भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड के दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं पहुंचाना लंबे समय से एक कठिन चुनौती रहा हैI ज्यादातर पहाड़ी गांवों तक पहुंचना कठिन है और उनमें से कई गांवों की आबादी बहुत कम हैI इनमें से 80 प्रतिशत से भी ज्यादा गांव ऐसे हैं, जिनमें 500 से भी कम लोग रहते हैं I भूस्खलन से अक्सर सड़कें बंद हो जाती हैं I मानसून के मौसम में ख़ासतौर पर ऐसा देखने को मिलता है I इसके कारण गांववालों को दूर के किसी स्वास्थ्य केंद्र तक जाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है I
सीमित बुनियादी ढांचे, चिकित्सा उपकरणों और डॉक्टरों की कमी जैसे कारणों के चलते इलाज के लिए राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भरोसा दिखाने वालों की संख्या घटती जा रही है I लोगों के पास अक्सर लंबी दूरी तय करके मैदानी इलाकों के बड़े अस्पतालों में जाने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं होता I
अब रामनगर, टेहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल में स्वास्थ्य व्यवस्था के हर स्तर पर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को लागू किया गया है, जिसके कारण ऐसा पहली बार हुआ है कि उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में हर तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं I हर एक क्लस्टर में एक जिला अस्पताल, दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और तीन मोबाइल स्वास्थ्य वैन हैं, जो आवश्यक स्वास्थ्य उपकरणों से लैस हैंI
पीपीपी मॉडल के लागू होने के बाद से तीन जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 95 प्रतिशत से भी अधिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के पदों को भरा जा चुका है I पहले इन अस्पतालों में किसी भी तरह की सर्जरी नहीं की जाती थी, लेकिन पिछले तीन सालों से इन स्वास्थ्य केंद्रों में 600 से ज्यादा बड़ी सर्जरी और लगभग 1,500 छोटी सर्जरी की गई हैं I
टेहरी गढ़वाल के चीफ मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. अमित कहते हैं, “अब यहां बहुत सारे सी-सेक्शन ऑपरेशन किए जा रहे हैं I आर्थोपेडिक्स में बड़े-बड़े ऑपरेशन किए जा रहे हैं I जनरल सर्जरी विभाग में भी यहां दूर-दूर से लोग इलाज कराने आ रहे हैं.”
रामनगर जिला अस्पताल में हमारी मुलाकात ज्योति से हुई, जो वहां से 30-40 किमी दूर डाबरी गांव की रहने वाली हैं और अभी-अभी मां बनी हैं I ज्योति ने सी-सेक्शन के ज़रिए एक बच्चे को जन्म दिया है I ज्योति ने मुस्कुराते हुए बताया, “पहले यहां पर ऐसे ऑपरेशन नहीं होते थे I अब हमें गर्भ के दौरान कठिनाइयों का सामना करने पर देहरादून (उत्तराखंड की राजधानी जो मैदानी इलाके में स्थित है) नहीं जाना पड़ता I” महेंद्र सिंह अपने बच्चे की पैदाइश के लिए अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर 60 किमी की दूरी तय करके रामनगर अस्पताल आए थे। वह खुशी के साथ बताते हैं, “अस्पताल साफ़-सुथरा था, बच्चे की अच्छी देखभाल हुई और टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध थी I”
यह कैसे किया गया?
सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत सरकार ने मौजूदा सुविधाओं और इमारती ढांचों को निजी भागीदारों के हवाले कर दिया है I निजी भागीदारों को तय मानदंडों के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करने की ज़िम्मेदार दे दी गई है I विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों, लैब तकनीशियनों और पैरामेडिक्स की भर्ती, तैनाती और उन्हें वेतन भत्ते देने के अलावा निजी भागीदारों को इन स्वास्थ्य केंद्रों को चिकित्सा और निदान से जुड़े उपकरणों से लैस करने एवं दवाएं एवं अन्य ज़रूरी संसाधनों को मुहैया कराने के लिए जवाबदेह बनाया गया है I दूसरी तरफ़, सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह आपसी सहमति से तय किए गए प्रदर्शन संकेतकों के आधार पर निजी भागीदारों को भुगतान करे। विश्व बैंक उत्तराखंड स्वास्थ्य प्रणाली विकास परियोजना के ज़रिए इस पहल का समर्थन किया जा रहा हैI
टेहरी जिले के बोराड़ी में नर्स सुपरवाइजर के तौर पर काम कर रहे महेश प्रसाद उनियाल हमें बताते हैं कि अब उनके साथ 38 स्टाफ नर्स और 7 इंचार्ज काम करते हैं I“मेरे पास 1:70 (70 मरीजों पर एक स्टाफ नर्स) के अनुपात में स्टाफ नर्सें हैं। इमरजेंसी सेवाएं चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं। यहां स्टाफ हैं इसलिए हम मरीजों को किसी दूसरे बड़े अस्पतालों में रेफर नहीं करते हैंI”
इस मॉडल से जुड़ी एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसे लागू करने से पहले विस्तार में इसका वित्तीय आकलन किया गया I देश में पहली बार ऐसा स्वास्थ्य मॉडल लागू किया गया है जहां पर निजी भागीदार किसी एक स्वास्थ्य सुविधा की बजाय विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं I स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच, उपलब्धता, बुनियादी ढांचे और सेवाओं की गुणवत्ता जैसे स्वास्थ्य पहलुओं में मौजूदा अंतराल को समझने के लिए बाज़ार मूल्यांकन और सामुदायिक भागीदारी के आधार पर किए गए अध्ययन इस मॉडल का समर्थन करते हैंI
इसके अलावा, सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने निगरानी और मूल्यांकन के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी को नियुक्त किया ताकि निजी भागीदार को भुगतान से पहले इस बात का पता लगाया जा सके कि उसने पहले से तय किए गए प्रदर्शन संकेतकों को पूरा किया है या नहीं। इन संकेतकों में कर्मचारियों की उपलब्धता, सेवाओं की गुणवत्ता, मरीजों की संतुष्टि और संक्रमण पर नियंत्रण जैसे महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को शामिल किया गया है। अगर निजी कंपनी की सेवाएं हर संकेतक के लिए तय की गई सीमा से बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसे ज्यादा भुगतान किया गया है। ख़राब प्रदर्शन करने पर भुगतान में कटौती की जाती है।
चूंकि यह अपने आप में ऐसा पहला मामला था जहां किसी सार्वजनिक अस्पताल को पूरी तरह से निजी हाथों में सौंप दिया गया था, इसके लिए एक विस्तृत प्रबंधन योजना तैयार की गई थी ताकि इस दौरान सेवाओं के वितरण में कोई बाधा न आए।
समुदाय के स्तर पर, तीनों जिलों में नौ में से सभी अस्पतालों में मरीजों की समितियां गठित की गई। मरीजों की शिकायतों को दूर करने और कोई ठोस कार्रवाई का चयन करने के लिए हर तीन महीने इन समितियों की बैठक होती है.
स्वास्थ्य वितरण प्रणाली में बदलाव के शुरुआती संकेतकों से पता चलता है कि उत्तराखंड के कठिन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में साल भर जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, यह मॉडल उनमें से कुछ चुनौतियों का प्रभावी समाधान कर सकता है।
यह मॉडल निजी कंपनियों के लिए वित्तीय रूप से व्यावहारिक विकल्प है, जबकि अन्य राज्य अपनी विशेष परिस्थितियों के अनुसार थोड़े बदलाव के साथ इस मॉडल को अपना सकते हैं।
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