
समीरा महज़ 14 साल की थीं जब उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। इसके तुरंत बाद उसके गरीब माता-पिता ने उसकी शादी तय कर दी, जिसके बाद वह अपने ससुराल में खाना पकाने और साफ़-सफ़ाई के कामों तक सीमित रह गईं। केरल के मलप्पुरम जिले के मछुआरा समुदाय की लगभग सभी औरतों की बस यही कहानी है।
डेढ़ साल बाद, समीरा और कार्यक्रम से जुडी अन्य औरतों ने मिलकर बिस्मिल टेलरिंग की शुरुआत की, जिससे उन्हें अपने समुदाय के लिए कपड़ा सिलकर पैसे कमाने का मौका मिला। समीरा बताती हैं, "हमारे ग्राहक, हमारे काम की सराहना करते हैं और हम अच्छा पैसा कमा रहे हैं।"
हालांकि, उनका काम शुरू होने के कुछ ही महीने बाद, कोरोना महामारी को रोकने के लिए तालाबंदी की घोषणा की गई। ऑर्डर कम हो गए, और उसका नए कारोबार पर बुरा असर पड़ा।

परिवारों को संकट से उबारने में महिलाओं की आमदनी एक बड़ा सहारा है
जब चार महीने बाद हमारी समीरा से बात हुई तो हम उसकी उत्साह भरी आवाज़ ने हमें चौंका दिया। वह आत्मविश्वास से हमें बता रही थी कि भले ही उसकी यूनिट की सभी महिलाएं वापिस अपना काम शुरू नहीं कर पाईं थीं लेकिन उन्हें मास्क बनाने के कई ऑर्डर आए थे, और उसे इस बात का पूरी यकीन था कि तालाबंदी हटते ही उनका जीवन फिर से पटरी पर आ जाएगा।
शिक्षा और प्रशिक्षण के साथ-साथ बाहरी दुनिया से संपर्क ने उसके भीतर ये आत्मविश्वास जगाया कि वह इन अस्थायी संकटों के बावजूद आगे बढ़ सकती है। यह इस बात से भी स्पष्ट है कि वह इस संकट के दौरान भी अपने परिवार का खर्च चलाने में सक्षम रहीं। उनके मछुआरा पति का महामारी के कारण समुद्र में जाना प्रतिबंधित था।
बत्तीस वर्षीय कौसर जहां की कहानी भी समीरा जैसी ही है। वह तीन बच्चों की मां हैं और वह परिवार के नौ और सदस्यों के साथ पूर्वी हैदराबाद में रहती हैं। कौसर महज़ 17 साल की थी, जब उनकी शादी हुई और उसके कारण उनकी पढ़ाई छूट गई। नई मंज़िल कार्यक्रम की सहायता से उन्होंने प्रशिक्षण हासिल किया और इसके बाद उन्हें एक अस्पताल में बेड साइड सहायक की नौकरी मिल गई, जिसका काम मरीजों की देखभाल करना था।
जब महामारी के कारण लाखों लोगों का जीवन और उनकी आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है, कौसर अभी भी अपनी 4000 रूपये की कमाई से अपने परिवार की सहायता कर रही हैं, जबकि उनके नियोक्ताओं ने उनसे महामारी के प्रकोप के बीत जाने तक घर पर रहने को कहा है। भले ही पहले की तुलना में उन्हें अब आधा वेतन मिल रहा हो लेकिन ये उनके 9 सदस्यों वाले परिवार के लिए बहुत बड़ी मदद है, ख़ासकर तब जब उनके इलेक्ट्रीशियन पति को इस संकट के दौरान कोई काम नहीं मिल पा रहा।
कौसर अपने प्रशिक्षण की सहायता से पुराने हैदराबाद शहर में अपने समुदाय के लोगों को मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं, जहां वे उन्हें ज़रूरी टीके लगाती हैं और उनके रक्तचाप की जांच करती हैं।
और, इससे केवल उनके परिवारों को ही मदद नहीं मिली है। कौसर अपने प्रशिक्षण की मदद से हैदराबाद में अपने समुदाय के लोगों को मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रही हैं, जहां वह उन्हें टीके लगाने के साथ-साथ उनके रक्तचाप की जांच करती हैं, उनके स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्टों को पढ़कर उन्हें समझाती हैं और जो लोग गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं उन्हें डॉक्टर के पास जाने के लिए प्रेरित करती हैं।
समीरा भी केरल में अपने छोटे से मछुआरा समुदाय के लिए बढ़चढ़कर काम करती हैं। वह महामारी से प्रभावित गरीब लोगों और काम से निकाले गए प्रवासियों की मदद करने के लिए स्थापित सामुदायिक रसोई के साथ काम करती हैं, जिसके ज़रिए वह आबादी के बड़े हिस्से की सहायता कर रही हैं।

