कोलकाता से पूर्व की ओर ऐतिहासिक जेसोरे रोड पर बढ़ने के दौरान, एहसास भी नहीं होता कि आप भारत के सबसे व्यस्त और बांग्लादेशी सीमा पर स्थित चेक पोस्ट की ओर बढ़ रहे हैं।
दो लेन वाली नेशनल हाईवे पर यात्रा करते हुए गंतव्य तक समय पर नहीं पहुंच सकते हैं क्योंकि दोनों तरफ़ बस, ट्रक, कार, साइकिल, लोगों और जानवरों की भीड़ दिखाई देती है। हाल की मेरी पेट्रापोल इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) की यात्रा के दौरान बोंगांव में एक लोकल ट्रेन के गुजरने के लिए सड़क पर गाड़ियों को रोका गया था। इस जाम के चलते ही खुदरा सामान बेचने वाले गाड़ियों के पास आकर स्नैक्स बेचने की कोशिश करते दिखाई दिए।
सीमा पर रुकते हुए यात्रा करने के दौरायन यह महसूस होता है कि दक्षिण एशिया, दुनिया के सबसे कम एकीकृत क्षेत्र का इलाका है। दक्षिण एशिया के आठ देशों के बीच आपसी कारोबार, उनके कुल कारोबार का मुश्किल से पांच प्रतिशत हिस्सा है, जो दूसरे क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट, कनेक्टिंग टू थ्राइव- चैलेंजस और ऑपर्चुनिटीज ऑफ़ ट्रांसपोर्ट इंटीग्रेशन इन ईस्टर्न साऊथ एशिया (विकास से जुड़ाव- पूर्वी दक्षिण एशिया में एकीकृत परिवहन की चुनौतियां और अवसर) में कहा गया है कि अबाधित परिवहन संपर्क स्थापित होने से इस इलाके के कारोबारियों और उपभोक्ताओं को बहुत आर्थिक फ़ायदा मिलेगा। उदाहरण के लिए, परिवहन व्यवस्था बेहतर होने से दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को फ़ायदा होगा। बांग्लादेश की राष्ट्रीय आय में 17 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो सकती है, वहीं भारत की राष्ट्रीय आय में आठ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है।
इस क्षेत्र में क्षेत्रीय व्यापार के अवसरों को पूरी तरह से नहीं तलाशा गया है क्योंकि दक्षिण एशिया में परिवहन का ख़र्च दुनिया भर की तुलना में सबसे अधिक है।. प्रथम दृष्टया में, मैं ने यह महसूस किया इस क्षेत्र में अपर्याप्त घरेलू परिवहन व्यवस्था और व्यपार को बढ़ाने के लिए आधारभूत ढांचों की कमी के साथ साथ सीमा पर प्रभावी व्यवस्था की अनुपलब्धता और मल्टी मोड एकीकृत परिवहन व्यवस्था का अभाव है।
व्यापार के लिए सीमा पर बने गेटवे पर भी सुविधाओं का अभाव है जिसके चलते यातायात और माल ढुलाई, दोनों को संभालने की क्षमता का अभाव है। इसलिए इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि किसी भारतीय फर्म के लिए ब्राज़ील और जर्मनी के साथ कारोबार करना, बांग्लादेश की किसी फर्म के साथ कारोबार करने की तुलना में 15 से 20 प्रतिशत सस्ता पड़ता है.
भारत नौ आईसीपी संचालित करता है और व्यस्त सड़क सीमा क्रॉसिंग पर इसे बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना है। प्रत्येक आईसीपी सीमा चौकियों को राहत देने और कार्गो और लोगों की आवाजाही को गति देने के लिए आधुनिक सीमा शुल्क, आव्रजन, सीमा सुरक्षा और क्वारंटीन की सुविधाएं मुहैया कराता है। पेट्रापोल 2016 में खुला और यह भारत का सबसे बड़ा इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट है, जो बांग्लादेश में बेनापोल से जुड़ा हुआ है। पेट्रापोल आईसीपी से सालाना 2.5 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है. कोविड-19 से पहले, यहां से सालाना 20 लाख पर्यटक प्रवेश करते थे.
