कोरोना महामारी के खिलाफ़ एक अरब लोगों के टीकाकरण के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए टीका लगाने से जुड़ी झिझक नहीं बल्कि उसे लोगों तक पहुँचाना सबसे बड़ी चुनौती है।
150 करोड़ टीकों के साथ भारत ने कोरोना महामारी के विरुद्ध टीकाकरण अभियान के तहत 7 जनवरी को एक बड़ी कामयाबी हासिल की, जबकि जनवरी 2021 से लेकर अब तक इस राष्ट्रीय कार्यक्रम के महज़ एक साल पूरे हुए हैं। फ्रंटलाइन कर्मचारियों की मेहनत हो या फिर तकनीकी नवाचार हो, टीकाकरण अभियान भारतीय जनता को कोरोना वायरस से बचाव में हर लिहाज से सफ़ल रहा है। लेकिन ओमिक्रोन वैरिएंट के कारण दुनिया भर में कोरोना महामारी के खिलाफ़ टीकाकरण अभियान में तेजी आई है, और इसलिए इस तेजी को बनाए रखना पहले से भी ज्यादा ज़रूरी हो गया है।
पहले सौ करोड़ टीकों की खुराक तक पहुंचने की तुलना में 200 करोड़ खुराकों तक पहुंचना और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मौजूदा अभियान की प्रगति पर नज़र रखने और उसे ज़मीनी स्तर पर उतारने से जुड़े साक्ष्यों को पेश करने के लिए टीकाकरण से जुड़े कुछ सवालों को सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी, भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र) ने अपने एक पैनल सर्वेक्षण में शामिल किया, जिसके तहत जनवरी 2021 से लेकर अब तक भारत के 24 राज्यों के एक लाख परिवारों के बीच एक अध्ययन किया जा रहा है। इसमें शामिल विषय हैं: टीका लगवाने संबंधी झिझक, उसकी पहुंच का स्तर और उससे जुड़ी बाधाओं की संभावनाएं। यहां हम 31 अगस्त तक जुटाए गए आंकड़ों से जुड़ी संक्षिप्त जानकारियां पेश कर रहे हैं, और उसके साथ आगे की कार्रवाईयों के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सबकों पर भी बात कर रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर, परिवार में कम से कम एक सदस्य के टीकाकरण वाले 96 फीसदी परिवारों ने ये बताया कि ये टीका पूरी तरह नि:शुल्क था, जिससे हमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभावशीलता का पता चलता है। राज्य स्तर पर, कम आय और उच्च-आय वाले राज्यों, दोनों में टीकाकरण का असमान कवरेज देखने को मिलता है।
पहली बात, मौजूदा अध्ययन के अनुसार टीके से जुड़ी हिचकिचाहट अब पहले की तुलना में उतनी बड़ी बाधा नहीं है, जैसा कि पहले ऐसा दिखाई पड़ रहा था। ऐसे परिवार, जो सरकार द्वारा मुफ़्त टीके की व्यवस्था कराए जाने की स्थिति में भी टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं थे, उनकी संख्या जनवरी 2021 में 14 प्रतिशत से घटकर अगस्त 2021 में 3% थी। दूसरी लहर के दौरान देश भर में कोरोना प्रसार और उसके कारण हुई मौतों के बाद ये गिरावट सबसे ज्यादा देखी गई। इसके अलावा, साल की शुरुआत में टीके से जुड़ी हिचकिचाहट के सामाजिक- आर्थिक कारण बेहद स्पष्ट थे, जहां निम्न आय वर्ग की तुलना में उच्च वर्ग में ऐसे लोगों की संख्या लगभग दो गुना ज्यादा थी, जो टीकाकरण के प्रति सशंकित थे। अब ये अंतर दोनों वर्गों में समान स्तर पर मौजूद है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों में टीकों से जुड़ी हिचकिचाहट सबसे ज्यादा है, जिनकी संख्या 9 प्रतिशत से भी ज्यादा है। कुल मिलाकर देखें तो जैसा कि कई देशों के सम्मिलित अध्ययनों (यहां देखें, और ये भी) से स्पष्ट है, भारत में टीके के प्रति संशय उतनी बड़ी समस्या नहीं है जितना कि दुनिया के अन्य हिस्सों में है।
टीका लगाने की हिचकिचाहट में तेजी से गिरावट… सामाजिक आर्थिक मतभेद गायब हो गए हैं
