भारतीय ट्रक चालक बापी सिकदर कहते हैं, "भारत-बांग्लादेश सीमा को पार करना बहुत चुनौतीपूर्ण है।" वे 35 वर्षों से दोनों देशों के बीच माल ढोते आए हैं। सिकदर उन हजारों ट्रक ड्राइवरों में से एक हैं जो दक्षिण एशिया में सबसे व्यस्त और सबसे महत्वपूर्ण भू सीमा - पेट्रापोल-बेनापोल क्रॉसिंग पर नियमित रूप से कतार लगाते हैं।
श्री सिकदर को सीमा पार करने से पहले भारत की तरफ पेट्रापोल स्थित एकीकृत चेक पोस्ट में प्रवेश करने के लिए 15 दिनों तक इंतजार करना पड़ा। उसके बाद सीमा के बांग्लादेश की ओर बेनापोल में माल उतारने में उन्हें तीन दिन और लग गए। पूर्वी अफ्रीका सहित दुनिया के अन्य अधिकांश हिस्सों में, माल की समान मात्रा को क्लीर करने में छह घंटे से भी कम समय लगता है।
दुर्भाग्य से, श्री सिकदर का यह अनुभव बहुत आम है। सीमाओं पर दीर्घकालिक देरी बीबीआईएन उप-क्षेत्र के देशों - बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल के बीच व्यापार की उच्च लागत का कारण है। ये देरी बड़े पैमाने पर सीमा क्रासिंग पर अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, कागज-आधारित प्रक्रियाओं की अधिकता, प्रतिबंधात्मक नीतियों एवं विनियमों और कार्गो हैंडलिंग के लिए अक्षम लॉजिस्टिक्स के कारण होती है।
क्षेत्र का जटिल भूगोल इस मुद्दे को और जटिल बना देता है। भूटान और नेपाल दुर्गम संपर्क वाले पहाड़ी देश हैं, जबकि भारत को इसके पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने वाली एकमात्र सड़क को भी तंग (संकीर्ण) सिलीगुड़ी कॉरिडोर, चिकन नेक से होकर गुजरना पड़ता है।
हैरत नहीं होनी चाहिए कि इन देशों को अपने पड़ोसियों की तुलना में दूर स्थित देशों के साथ व्यापार करना आसान लगता है। विश्व बैंक की कनेक्टिंग टू थ्राइव रिपोर्ट बताती है कि किसी भारतीय कंपनी के लिए ब्राजील या जर्मनी के साथ व्यापार करना बांग्लादेश के साथ व्यापार की तुलना में लगभग 15-20 प्रतिशत सस्ता है।
परिणामस्वरूप, क्षेत्रीय व्यापार अपनी क्षमता का महज सतही स्तर तक ही पहुंच पाया है। हालांकि 2005 से 2019 के बीच बीबीआईएन देशों के बीच व्यापार में छह गुना वृद्धि हुई, लेकिन बांग्लादेश की 93 प्रतिशत, भारत की 50 प्रतिशत और नेपाल की 76 प्रतिशत क्षमता अब भी अप्रयुक्त है।
तो, बीबीआईएन उप-क्षेत्र में व्यापार और कनेक्टिविटी में सुधार करने के लिए क्या करना होगा?
लालफीताशाही का खात्मा
सर्वप्रथम, सरल कायदे कार्गो की आवाजाही को आसान बनाने में मदद करेंगे। वर्तमान में, बांग्लादेश और भारत के बीच व्यापार करने के लिए लगभग 22 दस्तावेजों और 55 हस्ताक्षरों की आवश्यकता होती है। भूटान में, आयातकों को औसतन 86 बार विभिन्न प्राधिकरणों को अपने दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता होती है, जबकि निर्यातकों को 74 बार ऐसा करने की आवश्यकता होती है।
दूसरे, माल के प्रत्यक्ष जांच में कटौती करने से देरी कम हो सकती है। कुछ सीमाओं पर, सीमा शुल्क अधिकारी वहां से गुजरने वाले सामानों के 80-100 प्रतिशत हिस्से की जांच करते हैं। यदि ये देश उन्नत जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को अपनाएं, तो कन्साइनमेंट्स को और अधिक तेज़ी से क्लीयर किया जा सकता है।
तीसरे, बीबीआईएन मोटर वाहन समझौते (एमवीए) के शीघ्र कार्यान्वयन के परिणमस्वरूप छोटे कार्बन फुटप्रिंट के अलावा परिवहन मार्ग छोटा हो सकता है, यात्रा समय और लागत में कमी हो सकती है। विश्व बैंक के विश्लेषण से पता चलता है कि एमवीए के तहत, भारत के पूर्वोत्तर में अगरतला से कोलकाता बंदरगाह तक जाने वाला ट्रक 65 प्रतिशत कम समय लेगा और 68 प्रतिशत सस्ता होगा।
इसके अलावा, ओईसीडी डेटा से पता चलता है कि यदि इस क्षेत्र के देशों ने डब्ल्यूटीओ व्यापार सुविधा समझौते (टीएफए) - जिसका उद्देश्य कागजी कार्रवाई को सरल बनाना और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना है - को पूरी तरह से लागू किया होता, तो बीबीआईएन के देशों जैसे निम्न मध्यम-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए व्यापार लागत में 17 प्रतिशत से अधिक की कमी आ सकती थी।
