जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्रभाव गरीब और कमजोर वर्ग के लिए खासकर खतरे पैदा करते हैं। लेकिन जलवायु शमन प्रयासों को प्राथमिकता देते हुए देश अपने विकास की ओर कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? विश्व बैंक इस समाधान के लिए स्थानीय सहभागिता के साथ विकास, जलवायु और जैव विविधता बढ़ाने के लिए कार्य कर रहा है।
भारत के मेघालय राज्य में बहुत ज़्यादा वर्षा होती है तथा राज्य के 80 प्रतिशत वन क्षेत्र है। इसके बावजूद, वनों की कटाई, जैव विविधता की हानि एवं जल संसाधनों की कमी के कारण जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तेजी से देखा जा रहा है। वन और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) हेतु सहायता प्रदान करने के लिए राज्य एक समुदाय-आधारित भूमि स्वामित्व प्रणाली का उपयोग करता है ।
2018 से, विश्व बैंक समूह समर्थित मेघालय कम्युनिटी-लेड लैंडस्केप मैनेजमेंट परियोजना (एमसीएलएलएमपी) ने 400 गांवों में संरक्षण और स्थायी प्रबंधन हेतु 31,000 हेक्टेयर भूमि में परियोजना को चलाया। मेघालय सरकार के माध्यम से,यह परियोजना ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक स्तर की योजना को सुविधाजनक बनाने के लिए एवं जिला स्तर पर वित्त पोषण धाराओं के संमिलन की सुविधा के लिए सफलतापूर्वक चल रही है ।
यह परियोजना हरित, समावेशी और अनुकूल विकास के लिए निम्नलिखित दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करती है:
1. जलवायु अनुकूल जोखिम को बढ़ाना: 3,000 से अधिक स्प्रिंग शेडों को पुनर्जीवित किया गया है और साथ ही राज्य भर में 50,000 से अधिक शेडों की योजना बनाई गई है। परियोजना के तहत खदान से क्षतिग्रस्त भूमि को पुनः सुगंधित और औषधीय पौधों/घास को उगाना और ढलान भूमि वाली कृषि तकनीकों और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना और स्थायी जल संसाधनों का निर्माण करना है ।
2. खेती की स्थिति में सुधार: गांवों ने पानी की आवश्यकताओं का आकलन करने और समग्र जल गुणवत्ता में सुधार के लिए अपने एनआरएम अनुदान का प्रभावी ढंग से उपयोग किया है। स्प्रिंग चैंबरों, सुरक्षात्मक दीवारों का निर्माण और अधिक कुशल निस्पंदन सिस्टम स्थापित करके जल सुरक्षा को बढ़ाया गया है । फुदमिरटोंग बी गांव के एक किसान लाईबोडिंग खारपुली ने कहा, "पहले हमारे गांव के कृषक परिवारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था जो समय के साथ कठिन होती गईं।" "लेकिन अब हमारे किसानों की कामकाजी परिस्थितियों में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है।"
3. तकनीक-सक्षम मानव पूंजी का विकास करना: एआई और जीआईएस प्रौद्योगिकी में 14,000 से अधिक युवाओं के प्रशिक्षण दिया गया। इसके साथ अब 6,000 गांवों में तकनीकी जानकारी वाले मानव पूंजी का एक मजबूत आधार तैयार किया है । प्रारंभ में ग्राम-स्तरीय सुविधा प्रदाताओं के रूप में प्रशिक्षित, वे अब राज्य में वन प्रबंधन, कृषि मूल्य श्रृंखलाओं के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और कृषि उत्पादन और बाजार आदि को बढ़ाने में मदद करने से संबंधित सरकारी कार्यक्रमों में योगदान दे रहे हैं।
4. महिला सशक्तिकरण और महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना: वन क्षेत्र में संस्थागत परिवर्तनों ने ग्राम संस्थानों को मजबूत किया है जिसमे पारंपरिक आदिवासी जैसे दोरबार, नोकमा और डोलोई जनजाति समुदायों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है । विशेष रूप से, इस दृष्टिकोण ने महिलाओं को नेतृत्व करने को बढ़ावा दिया है और करते हुए देखा है, जो राज्य की पारंपरिक व्यवस्था में एक अभूतपूर्व विकास है, जहां शासन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम रहा है। वर्तमान में, ग्राम प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन समितियों में 400 महिला सचिव और 1600 महिला सदस्य हैं, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन में पहली बार नेतृत्व की स्थिति संभाल रही हैं। मावतेइबा गांव की सचिव सारती शानप्रू कहती हैं, "मैंने समुदाय की महिलाओं की सहभागिता में महत्वपूर्ण सुधार देखा है। एमसीएलएलएम ने हमारे लिए अकल्पनीय तरीकों से रास्ते खोल दिए हैं।" राज्य महिलाओं के लिए नेताओं, किसानों और व्यापारियों के रूप में आर्थिक अवसर खोलकर, महिला सशक्तिकरण का समर्थन करता है।
