भारत: बिहार में ग्रामीण महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार

This page in:
Poshan Sakhi with women benefeciaries from Bihar   Poshan Sakhi with women benefeciaries from Bihar

बिहार के रत्नी गांव में एक स्वयं सहायता समूह की बैठक में महिलाओं ने एक सुर में कहा, "हर दिन कम से कम पांच खाद्य समूहों को भोजन में शामिल करना चाहिए." उन्होंने आगे कहा, "स्वस्थ रहने के लिए अनाज, सब्ज़ियों, दालों, डेयरी उत्पादों, मांस, अंडों और विटामिन-ए से भरपूर फल खाएं"।

 

बिहार के जहानाबाद जिले की ग्रामीण महिलाओं को पोषण से जुड़ी जटिल अवधारणाओं के बारे में इतनी स्पष्टता के साथ बात करते हुए देखना काफ़ी सुखद था क्योंकि एक तो शहरी भारत में भी कई लोग पोषण सिद्धांतों के बारे में अनजान हैं, और दूसरा, जहानाबाद में महिलाओं की लगभग एक तिहाई आबादी निरक्षर है ।

हमने प्रत्यक्ष रूप से देखा कि किस तरह से विश्व बैंक द्वारा समर्थित जीविका कार्यक्रम की मदद से राज्य में महिला स्वयं-सहायता समूहों के लाखों सदस्यों की पोषण संबंधी जागरूकता में स्पष्ट बदलाव आया है। यह बदलाव तब देखने को मिला है जबकि बिहार स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र जीवन स्तर के मामले में बहुत पीछे है ।  

यह देखना भी उतना ही सुखद था कि किस तरह से महिलाओं में आई नई नई जागरूकता रंग ला रही है. रत्नी गांव में रहने वाली एक गृहणी रूबी देवी बताती हैं, "जब 2014 में मेरा पहला बच्चा पैदा हुआ था, तो उसका वजह केवल 1.18 किलो (2.6 पाउंड) था. वह अक्सर बीमार पड़ जाता था और बढ़ती उम्र के साथ उसे कुछ भी सीखने में कठिनाई हो रही थी." लेकिन 2016 के बाद, जब रूबी देवी को यह पता चला कि गर्भावस्था के दौरान उन्हें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, दो बच्चों के बीच कितना अंतर होना चाहिए और अपने बच्चे को क्या और कैसे खिलाना चाहिए, तो उनका दूसरा बच्चा 3.5 किलो (8 पाउंड) के सामान्य वजन के साथ पैदा हुआ. अब, उनका छोटा बेटा दूसरी कक्षा में जाने के लिए तैयार है, वहीं उनका बड़ा बेटा अभी भी पहली कक्षा में ही है.

 

Ruby Devi with her two sons, Village Ratni, Jehanabad, Bihar
बिहार के जहानाबाद के रत्नी गांव में रूबी देवी अपने दोनों बेटों के साथ

उचित पोषण का महत्त्व क्या होता है, यह जान लेने के बाद रूबी देवी अब अपने गांव की अन्य गर्भवती महिलाओं के पास जाकर अपने अनुभवों को साझा करती हैं। रूबी देवी जैसे उदाहरण बिहार के ग्रामीण इलाकों में काफ़ी मिलते हैं, जहां स्वयं सहायता समूहों की बैठकों में मिली शिक्षा से माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य में काफ़ी सुधार आया है ।

वर्तमान में राज्य में 5 साल से कम उम्र के लगभग आधे बच्चों को संतुलित पोषक आहार मिल रहा है, जबकि 2018 में हर 10 में से केवल 2 बच्चों को ही पोषक आहार मिल पा रहा था।  2018-2022 के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में प्रजनन आयु (यानी 15-49 वर्ष) की महिलाओं में हर 10 में से 6 महिलाएं उचित आहार ले रही हैं, जबकि पहले 10 में से केवल 2 महिलाएं उचित आहार ले पा रही थीं। राज्य में बाल कुपोषण की उच्च दर को देखते हुए यह उपलब्धि विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि 2019- 2022 के दौरान संग्रहित आंकड़ों के अनुसार राज्य में 5 वर्ष से कम उम्र के 41 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं और 69 प्रतिशत एनीमिया से पीड़ित हैं। वैश्विक अध्ययनों से पता चला है कि कैसे जीवन के पहले 1,000 दिनों में पोषण संबंधी कमी से शारीरिक विकास धीमा हो जाता है और संज्ञानात्मक क्षमता कम हो जाती है, और साथ ही शैक्षणिक परिणामों में भी गिरावट आती है।