दूसरी बात, सर्वेक्षण के परिणाम बताते हैं कि भारत का कोरोना महामारी के खिलाफ़ टीकाकरण अभियान काफ़ी हद तक सफ़ल रहा है लेकिन कुछ कमियां भी रह गई हैं। ऐसे परिवारों की संख्या अप्रैल में 17.5% से चार गुना बढ़कर अगस्त में 70.4% हो गई, जिसके कम से कम एक सदस्य को टीका लग चुका था। प्रशासनिक आंकड़ों की तरह, राज्यों में भी टीकाकरण की दर में ख़ासा अंतर देखने को मिलता है। राष्ट्रीय स्तर पर, परिवार में कम से कम एक सदस्य के टीकाकरण वाले 96 फीसदी परिवारों ने ये बताया कि ये टीका पूरी तरह नि:शुल्क था, जिससे हमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभावशीलता का पता चलता है।
प्रशासनिक आंकड़ों की तरह, राज्यों में भी टीकाकरण की दर में काफ़ी अंतराल दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्तर पर, परिवार में कम से कम एक सदस्य के टीकाकरण वाले 96 फीसदी परिवारों ने ये बताया कि ये टीका पूरी तरह नि:शुल्क था, जिससे हमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभावशीलता का पता चलता है। ठीक उसी समय, टीकाकरण की शुरुआत से ही उसके असमान कवरेज के आंकड़ें भी मौजूद हैं। निम्न वर्ग में टीकाकरण की दर 43% है, जबकि उच्च वर्ग के लिए यही आंकड़ा 66% है। राज्य स्तर पर, कम आय और उच्च-आय वाले राज्यों, दोनों में टीकाकरण का असमान कवरेज देखने को मिलता है। दिलचस्प बात ये है कि कोरोना महामारी के विरुद्ध टीकाकरण अभियान का सामाजिक-आर्थिक अंतराल बच्चों के नियमित टीकाकरण (12-23 माह के आयु वर्ग में पूर्ण टीकाकरण का प्रतिशत) कार्यक्रमों के लगभग समान है, जैसा कि 2015-16 के एनएफएचएस- 4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का चौथा चरण) सर्वेक्षण के परिणाम से पता चलता है।
वैक्सीन कवरेज का प्रभावशाली विस्तार…. लेकिन कवरेज में लगातार इक्विटी अंतराल
तीसरा, जबकि टीकों से जुड़ी शंका एक बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है, अध्ययन टीके की पहुंच से जुड़ी अन्य संभावी बाधाओं की ओर इशारा करते हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में टीके का कवरेज क्रमशः 66% और 52% है, वहीं ऐसे लोगों जिनके पास मोबाइल इंटरनेट की सुविधा है और जिनके पास नहीं है, उनके लिए ये आंकड़ें क्रमशः 59% और 51% है। हालांकि यह बाध्यकारी नहीं है लेकिन अधिकांश लोगों के लिए टीका कराने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना सबसे आसान प्रक्रिया है। सर्वेक्षण में भाग लेने वालों में से 77% लोगों का कहना था कि वो ऐसे किसी एक केंद्र के बारे में जानते थे, जहां कोरोना से बचाव के लिए टीके की सुविधा उपलब्ध थी, वहीं टीका न लगवाने वालों लोगों में से केवल 58% लोगों को टीकाकरण केद्रों की जानकारी थी। बल्कि ऐसे लोगों में टीकाकरण के प्रति जागरूकता और जानकारियों का अभाव देखा गया है, जो सामाजिक- आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा पिछड़े हैं और अब तक टीकाकरण से वंचित हैं। इनमें से आधे से भी कम लोगों को ऐसे स्थानों की जानकारी है, जहां टीकाकरण की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
कोरोना महामारी के खिलाफ़ भारत ने बेहद कम समय में अपना टीकाकरण अभियान चलाते हुए असाधारण सफ़लता हासिल की है। लेकिन अगले सौ करोड़ लोगों के टीकाकरण के लिए ज़रूरी है कि जनसंख्या के सबसे वंचित हिस्सों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित हो। टीकाकरण की राह में इस तबके सामने सबसे बड़ी बाधाएं हैं: अशिक्षा, जागरूकता की कमी, भौगोलिक दूरी, परिवहन की असुविधा। टीकाकरण अभियान से जुड़े इस सबसे आखिरी चरण पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि महामारी के ख़ात्मे की ओर हम एक और कदम बढ़ा सकें।
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