वन हेल्थ कार्यक्रम के तहत केरल राज्य में विशालकाय घोंघे के अनियंत्रित प्रसार को रोकने की कोशिश

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African Giant Snail. Photo Credit: World Bank African Giant Snail. Photo Credit: World Bank

अगस्त 2022 में, भारत के दक्षिणी राज्य केरल के कोट्टयम जिले में विशालकाय अफ्रीकी घोंघे (Giant African Snail) की एक नई प्रजाति के अनियंत्रित प्रसार की ख़बर सामने आई, जिसने फसलों को नष्ट करने के साथ साथ किसानों की आजीविका को भी बुरी तरह प्रभावित किया। यह दुनिया की सबसे ख़तरनाक और तेज़ी से फैलने वाली प्रजातियों में से एक है, जिसका अगर इलाज़ न कराया जाए  तो यह इंसानों में मेनिन्जाइटिस जैसी घातक बीमारी का कारण बन सकती है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा इसे दुनिया की "100 सबसे बुरे " घातक प्रजातियों की सूची में शामिल किया गया है।

प्रसार की शुरुआत के एक महीने के भीतर जिला प्रशासन ने कार्यवाही शुरू कर दी। यह इस कारण संभव हो सकी क्योंकि राज्य सरकार द्वारा पहले से ही 'वन हेल्थ' कार्यक्रम के तहत मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एक साथ जोड़ते हुए एक मंच की स्थापना की गई थी ताकि उन पर एक साथ काम किया जा सके। केरल के वन हेल्थ कार्यक्रम को विश्व बैंक के रेजिलिएंट केरल इनिशिएटिव के सहयोग से राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा चलाया जा रहा है।

‘वन हेल्थ’ सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बढ़ती आबादी नए भौगोलिक क्षेत्रों में प्रवेश कर रही है, जिससे जानवरों और इंसानों के बीच बीमारियां फैलने के अवसर बढ़ते जा रहे हैं।  पहले ही, इंसानों को प्रभावित करने वाले 65 प्रतिशत से अधिक संक्रामक बीमारियां जूनोटिक हैं, यानी जानवरों से इंसानों में फैली हैं। जैसा कि कोरोना महामारी के दौरान हमने देखा कि किसी बीमारी से बचाव की लागत उसके प्रबंधन की लागत से काफ़ी कम होती है। 

केरल अब भारत के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जिसने  स्वास्थ्य क्षेत्र में इस संपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाया है। विशालकाय घोंघे के अनियंत्रित प्रसार को रोकने से जुड़ी कार्रवाई राज्य के वन हेल्थ कार्यक्रम के तहत सबसे पहली कार्रवाईयों में से एक थी।

 

Department of agriculture mixing jaggery powder with copper sulphate for making the snail trap. Photo Credit: World Bank
कृषि विभाग स्नेल ट्रैप बनाने के लिए गुड़ और कॉपर सल्फेट का मिश्रण तैयार करते हुए 
फ़ोटो क्रेडिट: विश्व बैंक
समय पर और समन्वित कार्रवाई

इस आक्रामक प्रजाति के प्रसार को रोकने के लिए प्रशासन ने छह सप्ताह का एक अनूठा अभियान चलाया। इससे  हमें यह पता चला कि अगर विभिन्न सरकारी एजेंसियां (राज्य के स्वास्थ्य, कृषि, पशुपालन और वन विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) मिलकर समयबद्ध एवं समन्वित कार्रवाई करें तो न सिर्फ़ ऐसी घातक प्रजातियों के प्रसार को रोका जा सकता है बल्कि इससे स्वयं निपटने के लिए स्थानीय लोगों को भी तैयार किया जा सकता है।

अभियान की शुरुआत संक्रमण के स्तर को देखते हुए की गई। लोगों से जिलाधीश के आधिकारिक फेसबुक पेज पर मौजूद एक गूगल फॉर्म को भरने को कहा गया। उसके बाद अधिकारियों ने स्थिति का ज़मीनी जायजा लिया और समस्या के स्तर को समझने के लिए स्थानीय लोगों, ख़ासकर किसानों, से बात की। संग्रहित आंकड़ों से पता चला कि घोंघे मुख्य रूप से कुछ ही क्षेत्रों में पाए गए थे लेकिन उनका प्रभाव अलग-अलग स्तर पर पूरे कोट्टयम जिले पर देखा गया। इसलिए इस अभियान को जिले भर में लागू किया गया।

