भारत में गरीबों को आत्मनिर्भर बनाने से जुड़े 10 सबक: बांग्लादेश, अफ्रीका और भारत के अनुभव

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Since 2002, programs which run on the BRAC model or those directly implemented by BRAC have reached 14 million ultra-poor people across 50 countries, 95 percent of whom have pulled themselves out of extreme poverty. 2002 से, बीआरएसी (बांग्लादेश रिहैबिलिटेशन एसिस्टेंस कमिटी) द्वारा चलाए जा रहे या उसके मॉडल पर आधारित कार्यक्रम 50 देशों में भीषण गरीबी में रह रहे 14 करोड़ लोगों को लाभान्वित किया है, जिनमें से 95 प्रतिशत भीषण गरीबी से बाहर निकलने में सफ़ल रहे हैं. फ़ोटो: विश्व बैंक

बांग्लादेश के एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली कुंतोला हमेशा से पढ़ना चाहती थी लेकिन उसके माता-पिता अपनी गरीबी के चलते उसे स्कूल नहीं भेज सकते थे।  सिर्फ़ 14 की उम्र में उसकी शादी हो गई और एक बेटे के जन्म के बाद उसे उसके पति ने भी छोड़ दिया, जिसके कारण वह अपने आपको हीन समझने लगी।  लेकिन 2005 में उसने बीआरएसी के अल्ट्रा पूअर ग्रेजुएशन प्रोग्राम के साथ अपना नामांकन कराया।  उसे पशुधन उपलब्ध कराया गया, पशुपालन में प्रशिक्षित किया गया, अपने परिवार की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ पैसे दिए गए और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई गईं।  आज, एक उद्यमी के रूप में कुंतोला बकरी पालन का एक बड़ा व्यवसाय संभाल रही है और प्रति माह 2 लाख बांग्लादेशी टका (2,100 डॉलर) कमा रही है, जिससे वह अपने बेटे को यूनिवर्सिटी भेजने का अपना सपना पूरा कर पाई है।

बिहार (भारत) की अजामाती की जिंदगी में भी नाटकीय बदलाव आया है। वह एक विधवा हैं और शारीरिक रूप से अक्षम हैं। तीन साल पहले, वह अपना जीवन समाप्त करने के बारे में सोचती थीं।  एक घरेलू सहायिका के रूप में वह महज 30 रुपए (37 सेंट) प्रति दिन कमाती थीं।  लेकिन बिहार के जीविका कार्यक्रम ने उसे एक दुकान खोलने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की । जीविका कार्यक्रम विश्व बैंक द्वारा समर्थित एक पहल है, जिसके केंद्र में भीषण गरीबी में रह रहे लोग आते हैं। आज, अजामती प्रति माह 5000 रूपये कमाती है, जिससे वह अपनी बचत को बढ़ाने में कामयाब रही है। उसके बैंक अकाउंट में करीब 50000 रुपए (625 डॉलर) है।

 

In India, Bihar’s Jeevika program, which also runs on the BRAC template, has enabled more than 100,000 of the poorest households to become food secure through a package of interventions.
भारत में, बिहार का जीविका कार्यक्रम बीआरएसी के मानदंडों पर आधारित है, जिसने करीब एक लाख गरीब घरों को विभिन्न पहलों के जरिए खाद्य सुरक्षा हासिल करने में सक्षम बनाया है

बांग्लादेश और भारत दोनों देश बहुत पहले से गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चला रहे हैं। यहां तक कि भारत का राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम), जो विश्व बैंक द्वारा समर्थित है और दुनिया के सबसे बड़े सामुदायिक लामबंदी प्रयासों में से एक है, 8 करोड़ से ज्यादा गरीब महिलाओं को 74 लाख स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने में कामयाब रहा है। 