तो, इस स्थिति में बदलाव कैसे आया है? स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता को लेकर व्यापक स्तर पर संवाद, लोगों की क्षमता के विकास और आजीविका स्तर में सुधार की दिशा में लगातार किए जा रहे प्रयासों ने ग्रामीण परिवारों के पोषण स्तर को सुधारने में योगदान दिया है।

यह परियोजना सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से ज्ञान हस्तांतरण के दृष्टिकोण पर आधारित थी. स्वयं-सहायता समूहों के चयनित सदस्यों को "पोषण सखी" के रूप में काम करने का प्रशिक्षण दिया गया. समुदाय के ही कुछ युवा और उत्साही सदस्यों को सामाजिक परिवर्तन के वाहक के रूप में चुना गया, जहां उन्हें स्वास्थ्य विभाग, समाज कल्याण और एम्स, पटना जैसे शीर्ष राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों (देश के शीर्ष चिकित्सा संस्थान) के सहयोग से स्वास्थ्य और पोषण में कठिन प्रशिक्षण दिया गया. महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में समाज के सबसे कमजोर वर्गों यानी 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, प्रजनन आयु (15- 49 वर्ष) की महिलाओं, ख़ासकर गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली महिलाओं तक पहुंचने पर विशेष जोर दिया गया.

 

Self-Help Group meeting in Jehanabad district, Bihar
बिहार के जहानाबाद जिले में एक स्वयं-सहायता समूह की एक बैठक

पोषण सखियों में गर्व की एक नई भावना का संचार हुआ है। जहानाबाद जिले के मखदुमपुर ब्लॉक की एक पोषण सखी, कविता कुमारी कहती हैं, "2016 में सिर्फ़ एक गृहणी होने की पहचान से जीविका के तहत एक पोषण सखी बनना और अब जीविका के लिए एक कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में काम करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैंने इसके बारे में कभी सोचा नहीं था. आज, जिले भर की औरतें मुझे पहचानती हैं और मुझे बहुत अच्छा लगता है जब वे मुझे सुनती हैं और मेरी कही बातों का पालन करती हैं"।  महिलाओं के बीच एक-दूसरे से सीखने इस कोशिश से जीविका कार्यक्रम को बड़ा लाभ हुआ है। इसने इस कार्यक्रम को व्यापक पैमाने पर लागू करने और अच्छी प्रथाओं को बढ़ावा देने में योगदान दिया है।

इस कार्यक्रम की सफ़लता का श्रेय महिलाओं के साथ-साथ राज्य सरकार को भी जाता है क्योंकि वह राज्य में पोषण की स्थिति में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। इसका प्रमाण यह है कि पिछले तीन सालों में बिहार में पोषण सखियों की संख्या बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई है, जो 2020 में 3,731 से बढ़कर वर्तमान में लगभग 7,500 हो गई है। इस कार्यक्रम की सफ़लता को देखते हुए जीविका को भारत में स्वास्थ्य और पोषण के लिए राष्ट्रीय संसाधन संगठन के रूप में मान्यता दी गई है। 

 इन उपलब्धियों को आगे ले जाने के लिए एक ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाना ज़रूरी है जो स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति को और बेहतर बनाने की दिशा में योगदान दे। जीविका के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी, राहुल कुमार कहते हैं, "ग्रामीण महिलाओं का स्वास्थ्य और पोषण वह आधारशिला है, जिसकी मदद से 1.3 करोड़ से ज्यादा परिवारों के जीवन को सामाजिक-आर्थिक स्तर पर और बेहतर बनाया जा सकता है। जीविका कार्यक्रम ग्रामीण बिहार में स्थाई समृद्धि के नए युग की नींव रखने और इन प्रयासों को और गंभीरता से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है"।

 



Authors

दीपिका आनंद

संचालन अधिकारी, स्वास्थ्य, पोषण और जनसंख्या वैश्विक अभ्यास, विश्व बैंक

मोहम्मद अनस

विश्लेषक, एडवांस्ड नॉलेज सॉल्यूशंस, विश्व बैंक

राज गांगुली

वरिष्ठ कृषि व्यापार विशेषज्ञ, विश्व बैंक

Join the Conversation

The content of this field is kept private and will not be shown publicly
Remaining characters: 1000