5. संस्थागत सहयोग: परियोजना ने ग्रामीण विकास और बुनियादी ढांचे वाले राज्य विभाग और विकास, आजीविका और जेंडर से जुड़े सरकारी कार्यक्रमों के बीच महत्वपूर्ण संबंध बनाकर भू-दृश्य प्रबंधन को मुख्यधारा में लाया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत एनआरएम फंड तक पहुंच के कारण , लाभार्थियों को परियोजना के बंद होने के बाद भी दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित किए हैं।
6. उद्यमिता और इनोवेशन को बढ़ावा देना: ग्रामीण स्तर पर छोटे अनुदानों के माध्यम से, अच्छी एनआरएम को बढ़ाने के लिए 278 गांवों को 13 करोड़ रुपये से अधिक दिए गए हैं। बड़े स्तर पर, इनोवेशन फंडिगं ने सामुदायिक वन और कृषि उद्यमों की मदद करना जारी रखा है - जैसे कि 346 सामुदायिक नर्सरी का विकास, जिससे प्रतिभागियों को 35 लाख रुपये से अधिक की आय हुई है। जोर्सिंग सिंगकली को 3 लाख रुपये का अनुदान मिला, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक नर्सरी और जैविक कीटनाशक इकाई में बदल दिया। वह कहते हैं, "मैं हमेशा अपना खुद का व्यवसाय चाहता था लेकिन सरकार से यह समर्थन मिलने तक मेरे पास पूंजी की कमी थी।"
7. प्रकृतिक समाधान और पारंपरिक ज्ञान का समर्थन: मेघालय में, स्थानीय समुदायों को पर्यावरणीय ज्ञान पारंपरिक रूप से पीढ़ियों से मौखिक रूप से मिला है। खासी आदिवासी समुदाय के लिए लगभग पांच दशक से काम करने वाले इओरा दखार का मानना है कि "सभी का सहयोग और सक्रिय सहभागिता ही सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों और गरीबी उन्मूलन का एकमात्र समाधान है।" इओरा एक समुदाय-स्तरीय सहकारी संघ का भाग है। इसमें 52 गांव शामिल हैं, जिसमे 30 सहकारी समितियों का गठन किया गया है जिन्होंने 81 लिविंग रूट ब्रिज के संरक्षण, सामुदायिक नर्सरी का निर्माण, वाटरशेड की बहाली, प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके स्थायी निर्माण विधियों, पारंपरिक खाद्य-चिकित्सा, आजीविका प्रथाओं जैसे क्षेत्रों में कार्य करते हैं।
8. जलवायु कार्रवाई के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: हाल ही में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी और यूएवी/ड्रोन एप्लीकेशन की शुरुआत ने मानचित्रों के विकास को सुविधाजनक बनाया है, और भूमि उपयोग और भूमि कवर योजना का समर्थन किया है। इसने ऑनलाइन पीईएस सत्यापन को भी बढ़ाया है और कृषि और आपदा प्रबंधन प्रयासों का समर्थन किया है। इस डिजिटल बुनियादी ढांचे की तैनाती डिजिटल उत्कृष्टता केंद्र के माध्यम से ज्ञान और प्रशिक्षण तक सार्वभौमिक पहुंच भी सुनिश्चित कर रही है जो वन और स्थिरता प्रयासों को बढ़ाने में एनआरएम हितधारकों को एक साथ लाता है।
यह परियोजना इस बात का एक अग्रणी उदाहरण है कि स्थानीय सहभागिता के साथ सरकारी हस्तक्षेप वन और पारिस्थितिकी तंत्र क्षेत्र में क्या कर सकता है। वन और पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन के लिए इसका समावेशी और एकीकृत दृष्टिकोण पूरे राज्य और क्षेत्र में अन्य कार्यों में दोहराए जाने के लिए तैयार है। भू-दृश्य और जन-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, जलवायु शमन और अनुकूलन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। यह अंततः गरीबी में कमी, प्रगति को ओर बढ़ावा और रहने योग्य ग्रह पैदा कर सकता है।
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