लेकिन जल्दी ही ये पता चला कि इस कार्यक्रम के दायरे से बहुत सारे गरीब लोग बाहर हो गए थे क्योंकि वे आजीविका पाने या ऋण सुविधाओं को हासिल करने में अक्षम थे। वे गरीबी के दुश्चक्र में फंसे थे, जहां उनके पास न संपत्ति थी और न ही कोई कौशल और उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता था। अगर किसी माइक्रो-क्रेडिट (सूक्ष्म ऋण) कार्यक्रम तक उनकी पहुंच उपलब्ध हो भी जाती, तो भी वे अपना ऋण चुकाने में असमर्थ थे क्योंकि वे सिर्फ अपने गुजारे लायक आमदनी कमा पा रहे थे।

फरवरी 2022 में, एनआरएलएम ने विश्व बैंक से एक ज्ञान मंच का आयोजन करने का अनुरोध किया ताकि वे भीषण गरीबी में रहने वाली ग्रामीण महिला आबादी तक पहुंचने के लिए विभिन्न वैश्विक और स्थानीय दृष्टिकोणों के बारे में जानकारी हासिल कर सकें। उनके अनुसार, यही सबसे बड़ी चुनौती थी, जिस पर काम करने से देश में भीषण गरीबी की समस्या को दूर किया जा सकता था। जबकि भारत में भीषण गरीबी की संख्या में गिरावट आई है, जो 2011 में 22.5 प्रतिशत से घटकर 2019 में 10.2 प्रतिशत रह गई है, लेकिन अभी भी भारत में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों की संख्या वियतनाम, थाईलैंड और जर्मनी की सम्मिलित जनसंख्या से कहीं ज्यादा है।  विश्व बैंक के अनुसार, भारत में करीब 14 करोड़ लोग रोजाना 1.90 डॉलर से भी कम की आय पर अपना गुजारा करते हैं। अन्य स्रोतों के अनुसार लगभग 11 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं और अपने जीवन यापन के लिए सरकारी खाद्य वितरण कार्यक्रम, अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) पर निर्भर हैं।  

2018 में लंदन में दिए गए अपने एक भाषण में भारत के प्रधानमंत्री ने कहा: 'गरीबी का खात्मा करने के लिए हमें गरीबों को मजबूत बनाने की जरूरत है.'

भीषण गरीबी झेल रहे लोगों को गरीबी के दुश्चक्र से निकालने के लिए बीआरएसी का अल्ट्रा पूअर ग्रेजुएशन मॉडल दुनिया भर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय मॉडल है। 2002 से, बीआरएसी (बांग्लादेश रिहैबिलिटेशन एसिस्टेंस कमिटी) द्वारा चलाए जा रहे या उसके मॉडल पर आधारित कार्यक्रम 50 देशों में भीषण गरीबी में रह रहे 14 करोड़ लोगों को लाभान्वित किया है , जिनमें से 95 प्रतिशत भीषण गरीबी से बाहर निकलने में सफ़ल रहे हैं। तमाम अध्ययनों से पता चला है कि लाभार्थी पहल के समाप्त होने के साढ़े आठ (8.5) साल बाद भी उपभोग के स्तर को बनाए रखने और आर्थिक सुरक्षा हासिल करने में सक्षम थे।

 

In the African drylands, the BOMA project used an approach similar to the BRAC model. Since 2009, BOMA – which means ‘enclosure’ in Swahili – has been able to transform the lives of more than 450,000 poor women and children, nearly 93 percent of whom escaped extreme poverty within two years of assistance.
2009 से, बोमा (स्वाहिली भाषा में इसका अर्थ है: समावेशिता) प्रोजेक्ट 4 लाख 50 हजार से भी ज्यादा गरीब महिलाओं और बच्चों के जीवन में बदलाव लाने में सफ़ल रहा है, जिसमें से लगभग 93 प्रतिशत लोग सहायता मिलने के 2 साल के भीतर ही भीषण गरीबी से निकलने में सफल रहे।

इन कार्यक्रमों से महत्वपूर्ण सबक प्राप्त करने के लिए, विश्व बैंक ने भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ मिलकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें बीआरएसी, बोमा, जीविका और एनआरएलएम के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

इन मॉडलों के क्रियान्वयन से मिले अनुभवों से हमें 10 प्रमुख सबक मिलते हैं:

१) गरीबों को लाभार्थी की बजाय सह-निर्माता के रूप में देखना होगा।

२) गरीब पुरुषों और महिलाओं का संघ स्थापित करना होगा ताकि हम उनकी बाज़ार और सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित कर सकें और गांवों से जुड़े सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों में वे अपनी आवाज़ उठा सकें।

३) किसी परिवार की विशिष्ट जरूरतों को पहचानना होगा। एक आदिवासी परिवार की जरूरतें उन परिवारों से भिन्न होंगी  जिन्हें बुजुर्ग या विकलांग महिलाएं संभाल रही हैं।

४) किसी कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने से पहले उन कारणों की पहचान करनी होगी जिनसे कोई परिवार गरीबी के दलदल में फंसता है क्योंकि गरीब विभिन्न कारणों से गरीबी के दुश्चक्र का सामना करते हैं। भारत में, इन कारणों के पीछे सामाजिक रूढ़ियां (जैसे अनुसूचित जाति या जनजाति से ताल्लुक रखना आदि) या फिर शारीरिक या मानसिक अक्षमता अथवा जीवन की विशेष परिस्थितियां (जैसे विधवा होना) जिम्मेदार हो सकती हैं। 

५) नकद हस्तांतरण, कौशल प्रशिक्षण, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पहलों में सहयोग प्रदान करने जैसी गहन और लक्षित योजनाओं को लागू करना होगा. बीआरएसी ने बहुत पहले ही ये समझ लिया था कि स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित किए बगैर लोगों को गरीबी की दलदल से निकालना मुश्किल होगा।

६) ये सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी पहल व्यवस्थित ढंग से लागू की जाए और वह अपनी रूपरेखा में कई क्षेत्रों से जुड़ी विशेषताओं को साथ लेकर चलती हो, ख़ासतौर पर इन पहलों की समयावधि 18 से 24 महीने की होनी चाहिए ताकि तब तक एक परिवार एक सुरक्षित आजीविका हासिल कर सके।

७) ज़मीनी स्तर पर ऐसे लोगों की टीम तैयार करनी होगी, जो समुदाय में सबसे ज्यादा हाशिए पर रहने वालों की पहचान करने में सहायता कर सकें। जीविका योजना में, स्वयं सहायता समूहों के सबसे पुराने सदस्यों ने ये जिम्मेदारी उठाई थी।

८) गरीब घरों को सामाजिक संस्थाओं जैसे स्वयं सहायता समूहों से जोड़ना होगा जो उन्हें टिकाऊ, संघीय और बेहतर बाज़ार सुविधाओं से जोड़ने में सहायता प्रदान कर सकती हैं।

९) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को लचीला होना चाहिए, ख़ासकर भारत जैसे देशों में, जहां तमाम तरह की विविधताएं मौजूद हैं और यहां की जनसंख्या भी विशाल है। इसके अलावा कार्यक्रमों के भीतर भीषण गरीबी से जुड़ी नई श्रेणियों को भी शामिल करना चाहिए, जैसे: 'जलवायु प्रवासी'।

१०) आखिरकार, इनमें से किसी भी सहायता कार्यक्रम की सफ़लता संदिग्ध रहेगी जब तक राज्य स्तर पर संस्थाओं को मजबूत और लगातार सीखने की प्रक्रिया को सुदृढ़ नहीं किया जाता। मूल्यांकन के लिए आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से त्वरित प्रक्रियाएं हासिल की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, बोमा प्रोजेक्ट ने ऐसे कई डिजिटल टूलों का निर्माण किया है, जिसने ज़मीनी स्तर पर सीखने और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया को चुस्त बनाने में सहयोग किया है। 

वर्तमान में, विश्व बैंक राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि इन महत्त्वपूर्ण सबकों के लाभ को भीषण गरीबी में जी रही महिलाओं तक पहुंचाया जा सके और गरीबी मुक्त भारत के सपने को साकार किया जा सके।

 


Authors

सौम्या कपूर मेहता

वरिष्ठ सामाजिक विकास विशेषज्ञ

एना ओ'डोनेल

प्रमुख सामाजिक विकास विशेषज्ञ

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