अमिंडा सिमसांग्रे के ग्रामवासियों की विकास यात्रा

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मेघालय भारत का एक उत्तर-पूर्वी राज्य है, जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ है, 'बादलों का घर.' अपने नाम के अनुरूप, इस राज्य में भारी वर्षा होती है और चारों ओर जंगल से घिरा हुआ है । इसके बावजूद, यह जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ मानव जनित समस्याओं जैसे अंधाधुंध खनन के प्रति संवेदनशील है, जिसके कारण वन क्षेत्रों और जल भंडारों पर ख़तरा मंडरा रहा है, और जंगल पर निर्भर रहने वाले लोगों की आजीविका ख़तरे में पड़ गई है. हालांकि, मेघालय ने इन चुनौतियों का सामना करने के लिए समुदाय आधारित दृष्टिकोण को अपनाया है ताकि स्थाई बदलाव लाया जा सके ।

मेघालय में जल और भूमि प्रबंधन

भारत के अन्य हिस्सों से विपरीत, जहां वनों की सुरक्षा और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी राज्यों की है, मेघालय की लगभग 90 प्रतिशत वनभूमि खासी, गारो और जयंतिया जनजातियों के पारंपरिक कानूनों के अधीन है ।  हालांकि, समुदायों के संरक्षण में आने वाले जंगलों को वन संरक्षण कानूनों के तहत सुरक्षा प्राप्त नहीं है और न ही उन्हें राज्य संस्थाओं से किसी क़िस्म की तकनीकी या वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। राज्य के जल भंडारों और नदी संरक्षण के मामले में भी यही स्थिति है ।

मेघालयी समुदाय के नेतृत्व में लैंडस्केप संरक्षण परियोजना

विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित मेघालयी समुदाय के नेतृत्व वाली लैंडस्केप प्रबंधन परियोजना को (एमसीएलएलएमपी) राज्य की समुदाय आधारित व्यवस्था (जहां भूमि, वन और जल भंडारों पर समुदाय का अधिकार है) का लाभ मिला है, जिसकी मदद से वह सामुदायिक नेतृत्व में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन (एनआरएम), विशेष रूप से वनों और जल संसाधनों के लिए एक मॉडल की स्थापना करना चाहती है । ताकि ऐसे किसी मॉडल को भारत के दूसरे हिस्सों में भी स्थापित किया जा सके।

2018 में, एमसीएलएलएमपी ने केवल एक बार के लिए जारी किए गए अनुदान का उपयोग करके 400 गांवों द्वारा तैयार की गई लैंडस्केप प्रबंधन योजनाओं को उनकी भूमि और जल संसाधनों की पुनः बहाली के लिए लागू करना शुरू किया |  अभी तक इस परियोजना ने ऐसी 4,500 पहलों का समर्थन किया है, जो पारंपरिक तरीके से प्राकृतिक संसाधनों की मरम्मत और उसे पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बना सकें. एमसीएलएलएमपी ने खनन के कारण नष्ट हुई 204 हेक्टेयर भूमि को पुनर्जीवित करने, 6,000 हेक्टेयर भूमि पर फिर से जंगल बसाने, लगभग 14,000 हेक्टेयर भूमि पर मिट्टी और जल संरक्षण उपायों को लागू करने और करीब 5,000 हेक्टेयर भूमि पर कृषि और बागबानी के लिए 75 करोड़ रुपये (94 लाख अमेरिकी डॉलर) से अधिक का एनआरएम अनुदान वितरित किया है ।

मानव पूंजी के निर्माण के लिए इस परियोजना ने 17, 695 लोगों (जिसमें 6,487 महिलाएं हैं) को प्रौद्योगिकी और वित्त संबंधी विषयों, ख़ासकर डिजिटल तकनीकी के इस्तेमाल को लेकर प्रशिक्षित किया है ।  

इस परियोजना ने समस्या के समाधान के लिए जन-आवेदन शुरू किया और छोटे और बड़े उन सभी आवेदकों को अनुदान प्रदान किया, जो नष्ट हुई भूमि को पुनर्जीवित करने और तकनीकी और वैज्ञानिक उपायों के जरिए पारंपरिक अभ्यासों को फिर से लागू करने के लिए सबसे उपयुक्त प्रस्ताव लेकर सामने आए थे । इस परियोजना के तहत लगभग 9.5 करोड़ रुपए (20 लाख अमेरिकी डॉलर) ऐसे अनुदानों के रूप में वितरित किए जा चुके हैं ।

स्थानीय समुदायों ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जुटाए गए 1.22 करोड़ रुपयों के अतिरिक्त महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा, जो एक भारतीय श्रम कानून होने के साथ-साथ एक वैतनिक रोजगार कार्यक्रम है) के प्रावधानों के अनुसार 2.1 करोड़ रुपए एकत्रित किए ताकि वे ऐसे कार्यक्रमों में निवेश कर सकें. कृषि-बागवानी, नर्सरी और खाद इकाइयों की अतिरिक्त मदद से अब तक 1.30 करोड़ रुपये जुटा लिए गए हैं ।

