तकनीकी समाधानों का स्थानीयकरण: दक्षिण एशिया में स्थानीय क्षमता का निर्माण

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Sameera, a village resident, who shares weather information, early warnings, and public service announcements with neighboring villages via a low-cost, solar powered Rang Radio. Photo: WorldBank Sameera, a village resident, who shares weather information, early warnings, and public service announcements with neighboring villages via a low-cost, solar powered Rang Radio. Photo: WorldBank

भारतीय राज्य उत्तराखंड में एक गांव है, सिपु-नया बस्ती।  यह काफ़ी ऊंचाई पर है और यहां सड़कें और इंटरनेट सुविधाएं नहीं पहुंची हैं।  लेकिन यहां अक्सर भारी बारिश और बादल फटने की घटनाएं होती रहती हैं।  हिमालयी क्षेत्र के इस गांव में एक मेहनती गृहणी, समीरा, रहती हैं, जो दो बच्चों की मां हैं।  उनका ज्यादातर जीवन लॉकडाउन और भूस्खलन की घटनाओं के बीच ही गुजरा है।  लेकिन हाल ही में इस स्थिति में बदलाव आया है।

समीरा और दूसरी महिलाएं एक कंप्यूटर, रिकॉर्डर और एक ट्रांसमीटर की मदद से 15 ऐसे गांवों से जुड़ जाती हैं, जहां पहले मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं थी।  इसके लिए वे सामुदायिक वाईफाई रेडियो की मदद लेती हैं, जिसे स्थानीय स्तर पर रंग रेडियो के नाम से जाना जाता है

रंग रेडियो गांवों को समय पर पूर्व-चेतावनियां देता है, ताकि गांव वाले मौसमी घटनाओं और अन्य व्यवधानों के लिए पहले से तैयार रहें और उनका सामना कर सकें।  चाहे वह पिछले लगातार बारिश और भूस्खलन की घटनाएं हों या कोविड-19 टीकाकरण जैसी सार्वजनिक सेवा सूचनाएं हो।

संपर्क के लिए कम लागत वाली पुरानी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल का श्रेय प्रगति फाउंडेशन के संस्थापक गिरीश वेदांती को जाता है।  रेडियो तरंगे एक स्थानीय नेटवर्क का निर्माण करती हैं, और इससे एक वाईफाई हॉटस्पॉट तैयार होता है, जो 100 मीटर के दायरे के भीतर काम करता है।  सौर ऊर्जा से संचालित यह रेडियो संदेशों को रिकॉर्ड कर सकता है और बेहद कमज़ोर इंटरनेट सिग्नल को भी बेहतर बना सकता है, जिससे दूरस्थ क्षेत्रों को बाहरी दुनिया से जुड़ने में मदद मिलती है।  यहां तक कि यह स्थानीय लोगों की आजीविका में भी सहायता करता है।  गांव में एक कैफेटेरिया खोला गया है, जहां नई आवाज़ें सामने आती हैं और रेडियो के लिए काम करती हैं।  गिरीश के इस प्रोजेक्ट को आसानी से लागू किया जा सकता है, और अन्य क्षेत्रों में भी इसका विस्तार किया जा सकता है।   यह विश्व बैंक समूह के टेक इमर्ज रेजिलिएंस इंडिया चैलेंज के 10 विजेताओं में से एक है।  टेक इमर्ज रेजिलिएंस इंडिया चैलेंज 10 लाख अमेरिकी डॉलर की एक वैश्विक पहल है, जिसके तहत सीमांत क्षेत्रों में नेटवर्क के अभाव, आंकड़ों और संसाधनों की कमी जैसी बाधाओं के बीच उन्हें जलवायु प्रभावों और आपदाओं से निपटने, उसके लिए तैयार रहने और आपदा के प्रभावों को वहन करने की क्षमता बढ़ाने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाते हैं और तकनीकी समाधानों को लागू किया जाता है।

