सीखी गई बातों को सक्रिय रूप से लागू करें।

नए विचारबेहतर आय

इस कार्यक्रम के शुरुआती नतीजे उत्साहजनक हैं। यह बताते हुए कि कैसे प्रशिक्षण ने उन्हें नए प्रयोग और रणनीति लागू करने के लिए प्रेरित किया, वालरमथी कहती हैं, "अब मेरे पास कई नए विचार हैं और मेरी आय बढ़ी है।”

त्रिची जिले की रहने वाली उषा अकेली मां होने की जिम्मेदारियों के बीच परिवार के भरण पोषण के लिए लेडीज टेलरिंग की दूकान चलाने में संघर्ष कर रही थीं। प्रशिक्षण ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और अपनी दुकान को व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए और एक सहायक नियुक्त करने की प्रेरणा दी। उषा न केवल अपना व्यवसाय को मजबूती से पुनर्स्थापित कर चुकी हैं बल्कि वह अब दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनना चाहती हैं।

विलुप्पुरम जिले में रहने वाले प्रभु पहले एक सामान्य नील पाउडर का व्यवसाय चलाते थे। प्रशिक्षण में शामिल होने के बाद उन्होंने अपने मशीनों को अपग्रेड किया और नए उत्पादों को अपने व्यवसाय में शामिल कर अपनी आय बढ़ाई। अब प्रभु ने अपने व्यवसाय को और ज्यादा विस्तार देने के लिए और जमीनें खरीदी हैं।

अन्य प्रतिभागियों ने बताया है कि कैसे वे प्रशिक्षण के दौरान सीखे हुए सिद्धांतों को अपने दैनिक कार्यों में शामिल कर रहे हैं। जैसे डिलीवरी सेवाओं की पेशकश करना, ई-पेमेंट्स अपनाना, उपभोक्ता संतोष पर ध्यान देना, मार्केटिंग, नवाचार और उत्पादों के विविधीकरण पर काम करना।  कई उद्यमी अब चुनौतियों का आत्मविश्वास से सामना कर रहे हैं।

शुरूआती परिणाम

ऐसे प्रशिक्षणों की मांग काफी बढ़ गई है। क्योंकि जिन लोगों को इन प्रशिक्षणों की पेशकश की गई थी, उनमें से लगभग  70 प्रतिशत उद्यमियों ने इसमें भाग लिया।

कुछ महीनों में इन उद्यमियों का फिर से सर्वेक्षण किया जाएगा ताकि प्रशिक्षण प्राप्त करने और न करने वालों के परिणामों की तुलना की जा सके। फिर अगले 18 महीनों तक उनकी व्यावसायिक गतिविधियों पर नज़र रखी जाएगी ताकि मध्यम अवधि में प्रशिक्षण के बाद उनकी आजीविका और व्यवसाय पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन किया जा सके।

जहां तक वालरमथी का सवाल है, वह नए कौशल सीखने के बाद एक नया वस्त्र उद्यम शुरू करने की योजना बना रही हैं। उन्होंने कहा, "मैं अपने व्यवसाय की प्रगति से बहुत खुश हूँ। यह प्रशिक्षण निश्चित रूप से मुझे वह व्यवसायी बनने में मदद करेगा जिसकी मैं आकांक्षा करती हूँ।” वालरमथी को विश्वास है कि यह कार्यक्रम उनके और उनके जैसे अन्य लोगों के भविष्य के लिए काफ़ी मददगार सिद्ध होगा जो नए कौशल सीखकर सफलता की नई ऊंचाइयां छू सकती हैं।


सोफिया अमरल

अर्थशास्त्री, वर्ल्ड बैंक साउथ एशिया रीजन जेंडर इनोवेशन लैब

जयती सेठी

सोशल डेवलपमेंट स्पेशलिस्ट

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