भारत में ‘ओपेन स्काई’ स्कूलों में जलवायु अनुकूलन सीखते हैं किसान

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मराठवाड़ा के सूखा प्रभावित जिले में, किसानों का एक समूह उत्सुकता से भूमि के छोटे भूखंडों का निरीक्षण करता है जहां दालें, फल और सब्जियां उगाई जा रही हैं। जिज्ञासु किसान जमीन मालिकों से कई सवाल पूछते हैं - उन्होंने यह चयन कैसे किया कि किस फसल को उगाना है, किस उर्वरक का उपयोग किया, और सबसे महत्वपूर्ण यह कि उन्होंने अपने खेतों की सिंचाई कैसे की? मानसून कमजोर था, और पानी बहुलता में उपलब्ध नहीं था। किसान सीखने के लिए उत्सुक हैं और जमीन मालिक अपने अनुभव साझा करने के इच्छुक हैं।

महाराष्ट्र में किसानों ने अपनी जमीनों पर प्रदर्शन भूखंडों के रूप में उपयोग करने के लिए खेती योग्य भूमि के ऐसे कई छोटे भूखंड बनाए हैं। ये अनौपचारिक 'ओपन-स्काई' स्कूल बन गए हैं और छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए सीखने के मैदान के रूप में काम करते हैं। वे विज्ञान, जल विज्ञान और फसल उत्पादकता में हालिया प्रगति के बारे में सीखते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह सीखते हैं कि जलवायु परिवर्तन के साथ बेहतर अनुकूलन में मदद के लिए उपयुक्त कृषि पद्धतियों को कैसे अपनाना है।

भारत में महाराष्ट्र 1.5 करोड़ से अधिक किसानों का घर है और वहां 50% से अधिक खेती योग्य भूमि है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने राज्य के कई सूखा प्रभावित जिलों में कृषि उत्पादकता को प्रभावित किया है। इन सूखा प्रभावित जिलों में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए, विश्व बैंक द्वारा समर्थित 60 करोड़ डॉलर की महाराष्ट्र जलवायु लचीला कृषि परियोजना  (पीओसीआरए) शुरू की गई थी। परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना एवं कृषि व्यवसाय के अवसरों में सुधार करना और छोटे एवं सीमांत किसानों को सतत तरीके से अपनी आय बढ़ाने में मदद करना है।

'ओपन स्काई स्कूलों में, किसान सही मिट्टी तैयार करना, फसल का सही चुनाव करना, कम लागत की जैविक कृषि पद्धतियों का उपयोग करना और जल-संरक्षण तकनीकें सीखते हैं।

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जिला बुलढाणा के भुईसिंग गांव में कक्षा चल रही है।

कक्षाओं के बिना स्कूल

परियोजना का एक उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण पहलू किसानों द्वारा बनाए गए प्रदर्शन भूखंड हैं जो 'ओपन स्काई' स्कूलों के रूप में काम करते हैं। यहां, किसान सही मिट्टी तैयार करना, फसल का सही चुनाव करना, कम लागत की जैविक कृषि पद्धतियों का उपयोग और जल-संरक्षण तकनीकें सीखते हैं। इसके अलावा, देश के विख्यात प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई द्वारा बनाए गए एक मोबाइल ऐप द्वारा पानी की उपलब्धता की जानकारी दी जाती है।

ऐप मौसम के पूर्वानुमान पर रीयल-टाइम डेटा का उपयोग करता है और किसानों को गांव में सतह और भूजल की स्थिति, और फसली मौसम के दौरान पानी की वास्तविक मांग और उपलब्धता के बारे में जानकारी प्रदान करता है। इस जानकारी और नमी-संरक्षण में प्रशिक्षण ओपेन स्काई कक्षाओं से सीखी गई जल संचयन प्रथाओं के साथ, किसान गांव-स्तर की पानी की मांग और आपूर्ति के संतुलन को ध्यान में रखने हुए अपनी फसल के लिए सूक्ष्म योजना तैयार करते हैं।

इन सूक्ष्म योजनाओं को फिर ग्राम जलवायु लचीला प्रबंधन समिति को प्रस्तुत किया जाता है, जिसे परियोजना के तहत लाभार्थी परिवारों द्वारा तैयार की गई योजनाओं को मंजूरी देने और उनकी निगरानी करने के लिए गठित किया गया है। सूक्ष्म योजनाओं को कार्यान्वयन के लिए एक बहु-चरणीय प्रक्रिया के जरिए गुजारा जाता है, और परियोजना निधि सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में हस्तांतरित की जाती है। इस अच्छी तरह से एकीकृत समय पर निधि हस्तांतरण तंत्र ने छोटे किसानों को परियोजना के लघु और दीर्घकालिक, दोनों लाभों को प्राप्त करने में मदद की है।

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विमल राजाभू यादव अपने पति राजाभाऊ यादव के साथ उनके बागान में।

राजाभाऊ यादव और उनकी पत्नी विमल राजाभू यादव महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिले उस्मानाबाद के एकरुगा गांव में बागवानी किसान हैं। ओपन स्काई स्कूल से प्राप्त प्रशिक्षण के आधार पर, उन्होंने अपनी आधा हेक्टेयर भूमि पर कम अवधि के अमरूद के रोपण के लिए एक सूक्ष्म योजना तैयार की। उन्हें परियोजना के तहत 73,000 रुपये की आर्थिक सहायता मिली। जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं का उपयोग करते हुए, उनकी पहली फसल से ही उन्होंने 65,000 रुपये कमाए।

परियोजना के तहत, किसान प्रशिक्षण के लिए इस सरल दृष्टिकोण के साथ सत्र में फिलहाल 4000 ऐसे "ओपन स्काई स्कूल" हैं। जल्द ही इनके राज्य के लगभग 6,000 गांवों में फैलने की उम्मीद है।

महाराष्ट्र परियोजना ने किसानों द्वारा पेश की गई नई और उभरती जलवायु जोखिम चुनौतियों का जवाब देने के लिए एक एकीकृत कंप्यूटर प्रौद्योगिकी मंच और मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से अनुसंधान और विस्तार एजेंसियों के लिए एक फीडबैक तंत्र भी बनाया है। विभिन्न फसलों के प्रारंभिक परिणामों से संकेत मिलता है कि जलवायु-स्मार्ट कृषि संबंधी प्रथाओं को डिजाइन करने में प्रौद्योगिकी के इस अनुप्रयोग से लागत में लगभग 20 प्रतिशत की कमी आई है और कृषि आय में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे पता चलता है कि जानकारी और सेवाओं की मांग पैदा करने के साथ-साथ निचले स्तर पर ज्ञान वृद्धि का दृष्टिकोण भी महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिलों में छोटे किसानों को लाभांश दे रहा है।

भारत में इस अभूतपूर्व परियोजना ने प्रदर्शित किया है कि छोटे कृषि भूमि धारकों के बीच महत्वपूर्ण ज्ञान की कमियों को पूरा करने से एक ही साथ उत्पादकता, किसान समृद्धि और पर्यावरणीय सतता में काफी सुधार हो सकता है।


Authors

Ranjan Samantaray

Senior Agriculture Specialist

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