"मेरे काम करने की जगह, वह मुख्य तौर पर काम के समय, ऑफिस से आने-जाने के लिए यातायात-साधन, और ऑफिस पहुंचने में लगने वाले समय और दूरी द्वारा तय होता है।" ~ कामकाजी महिला, मुम्बई, भारत
"मैं अपने बच्चों को ट्यूशन केन्द्र ले जाती हूं और उन्हें पैदल पहुंच वाली दूरी के भीतर चुनती हूं। यदि ट्यूशन केन्द्र दूर है, तो बस सेवा न होने के कारण ऑटो रिक्शा ज्यादा उचित होता है।” ~ गृहिणी, मुंबई, भारत
आर्थिक और सामाजिक अवसरों तक महिलाओं की पहुंच को आकार देने में परिवहन की भूमिका पर हमने मुंबई में किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान अक्सर इस तरह के बयान सुने। वे पुरुषों के मुकाबले महिलाओं द्वारा सामना और अनुभव किए जाने वाले विभिन्न गतिशीलता (आवागमन) विकल्पों को दर्शाते हैं, और दिखाते हैं कि ये आवगमन पैटर्न भारत के सबसे बड़े शहर में कैसे विकसित हुए हैं।
वैश्विक स्तर पर यह मान्यता बढ़ती जा रही है कि महिलाएं पुरुषों से अलग तरह से आवागमन का अनुभव करती हैं। यातायात-साधन और आवागमन तक पहुंच की कमी महिलाओं की सार्वजनिक सेवाओं - विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य - तक पहुंच को आकार देती है। बदले में, बाजारों, रोजगार और कौशल तक पहुंच की यह कमी उनकी आजीविका को प्रभावित करती है, जो न केवल उनके निजी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, बल्कि उनके परिवारों को भी प्रभावित करती है।
मुंबई में किए गए अध्ययन में पुरुषों और महिलाओं के आवागमन पैटर्न (तरीके) में अंतर और शहर के विकसित होने के साथ इन पैटर्न में बदलाव का दस्तावेजीकरण किया गया है। यह इस बात की भी तलाश करता है कि क्या सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच की कमी ग्रेटर मुंबई क्षेत्र (जीएमआर) में महिलाओं की श्रम शक्ति (कार्य शक्ति) की भागीदारी को सीमित करती है।
यातायात-साधन और आवागमन तक पहुंच की कमी महिलाओं की सार्वजनिक सेवाओं - विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य - तक पहुंच को आकार देती है।
अध्ययन से चार परिणाम सामने आते हैं:
सबसे पहली बात, पुरुषों और महिलाओं के आवागमन पैटर्न में अंतर घरों के अंदर श्रम के विभाजन में अंतर को दर्शाता है। अध्ययन में पुरुषों और महिलाओं के आवागमन पैटर्न में लगातार अंतर दिखता है। ये अंतर आंशिक रूप से घरेलू जिम्मेदारियों और श्रम शक्ति की भागीदारी के दरों में अंतर को दर्शाते हैं। वर्ष 2019 में, मुंबई में केवल बीस प्रतिशत महिलाएं कार्यरत थीं। उसी वर्ष, पुरुषों की 80 प्रतिशत यात्राएं काम से संबंधित थीं जबकि महिलाओं की केवल 17 प्रतिशत यात्राएं काम से संबंधित थीं। महिलाओं की कुल यात्राओं की आधी या खरीददारी या बच्चों को स्कूलों या ट्यूशन केंद्रों से लाने और ले जाने के लिए होती थीं।
दूसरी बात, पुरुष और महिलाएं एक ही उद्देश्य के लिए आने-जाने के दौरान भी परिवहन के विभिन्न साधनों को चुनते हैं और इससे अवसरों तक उनकी पहुंच प्रभावित होती है। काम के सिलसिले में आने-जाने वाले पुरुष और महिलाएं, दोनों अपने आने-जाने में औसतन एक समान समय बिताते हैं। हालांकि, महिलाओं द्वारा पैदल चलने या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने की अधिक संभावना होती है। 2019 में, अपने प्राथमिक आवागमन के माध्यम के तौर पर 39 प्रतिशत महिलाओं ने पैदल चलने और 32 प्रतिशत ने सार्वजनिक परिवहन (रेल या सार्वजनिक बस) का उपयोग करने की जानकारी दी। इसके विपरीत, केवल 28 प्रतिशत पुरुषों ने पैदल चलने और 24 प्रतिशत ने सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने की जानकारी दी। महिलाओं के ऑटो-रिक्शा (14 प्रतिशत), दोपहिया (9 प्रतिशत) या कार (4 प्रतिशत) से आने-जाने की संभावना अधिक थी। इस निष्कर्ष का मतलब है कि महिलाएं भले ही वे पुरुषों के समान समय के लिए आवागमन कर रही हों, वे कम आर्थिक अवसरों तक पहुंच पा रही हैं; यही निष्कर्ष अर्जेंटीना और अन्य जगहों के अध्ययनों में सामने आया। परिवहन के धीमे साधनों का उपयोग करने के लिए इस विकल्प को तय करने वाले कई कारक हो सकते हैं- सुरक्षा और सुरक्षा संबंधी विचार, घर के कामों के साथ काम की यात्राओं को शामिल करने के लिए लचीलेपन की जरूरत, और घर में यातायात के साधन कम उपलब्ध होना।