शिक्षा, कौशल और बाहरी संपर्क: महिला सशक्तिकरण की आवश्यक शर्त
समीरा ने अपनी साथियों को एक-साथ मिलकर सिलाई केंद्र की स्थापना करते हुए देखा है, जो पहले कभी अपने घरों से बाहर तक नहीं निकली थीं या फिर घरेलू हिंसा की शिकार थीं। समीरा का दृढ़ विश्वास है कि शिक्षा, कौशल और बाहरी संपर्क के सहारे महिलाओं के जीवन में स्थाई परिवर्तन लाया जा सकता है, जो उनके भीतर की क्षमता को पहचान कर उन्हें सशक्त बना सकता है।
हालांकि समीरा आगे पढ़ना चाहती हैं और एक बेहतर व्यवसायी बनना चाहती हैं, लेकिन उनकी इच्छा है कि उनके साथ दूसरी औरतें भी तरक्की करें। उन्हें इस बात का एहसास है कि जिस तरह से उन्हें अपने परिवार का साथ मिला है, अन्य औरतों को वैसा सहयोग मिलना मुश्किल है। इसलिए उनका मानना है कि धार्मिक नेता सामाजिक बदलाव की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि समुदाय के भीतर उनका प्रभाव बहुत ज्यादा है। यहां तक कि धर्मगुरुओं ने ही उन कक्षाओं का उद्घाटन किया था, जहां समीरा पढ़ने जाती थीं।
नई मंजिल कार्यक्रम की ज्यादातर (आधे से अधिक) लाभार्थी महिलाएं हैं, जिसमें मुस्लिम औरतों की संख्या सर्वाधिक है। 2017 में लाभार्थियों के पहले बैच ने अपना प्रशिक्षण पूरा किया था, जिसके बाद उनमें से ज्यादातर लोग वैतनिक नौकरियों में नियुक्त हो गए या फिर अपना व्यवसाय करने लगे। अभी तक, इस कार्यक्रम के तहत 50,700 अल्पसंख्यक औरतों को शिक्षा और कौशल विकास का लाभ मिला है।

भारत का अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय शिक्षा और रोजगार के अवसरों के विस्तार के ज़रिए देश भर में अल्पसंख्यक समुदायों पर महामारी के पड़ने वाले प्रभावों को कम करने की दिशा में प्रयास कर रहा है।
पिछले पांच सालों में हमने देखा है कि नई मंज़िल कार्यक्रम के ज़रिए समाज में व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है। ये देखते हुए कि शिक्षा और कौशल को जोड़ने वाले मंचों की मांग कितनी ज्यादा है, इसलिए यह कार्यक्रम देश भर के अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक नया अवसर बनकर सामने आया है, जिसमें सामुदायिक स्तर पर व्यापक परिवर्तन लाने की क्षमता है।
विश्व बैंक ने भारत के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे नई मंज़िल कार्यक्रम का समर्थन करते हुए उसे 5 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। यह कार्यक्रम 26 राज्यों एवं 3 केंद्रशासित प्रदेशों में अल्पसंख्यक समुदाय के ऐसे लोगों के लिए 6 महीने शिक्षा और 3 महीने कौशल प्रशिक्षण का प्रावधान करता है, जिनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी। शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण के साथ-साथ इस कार्यक्रम के तहत इसके लाभार्थियों को अगले छह महीने तक सहायता दी जाती है ताकि वे आत्मनिर्भरता हासिल कर सकें।