लेकिन पेट्रापोल इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट जैसी आधुनिक सुविधा क्षेत्रीय सहयोग के बिना सीमा पार करने के सभी मुद्दों को हल नहीं कर सकती है। उदाहरण के लिए, पेट्रापोल में सीमा पार करने के लिए एक ट्रक को अपने शिपमेंट के लिए औसतन 138 घंटे की आवश्यकता होती है - जिसमें भारतीय से बांग्लादेशी ट्रकों को कार्गो स्थानांतरित करने में लगने वाले 28 घंटे शामिल हैं। तुलनात्मक रूप से, ट्रकों को अन्य क्षेत्रों में सीमा पार करने के लिए छह घंटे से भी कम समय की आवश्यकता होती है।
जिस दिन मैंने पेट्रापोल का दौरा किया, ट्रक चालकों ने सीमा पार करने में लगे समय को अप्रत्याशित बताया, वे घंटों नहीं दिनों की बात कर रहे थे। ऐसा अक्सर ही होता है और दोनों सीमा की तरफ़ माल ढुलाई संभालने की क्षमता में मिलान नहीं होने के चलते होता है। पेट्रापोल में प्रतिदिन निर्यात से लदे 750 ट्रकों को संभालने की क्षमता है, लेकिन केवल 370 ट्रकों की ही निकासी होती है, क्योंकि बेनापोल में सुविधाओं की अधिकतम क्षमता इतनी ही है। सीमा के दोनों ओर प्रतीक्षारत ट्रकों की लंबी लाइन से भी इसकी पुष्टि होती है।
इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट के अधिकारी इस समस्या से अवगत हैं और सीमा पारगमन और निकासी को अपडेट करने के लिए डिजिटल और स्वचालित प्रणालियों के साथ माल ढुलाई, आवाजाही और भंडारण में सुधार और आधुनिक यात्री टर्मिनल को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। सीमा पार बेनापोल में भी सुविधाओं को बढ़ाने की दिशा में काम चल रहा है। वर्ल्ड बैंक की मदद से हो रहे काम को इस पार की सीमा से भी देखा जा सकता है। यहां तैनात अधिकारी, ज़िला और राज्य के अधिकारियों, राष्ट्रीय मंत्रालयों और नियामक प्राधिकरणों सहित दोनों देशों के भीतर कई विभागों के बीच समन्वय के महत्व का भी उल्लेख करते हैं।
सीमा पार करने को लेकर सबसे कठिन पहलू मालवाहक ट्रकों की सीमा पार करने में असमर्थता है। जब भारतीय ट्रक सीमा पर पहुंचते हैं, तो उनका माल पूरी तरह से उतार दिया जाता और फिर बांग्लादेशी ट्रकों पर लोड किया जाता है और ऐसा ही बांग्लादेशी ट्रकों के साथ होता है। यह प्रक्रिया एकीकरण और व्यापार के लिए सबसे बड़ी बाधा है। इसे पहलू का हल तलाशना होगा। इस समस्या का हल निकालते हुए बिना किसी बाधा की कनेक्टिविटी प्राप्त करना, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से माल ढुलाई के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। ऐसा होने की स्थिति में वे मौजूदा पारगमन प्रतिबंधों के कारण लंबे और महंगे राजमार्गों पर परिवहन के ख़र्चे से बच जाएंगे।
उदाहरण के लिए, अगरतला से सामान को कोलकाता स्थित बंदरगाह पहुंचने के लिए संकीर्ण सिलीगुड़ी गलियारे से 1,600 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी, जिसे चिकन नेक के नाम से जाना जाता है। अगर भारतीय ट्रकों के लिए सीमाएं खुली होतीं, तो अगरतला से माल बांग्लादेश के चट्टोग्राम बंदरगाह तक सिर्फ़ 200 किमी की यात्रा कर पहुंच सकता है, जिससे परिवहन लागत में 80 प्रतिशत और कार्बन उत्सर्जन में 600 प्रतिशत की भारी कमी होगी।
बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल ने 2015 में एक ऐतिहासिक मोटर वाहन समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते को लागू करने से वाहनों, यात्रियों और कार्गो के लिए सीमा पार सड़क पारगमन पर प्रतिबंधों में ढील देकर बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही है।
पेट्रापोल बॉर्डर क्रॉसिंग की यात्रा के दौरान यह साफ़ दिखा कि दक्षिण एशिया के बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, भारत एवं नेपाल) उप-क्षेत्र में परिवहन और व्यापार को आधुनिक बनाने की तीन प्राथमिकताओं पर तत्काल काम करने की ज़रूरत है:
- बीबीआईएन मोटर वाहन समझौते के शीघ्र और प्रभावी क्रियान्वन को प्रोत्साहित करना ताकि अपेक्षाकृत कम दूरी वाले सस्ते परिवहन मार्गों के ज़रिए पूर्वोत्तर भारत का विकास संभव हो।
- भीड़भाड़ वाले राजमार्गों को आसान बनाकर और रेलवे नेटवर्क और अंतर्देशीय जल परिवहन मार्गों को जोड़ने वाले मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर विकसित करके कम कार्बन उत्सर्जन वाले मार्गों को बढ़ावा देना।
- सतत क्षेत्रीय रसद और माल आपूर्ति के लिए निजी क्षेत्र की अधिक कंपनियों को आकर्षित करना।
ऐतिहासिक मोटर वाहन समझौता बिना किसी बाधा वाले परिवहन कनेक्टिविटी का मार्ग प्रशस्त करता है जो क्षेत्रीय संबंधों को मज़बूत कर सकता है, निर्यात बढ़ा सकता है और उपभोक्ताओं के ख़र्चे कम कर सकता है।
इससे दक्षिण एशिया में बहुत बड़े बदलाव के साथ अवसरों का मुहैया कराने में मदद मिल सकती है.
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