भारत में, जहां 12.6 प्रतिशत भूमि क्षेत्र में भूस्खलन की  प्रवृति  और 2070 तक 1.8 करोड़ लोगों के तटीय बाढ़ की चपेट में आने की संभावना है। इस चैलेंज में पहाड़ी इलाकों के साथ-साथ तटीय क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया ताकि भूस्खलन, भूकंप, चक्रवाद और बाढ़ जैसी आपदों के लिए समाधान ढूंढ़ें जा सकें।  इसे क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जा सकता है और यही कारण है कि इन समाधानों को समान चुनौतियों से जूझ रहे राज्यों और देशों में बेहद कम लागत पर लागू किया जा सकता है।  विभिन्न चरणों में हुई इस प्रतियोगिता में 40 देशों के प्रतियोगियों ने भाग लिया, और उन प्रतियोगियों द्वारा पेश किए गए नवाचार आधारित तकनीकी समाधानों में से ही सर्वश्रेष्ठ समाधानों का चुनाव किया गया।  टीम ने भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया, जिसमें लोगों के बीच जाकर उनकी ज़रूरतों का आकलन करना, लाइव डेमो तैयार करना, नए समाधानों की ख़ोज में लगे लोगों को उपयोगकर्ताओं से जोड़ना और आम जनता की प्रतिक्रिया के अनुसार विजेताओं का चुनाव करना आदि शामिल था।

उत्तराखंड में गिरीश के वाईफाई रेडियो के अलावा, अन्य नवाचारों में एआई-आधारित बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली, ड्रोन और स्वचालित विमान, जो दूरदराज के इलाकों में बाढ़ के दौरान राहत एवं बचाव कार्यों में सहायक हैं, और एआई-आधारित भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली शामिल हैं।

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ज़रूरी सबक

दो साल की अवधि में लागू किए इस कार्यक्रम से हमें क्राउडसोर्सिंग इनोवेशन मॉडल (यानी सामूहिक भागीदारी के माध्यम से नवाचार आधारित समाधानों का चुनाव करना) को लेकर कुछ महत्त्वपूर्ण सबक हासिल हुए, जो दक्षिण एशिया के अन्य भागों और समान परिस्थितियों वाले क्षेत्रों के लिए मददगार साबित हो सकता है।  जिसमें से कुछ सबक निम्नलिखित हैं:

  1. प्रौद्योगिकी का स्थान सबसे आखिरी है: कुछ समाधानों को प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता की बजाय नियामक तंत्रों के अभाव, आंकड़ों की कमी या स्थानीय अकुशलता से जूझना पड़ा।  इसलिए, तकनीकी समाधान के बारे में सोचने से पहले, लोगों की आवश्यकताओं का आकलन, सांस्थानिक क्षमता का निर्माण और बुनियादी अवसंरचना और नियामक तंत्रों की स्थापना, भविष्य में संचालन और रखरखाव संबंधी पहलू पे विचार और स्थानीय भागीदारों की उपलब्धता जैसे कारकों पर विचार करना होगा।
  1. स्पष्ट शब्दों में वास्तविक समस्याओं को पेश करना और क्षेत्र विशेष के आधार पर समाधान तैयार करना: प्रायोगिक समाधान को स्थानीय लोगों के आधार पर लागू करना महत्त्वपूर्ण है।  अगर आवश्यकताओं और बाधाओं को ठीक से स्पष्ट नहीं किया जाता है तो कोई भी नवाचार समस्या का समाधान नहीं कर सकता है।  टीम ने सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम किया ताकि ज़मीनी स्तर पर लोगों की ज़रूरतों को समझा जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्थानीय पहलुओं की अनदेखी न हो।  इसके बाद, जिन समाधानों को तुरंत लागू किया जा सकता था, उनकी पहचान की गई और स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से उनमें कुछ बदलाव किए गए।  और इस प्रक्रिया में स्थानीय भागीदारों को शामिल किया गया ताकि सरकार को बिना परीक्षण के ही इन समाधानों को लागू करने का ख़तरा न उठाना पड़े।
  1. वित्तपोषण और लगातार निगरानी की ज़रूरत: अनुदानों की मदद से पायलट प्रोजेक्ट को आराम से लागू किया जा सकता है और उसके असफल होने का ख़तरा भी कम हो जाता है।  लेकिन इन्हें व्यापक पैमाने पर लागू करने के लिए वित्तीय एवं और मानव संसाधन के स्तर पर सरकार और जनता से सहयोग की ज़रूरत होती है।  इसलिए, हम राज्य सरकारों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे पायलट परियोजनाओं को व्यापक पैमाने पर लागू करने के लिए अपने बजट का भी इस्तेमाल करें।  लेकिन समाधानों को भी लागत-प्रभावी होना चाहिए ताकि उन्हें निम्न-मध्यम आय वाले क्षेत्रों में भी लागू किया जा सके।  कानूनी स्तर पर भी आवश्यक जांच पड़ताल और ज़रूरी कदम उठाने की ज़रूरत होती है ताकि समाधानों की वैधता को सुनिश्चित किया जा सके।
  1. भागीदारी की ज़रूरत: यह ज़रूरी है एक नवाचार आधारित तंत्र की स्थापना की जाए, जो विचार से लेकर प्रभाव तक सभी पहलुओं पर विचार करे।  उसके लिए 'उपयोगकर्ताओं' को केंद्र में रखकर आपसी विचार-विमर्श और भागीदारी के माध्यम से समाधान पर विचार करना महत्त्वपूर्ण था।  इस मामले में, केंद्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को उपयोगकर्ताओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  हमने यह सुनिश्चित किया कि समाधान ज़मीनी आवश्यकताओं के अनुरूप हों और उन्हें स्थानीय लोगों के सहयोग से लागू किया जाए।  जबकि, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) ने हमें टेक इमर्ज कार्यक्रम के लिए क्राउडसोर्सिंग इनोवेशन मॉडल दिया, वहीं हमारे तकनीकी साझीदारों (अमेरिका का कंज्यूमर टेक्नोलॉजी एसोसिएशन और आईबीएम और भारत का नैसकॉम) ने इस प्रतियोगिता से दुनिया भर के हजारों प्रतियोगियों को जोड़ने और भारत के विशाल स्टार्टअप नेटवर्क का लाभ उठाने में हमारी मदद की।  क्षेत्रीय कार्यान्वयन एजेंसी, एशियन डिजास्टर प्रिपेयर्डनेस सेंटर ने सुनिश्चित किया कि इस कार्यक्रम को ज़मीनी तौर पर सुचारू ढंग से लागू किया जाए।  टेक इमर्ज रेजिलिएंस चैलेंज जैसी नवाचार को बढ़ावा देने वाली पहलें दुनिया भर की सरकारों को कम जाेखिम वाले, स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से अनुकूलित और व्यापक पैमाने पर लागू किए जाने योग्य उपयुक्त समाधानों को बढ़ावा देने में योगदान देती हैं ताकि चरम मौसमी घटनाओं और आपदाओं के प्रबंधन की बेहतर तैयारी की जा सके जबकि साल-दर-साल इन आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ती जा रही है।  टेक इमर्ज रेजिलिएंस चैलेंज के बाद से, कई क्षेत्रों, संस्थानों और देशों (विशेष रूप से दक्षिण एशियाई देशों) ने मिली-जुली पहलों की शुरूआत की है।

टेक इमर्ज इंडिया को प्रोग्राम फॉर एशियन रेजिलिएंस फॉर क्लाइमेट चेंज (पीएआरसीसी) ने वित्तपोषित किया है, और इसे यूनाइटेड किंगडम फॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस से भी वित्तीय सहायता मिली है।

 

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Authors

अतिशय अभि

आपदा जोखिम प्रबंधन विशेषज्ञ

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