तीसरी बात, इन पैटर्नों के अंतर और विकास महिला गतिशीलता पर एक अप्रत्यक्ष "गुलाबी टैक्स" की ओर इशारा करते हैं। ऐसा लगता है कि ग्रेटर मुम्बई क्षेत्र के भीतर बड़े पैमाने पर आवागमन एवं आबादी की जरूरतों और अपेक्षाओं के साथ तालमेल नहीं है। पुरुषों और महिलाओं दोनों को बस और रेल परिवहन से संतुष्टि न मिलने के कारण दोपहिया और ऑटो-रिक्शा के उपयोग में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, निजी, और विशेषकर तेज, परिवहन के साधनों को महिलाओं ने कम पैमाने पर अपनाया है। इसके अलावा, पुरुषों ने काम पर जाने के लिए बड़े पैमाने पर दोपहिया वाहनों का विकल्प चुन लिया है, और महिलाओं ने ऑटो-रिक्शा या टैक्सियों का उपयोग करने का विकल्प अपनाया, जो कि अधिक महंगी होती हैं। इस प्रकार, महिलाओं की आवागमन पर एक अधिभार या "गुलाबी टैक्स" लगता है।
चौथी बात, कोई परिवहन प्रणाली जो आर्थिक रूप से प्रभावी होने के साथ महिलाओं को घरेलू कर्तव्यों और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारियों से जोड़ने की अनुमति देती है, वह महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी की संभावना को बढ़ा सकती है। अध्ययन से पता चलता है कि परिवहन महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी के लिए बाधाओं में से केवल एक है। इसके बजाय, लैंगिक सामाजिक मानदंड महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी को निर्धारित करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। 2019 में, सर्वेक्षण में शामिल महिलाओं में से 31 प्रतिशत ने आवागमन को काम करने में एक बाधा बताया। इनमें से, 4 प्रतिशत से भी कम ने बताया कि यातायात-साधन काम के लिए आने-जाने में एक बाधा थी। इसके विपरीत, 13 प्रतिशत ने कहा कि बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारियां काम के लिए आने-जाने में बाधा थीं, और 19 प्रतिशत ने संकेत दिया कि घरेलू कर्तव्य काम के लिए आने-जाने में बाधा थी।
एक परिवहन प्रणाली जो उपयोग में लैंगिक अंतर को स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं देती है, वह लैंगिक असमानताओं को बढ़ा सकती है और आर्थिक अवसरों तक महिलाओं की पहुंच को सीमित कर सकती है।
एक परिवहन प्रणाली जो उपयोग में लैंगिक अंतर को स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं देती है, वह लैंगिक असमानताओं को बढ़ा सकती है और आर्थिक अवसरों तक महिलाओं की पहुंच को सीमित कर सकती है। मुंबई में सार्वजनिक मार्ग और पैदल चलने की क्षमता में सुधार और प्रमुख स्थानों पर डेकेयर सुविधाओं के प्रावधान पर केंद्रित नीतिगत उपायों से महिलाओं को खास लाभ हो सकता है। विशेष रूप से:
- पैदल चलने के अनुकूल स्ट्रीट नेटवर्क बनाकर और मुंबई में किफायती माइक्रो-मोबिलिटी समाधान (जैसे स्कूटर और साइकिल) प्रदान करके मुंबई शहर की चलने की क्षमता को बढ़ाना।
- बस और रेल सेवाओं की विश्वसनीयता, सुविधा, सुरक्षा और आवृत्ति (दोहराव) में सुधार करना।
- सार्वजनिक परिवहन के विकल्पों को बेहतर ढंग से जोड़ने और सार्वजनिक परिवहन को अधिक आकर्षक विकल्प बनाने के लिए रेल और बस प्रणालियों की रूटिंग (मार्ग) और समय के लिए एक नेटवर्क दृष्टिकोण और लचीली टैरिफ संरचना अपनाना।
- मुंबई में उपयुक्त स्थानों पर (संभवतः रेल स्टेशनों पर या उसके पास) सुरक्षित और किफायती बच्चों की देखभाल सेवाएं प्रदान करना।
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