दुनिया भर के देश इन दिनों जलवायु परिवर्तन की आपदा एवं चुनौतियों से निपटने के लिए अक्षय ऊर्जा, कार्बन के इस्तेमाल और टिकाऊ खेती के क्षेत्र में नए नए तरीक़े आजमा रहे हैं। परिवहन एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर तत्काल प्रभाव से ध्यान देने की ज़रूरत है और इस क्षेत्र में प्रयोग का फ़ायदा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मिलेगा।
अनुमान है कि 2030 तक दुनिया भर की आबादी 8.5 अरब हो जाएगी I ऐसे में हर साल यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में 50% और वैश्विक स्तर पर माल ढुलाई में 70% वृद्धि का अनुमान है I मौजूदा समय में दुनिया भर के ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन का 18% हिस्सा परिवहन से होता है, अगर कोई क़दम नहीं उठाए गए तो 2050 तक इसके 60% तक पहुंचने की आशंका है I परिवहन क्षेत्र में कार्बन के कम इस्तेमाल से इन उत्सर्जनों को कम किया जा सकता है और 1.5 डिग्री जलवायु लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है I
वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशियाई देशों का आपसी संपर्क दुनिया में सबसे कम है। ऐसे में इन देशों के बीच संपर्क जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए I उच्च गुणवत्ता वाले क्षेत्रीय संपर्क ना केवल इन देशों के बीच आपसी कारोबार और अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने में बढ़ावा देगा बल्कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा और कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा I इन चार तरीक़ों से हम दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाते हुए जलवायु परिवर्तन की चुनौती का बेहतर ढंग से सामना कर सकते हैं।
- GRID का दृष्टिकोण- कोई पीछे ना छूटे
विश्व बैंक ने 2021 में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए हरित, लचीला और समावेशी विकास (जीआरआईडी) दृष्टिकोण पेश किया था जो आर्थिक विकास के साथ साथ पर्यावरणीय लक्ष्यों को भी साथ लेकर चलने वाला है I इस दृष्टिकोण ने वह रास्ता निर्धारित किया है जिससे लंबे समय तक आर्थिक प्रगति कायम रखी जा सकती है, जिसमें आम लोगों की साझेदारी होगी, आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में प्रगति होगी I
दक्षिण एशिया में, इस दृष्टिकोण के तहत, निम्नांकित चार क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाएं कार्बन उत्सजर्न को करने में मदद कर रही हैं - अनावश्यक मोटर यात्रा से बचना; स्वच्छ परिवहन साधनों के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी, बुनियादी ढांचे में सुधार एवं बेहतर सुविधाएं; और विपरीत स्थितियों का सामना करने के लिए परिवहन प्रणालियों को मजबूत करना I
नेपाल ने एक जीआरआईडी दृष्टिकोण अपनाया है और इसके क्रियान्वन को सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक कार्य योजना तैयार की जा रही है I
2. हरित और समावेशी पैमाने पर जलमार्गों का कायाकल्प
पूर्वी दक्षिण एशिया में, परिवहन का सबसे पुराना साधन नदियां रही हैं I एक समय ऐसा था जब गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा के व्यस्त जलमार्गों से करीब 70% माल और यात्री आवागमन करते थे I इन दिनों 2% से कम माल की ढुलाई जलमार्ग से हो रही है और 75% अंतर-क्षेत्रीय व्यापार सड़कों के माध्यम से होता है I अधिकांश सड़कें दो लेन की भीड़-भाड़ वाली सड़कें हैं जहां ट्रक 30 किमी प्रति घंटे से कम की गति से यात्रा करते हैं I संकरी सड़कें होने के चलते भी अक्सर बड़े वाहनों या कंटेनरों को ढोना संभव नहीं होता है I सड़क मार्ग के बदले रेल या जलमार्ग का इस्तेमाल, माल ढुलाई को प्रभावी और किफायती दोनों बना सकता है और साथ ही कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकता है I उदाहरण के लिए, यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में मालों की ढुलाई में सड़क की तुलना में जलमार्ग का इस्तेमाल क़रीब 40% सस्ता होता है और 75-80% कम ईंधन की खपत होती है I