ग्रामीण स्तर पर लैंडस्केप प्रबंधन योजना

अमिंडा सिमसांग्रे मेघालय का एक सुदूर गांव है, जो मुख्य सड़क नेटवर्क से कटा हुआ है. यहां नल द्वारा जल आपूर्ति की पहुंच बेहद सीमित है और कृषि समुदाय पेयजल और अन्य ज़रूरतों के लिए स्थानीय झरनों पर निर्भर है । एमसीएलएलएमपी के लागू होने से पहले, ज्यादातर झरने सूखने लगे थे और सामान्य जल प्रवाह वाले झरने प्रदूषित हो चुके थे ।

2020 की शुरुआत में, स्थानीय समुदाय ने सुरक्षित पेयजल के अभाव और रोजगार के सीमित अवसरों को अपनी सबसे बड़ी समस्याओं के रूप में चिन्हित किया । ग्रामीण लोग एमसीएलएलएमपी (मेघालयी समुदाय के नेतृत्व में लैंडस्केप संरक्षण परियोजना) एनआरएम (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) से मिले अनुदान की सहायता से इन समस्याओं के समाधान के लिए एकजुट हुए ।

2020 के अंत तक, समुदाय ने चेक डैम (रोधी बांध, जल की प्रवाह गति को मंद करने के लिए बनाया गया बांध), जल-संरक्षण बांध और जल भंडारण सुविधाओं का निर्माण कर लिया था, जिसके कारण घरों में पेयजल की पहुंच का विस्तार हुआ था | उन्होंने पेड़ों की कटाई और झूम (स्थानांतरण) कृषि के चलते नष्ट हुई वन संपदा को पुनर्जीवित करने के लिए वृक्षारोपण की शुरुआत और सामुदायिक नर्सरी की स्थापना की । और मिट्टी का कटाव रोकने और वर्षा जल के प्रवाह को धीमा करने के लिए सीढ़ीदार संरचना (कंटूर ट्रेंच) का निर्माण किया, जो कि इस क्षेत्र में भू-क्षरण का एक बहुत बड़ा कारण है ।

उत्पादकता को बढ़ाने के लिए लिंग-समावेशी रणनीतियां

समुदाय की औरतों के लिए प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन (एनआरएम) से जुड़ी गतिविधियां सामूहिक रूप से जल, स्वास्थ्य और आजीविका से जुड़ी मूलभूत समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने में मददगार सिद्ध हुईं । शुरुआती अनिश्चितता के बावजूद पिछले दो सालों में, गांव के एनआरएम समिति (वीएनआरएमसी) के कार्यकारी दल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है ।

वीएनआरएमसी की एक सदस्य तनुजा जी. मोमिन का कहना है, "यह जाने बिना कि ये परियोजना हमें किस तरह लाभ पहुंचाएगी, मैंने एमसीएलएलएमपी की टीम की मदद करना शुरू कर दिया। लेकिन परियोजना के पहले की तुलना में, मैं देख सकती हूं कि जल उपलब्धता में बदलाव हुआ है।"

और समुदाय को परियोजना की विकास क्षमता बढ़ाने से जुड़ी पहलों का लाभ मिला है । वीएनआरएमसी के सचिव, प्रीतीश एस. संगमा का कहना है, "परियोजना से पहले, हमें पर्यावरण, जल-संग्रहण और प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्व के बारे में बेहद कम जानकारी थी | हमारे लोगों को लाभ हो रहा है क्योंकि अब उन्हें हर रोज़ हर समय पानी उपलब्ध है । इतना ही नहीं, हमने सामुदायिक बगीचों का भी निर्माण किया है । हम संग्रहण क्षेत्रों में वृक्षारोपण में मदद करते हैं और पड़ोसी गांवों में पौधे भी बेचते हैं." गांव ने अभी तक 59,000 रूपये (742 अमेरिकी डॉलर) की बिक्री की है | गांव वालों के पास खुशियां मनाने की एक और वजह भी है । इस साल की शुरुआत में, वीएनआरएमसी को केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय जल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।

आगे का रास्ता: समावेशी विकास और मानव पूंजी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं

आखिरकार, मेघालय की लैंडस्केप संरक्षण परियोजना (एमसीएलएलएमपी) का विकेंद्रीकृत स्वरूप और कौशल विकास आधारित दृष्टिकोण प्राकृतिक संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में स्थानीय क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक कामयाब मॉडल सिद्ध हुआ है । ऐसे में जब मेघालय राज्य 'हरित मेघालय' पहल के रूप में परियोजना से जुड़े मॉडल को सभी जिलों में लागू करने का प्रयास कर रहा है, अमिंडा सिमसांग्रे प्रभावी सामुदायिक भागीदारी के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है ।

भविष्य को और भी ज्यादा हरा-भरा और स्वच्छ बनाने का कोई भी सरल तरीका नहीं है. बल्कि लोगों और ज्ञान निर्माण में लंबे निवेश के ज़रिए ही हम इस सपने को जल्दी साकार कर सकेंगे ।

 

इस लेख में पेश किए गए आंकड़ों के लिए लेखक पीएमयू, एमसीएलएलएमपी को धन्यवाद देना चाहते हैं । फ़ोटो क्रेडिट: एमसीएलएलएमपी नॉलेज मैनेजमेंट टीम


Authors

पीयूष डोगरा

वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ, दिल्ली कार्यालय

सिमी मिश्रा

सलाहकार, विश्व बैंक

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