इसके बाद स्वास्थ्य एवं कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों और लोगों को सिखाया कि वे किस तरह से अपने आसपास के इलाकों की सफ़ाई करें, कड़ी निगरानी रखें और घोंघों को पकड़ें। उन्होंने घोंघों को पकड़ने के दौरान कुछ सावधानियों को बरतने की आवश्यकता के बारे में भी जानकारी दी, जैसे दस्ताने पहनना और हाथ साफ़ करना ताकि वे परजीवियों के संक्रमण से बच सकें।

किसानों को घोंघों को मारने के सबसे मानवीय तरीके सिखाए गए। जैसे, बत्तखों के चारे के रूप में या गाढ़े नमक के घोल और तंबाकू जैसे गैर विषैलीय पदार्थों के इस्तेमाल से। गंभीर रूप से प्रभावित इलाकों में सामूहिक कार्रवाई के लिए लोगों को जुटाने के लिए पर्चे बांटे गए और लाउडस्पीकरों के ज़रिए घोषणाएं की गईं। 

कुदुम्बश्री, हरित कर्म सेना और पादसेकरा  समिति जैसे किसान समूहों और स्थानीय सामुदायिक संगठनों की सक्रिय भागीदारी से अभियान को आगे बढ़ाने में मदद मिली।

कोट्टयम जिले की उझावूर पंचायत के सहायक कृषि अधिकारी राजेश के.आर. ने बताया, "हमें किसानों से उनकी फसलों के नष्ट होने के संबंध में बहुत सारी शिकायतें मिलीं। पदम ओन्नु ओचु अभियान का मुख्य लक्ष्य किसानों को घोंघों के प्रसार को नियंत्रित करने, स्नेल ट्रैप तैयार करने और उन्हें खत्म करने के लिए नमक और कॉपर सल्फेट के घोल का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करना था। किसानों को एहतियाती कदम उठाने जैसे खेतों में काम करते समय रबड़ के जूते और दस्ताने पहनने की सलाह दी गई।"

Experts from horticulture department demonstrating copper sulphate spray. Photo Credit: World Bank
बागवानी विभाग के विशेषज्ञ कॉपर सल्फेट के घोल के उपयोग के बारे में समझाते हुए
फ़ोटो क्रेडिट: विश्व बैंक

प्रभाव

यह अभियान सफ़ल रहा। केले की खेती करने वाले एक स्थानीय किसान राजू कल्लादयिल ने बताया, "पहले बहुत सारे घोंघे हुआ करते थे। उन्होंने मेरे केले के बागान को नष्ट कर दिया। जबकि पत्तागोभी से बनाए गए जाल प्रभावी साबित नहीं हुए, वहीं गुड़, गेंहू और ख़मीर के इस्तेमाल से कुछ असर हुआ। लेकिन मेरे ख़्याल से कॉपर सल्फेट घोल सबसे ज्यादा प्रभावी साबित हुआ।"

केरल अब अपने वन हेल्थ कार्यक्रम को राज्य के सभी 14 जिलों में लागू करने की योजना बना रहा है। इसके अलावा, वह विश्व बैंक के सहयोग से बीमारी के प्रसार को रोकने और उसके नियंत्रण के लिए अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को तैयार कर रहा है। प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर वन हेल्थ प्लेटफॉर्म स्थापित किए जा रहे हैं; एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को अपग्रेड करके उन्हें पुनर्संचालित किया जा रहा है; स्थानीय सरकारों और स्वयं सहायता समूहों के नेतृत्व में समुदाय आधारित निगरानी प्रणाली को बढ़ावा दिया जा रहा है ; महामारी के प्रसार को रोकने के लिए एक आईटी प्लेटफॉर्म और मेडिकल कॉलेजों में संक्रामक रोगों के लिए अलग विभाग स्थापित किए जा रहे हैं ताकि इनकी मदद से विभिन्न आंकड़ों का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सके।

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Authors

डॉ। भाग्यश्री ए आर

वन हेल्थ कार्यक्रम के लिए नोडल अधिकारी, कोट्टयम जिला, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, केरल सरकार

डॉ। अजन महेश्वरन जया

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ एवं महामारी-विज्ञानी, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, केरल सरकार

दीपिका चौधरी

हेल्थ, न्यूट्रीशिएन एंड पॉपुलेशन की सीनियर स्पेशलिस्ट

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