डिजिटाइज़ करें, स्वचालित करें
सीमा शुल्क और अन्य प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण और स्वचालन से भी तेजी से और अधिक पारदर्शी क्लीयरेंस मिल सकती है। डिजिटाइजेशन से देशों को अपने डेटा में सामंजस्य स्थापित करने, डेटा एक्सचेंजों को सुविधाजनक बनाने और व्यापारियों एवं सरकारी अधिकारियों को साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने का अवसर होगा।
हालांकि, इस समय बड़ा अंतर बना हुआ है। कई दक्षिण एशियाई देश जहां डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं व्यापार सुविधा और कागज रहित व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सर्वेक्षण में पाया गया है कि अगर इसे पूरी तरह से लागू किया जाता है, तो व्यापार लागत में 40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
इस दिशा में, विश्व बैंक सिंगल इलेक्ट्रॉनिक गेटवे विकसित करने में बांग्लादेश और नेपाल का समर्थन कर रहा है जिससे आयातकों एवं निर्यातकों को अपने दस्तावेज़ इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करने की सुविधा मिलेगी। एक बार पूरी तरह से चालू हो जाने के बाद, इन राष्ट्रीय सिंगल विंडोज़ से क्लीयरेंस के समय में अप्रत्याशित रूप से कमी आने की उम्मीद है।
इन उपायों के साथ, कार्गो हैंडलिंग, भंडारण, टैरिफ गणना और सीमा पोस्ट पर भुगतान की प्रक्रियाओं को उन्नत करने से सीमा पार व्यापार की जटिलता को कम किया जा सकता है।
बुनियादी ढांचे की कमियों को पूरा करना
बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर, माल की सुगम आवाजाही को बढ़ावा देने के लिए एक एकीकृत बहुवध परिवहन नेटवर्क बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा। वर्तमान में, राष्ट्रों के भीतर भी, बहुविध माल ढुलाई परिचालन सीमित है; यह सीमा पार आवाजाही के लिए और भी कम है। समुद्री कंटेनरों की बहुविध प्रकृति का अधिकतम लाभ उठाने के लिए रेल नेटवर्क और अंतर्देशीय जलमार्गों पर माल ढुलाई के लिए मजबूत प्रयासों की आवश्यकता है।
सड़कों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होगी। हालांकि इन क्षेत्रीय गलियारों पर माल ढुलाई का लगभग 70 प्रतिशत सड़कों के जरिए होता है, परंतु अधिकांश भीड़-भाड़ वाले टू-लेन सड़कें हैं, जहां ट्रक 30 किलोमीटर प्रति घंटे या उससे कम की रफ्तार से चलते हैं, और सड़कों के कुछ हिस्से बड़े वाहनों या कंटेनरों के चलने लायक नहीं हैं। यह बात विशेष रूप से उन पहुंच सड़कों के लिए सही है जो माल के "अंतिम गंतव्य" तक के परिवहन को धीमा और अक्षम बनाती हैं।
एक और बाधा विभिन्न जांच चौकियों के बीच बेमेल हैंडलिंग क्षमता है। जहां भारत की पेट्रापोल सीमा एक दिन में 750 ट्रकों को हैंडल कर सकती है, वहीं दूसरी तरफ बांग्लादेश का बेनापोल पॉइंट उनमें से केवल 370 को ही क्लीयर कर सकता है।
अत्यधिक लाभ मिलना है
ये उपाय मिलकर उप-क्षेत्र के देशों को भारी लाभ प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत के साथ निर्बाध संपर्क बांग्लादेश की राष्ट्रीय आय को 17 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है, जबकि भारत को 8 प्रतिशत का लाभ होगा। भूटान और नेपाल में भी इसी तरह के परिणाम देखने की उम्मीद की जा सकती है, जिससे पूरे क्षेत्र में मजबूत, लचीला और सतत विकास को गति मिलेगी।
और भारतीय ट्रक चालक श्री सिकदर और भी कई यात्राएं कर सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर आमदनी हो सकती है।
बीबीआईएन परिवहन सुधार की योजना को यूनाइटेड किंगडम के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय द्वारा समर्थित एक ट्रस्ट फंड, प्रोग्राम फॉर एशिया कनेक्टिविटी ऐंड ट्रेड और ऑस्ट्रेलिया के विदेश व्यापार विभाग द्वारा समर्थित एक ट्रस्ट फंड, दक्षिण एशिया क्षेत्रीय व्यापार सुविधा कार्यक्रम से फंडिंग मिली है।
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