जलमार्ग में कई व्यक्तिगत निवेशों को आमंत्रित करने के लिए, वर्ल्ड बैंक भारत और बांग्लादेश के बीच एक व्यापक पूर्वी जलमार्ग ग्रिड के निर्माण में मदद कर रहा है, जो उनकी नदियों को आपस में जोड़ने वाला है I इसे सड़क और रेलमार्ग से जोड़कर उन हिस्सों तक पहुंचने की योजना है जो अब तक संपर्क से कटे हुए हैं I
1.7 बिलियन अमरीकी डालर के स्वीकृत निवेश के साथ, यह भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्गों के माध्यम से बीबीआईएन क्षेत्र में 3,500 किलोमीटर जलमार्गों को जोड़ेगा और निर्धारित बंदरगाहों से नेपाल और भूटान को भी जोड़ेगा I अंतर्देशीय जलमार्गों को तटीय बंदरगाहों से जोड़ने पर भी विचार किया जा रहा है I
3. हरित परिवहन संपर्क और माल ढुलाई के लिए रेलवे कॉरिडोर बनाना
इंडिया रेल लॉजिस्टिक्स प्रोजेक्ट माल ढुलाई के लिए रेलवे फ्रेट और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण की मदद कर रहा है I इसका उद्देश्य यात्री यातायात और माल ढुलाई को सड़क मार्ग से रेल मार्ग में स्थानांतरित करना है, ताकि यह प्रभावी और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हो I भारत के पूर्वी हिस्से को समर्पित रेल फ्रेट कॉरिडोर के लिए वर्ल्ड बैंक की ओर से 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद मिल रही है I केवल माल ढुलाई की यह रेलवे लाइन आज़ादी के बाद भारत की सबसे महत्वाकांक्षी रेलवे परियोजना है I
भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है I इसने 2019 और 2020 में 1.2 बिलियन टन माल की ढुलाई की, जो भारत के कुल माल ढुलाई का लगभग 17% था I दूसरी ओर, भारत के माल ढुलाई का बड़ा हिस्सा सड़क मार्ग से आता-जाता है और यह माल ढुलाई क्षेत्र के कुल 95% कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है I ट्रकों की तुलना में रेल करीब 20% ही कार्बन उत्सर्जित करती है I साफ़ है जलवायु परिवर्तन के लिहाज से भी यह एक बेहतर विकल्प है I
भारत ने पूर्वोत्तर के अलावा बांग्लादेश और नेपाल के साथ माल ढुलाई में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए रेलवे के बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ाया है I भारतीय रेलवे 2030 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने की योजना बना रहा है I ऐसे में रेलवे से माल ढुलाई और आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाकर एवं दक्षिण एशियाई देशों के साथ संपर्क जोड़कर हर साल 75 लाख टन कार्बन उत्सर्जन को ख़त्म किया जा सकता है I
वर्ल्ड बैंक भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में मल्टीमॉडल हब, कंटेनर टर्मिनलों और एकीकृत परिवहन सेवाओं के विकास में मदद कर रहा है. इसके अलावा क्षेत्रीय रेल सेवाओं की मदद के लिए क्षेत्रीय समझौते को लेकर भी बातचीत चल रही हैI
- परिवहन को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त बनाने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण
वर्ल्ड बैंक ने 2021 में ग्लोबल फैसिलिटी टू डीकार्बोनाइज़ ट्रांसपोर्ट (GFDT) को लाँच किया था, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के लिहाज से बेहतर परिवहन व्यवस्था की दिशा में निवेश और प्रयोगों को बढ़ावा देना है ताकि देशों के सामने विकास और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से बचाव में से किसी एक विकल्प को चुनने की नौबत नहीं आए I
दक्षिण एशियाई देशों के लिए, GFDTउच्च-प्रभाव वाली क्षेत्रीय और राष्ट्रीय परियोजनाओं को तैयार करने में मदद करने के लिए अनुसंधान और विश्लेषणात्मक कार्य करने का अवसर प्रदान करता है, और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से बचाव के लिए नये प्रयोगों को बढ़ावा देता है I
परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के तौर तरीक़ों के माध्यम से लोगों के जीवन और आजीविका की गुणवत्ता में सुधार करके दक्षिण एशिया देशों में मजबूत आर्थिक सुधार में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है I यह उन समाधानों पर निर्भर करता है जो नए हों, साथ में साझेदारों की सलाह मशविरा से बने हों I यह निर्णायक दौर है जिसमें सभी हितधारकों को हरित, दृढ़, समावेशी और एक दूसरे से जुड़े भविष्य के लिए हाथ मिलाना होगा I
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