व्यापार में भारतीय महिलाओं की भागीदारी में अड़चनों को हटाना

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Group of Indian woman using laptop by sewing machine at textile factory
Photo: IndianFaces / Shutterstock

विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के अन्वेषण  दर्शाते हैं कि विकासशील देशों में व्यापार लैंगिक समानता का शक्तिशाली चालक है। जो कंपनियां वैश्विक मूल्यवर्धन श्रृंखला (ग्लोबल वैल्यू चेन्स - जीवीसी ) का हिस्सा हैं, वे ज़्यादातर  महिलाओं को नौकरी पर रखते हैं और सीधे व्यापार में शामिल कंपनियों के मुकाबले जीवीसी सेक्टर की कंपनियों में ज्यादा वेतन और लाभ मिलने की सम्भावना है। 

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महिलाओं की भागीदारी कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अभी भी मामूली है। भारत को एक उदाहरण के तौर पर लेते हैं। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय पुरुषों की करीब 15 प्रतिशत हिस्से की तुलना में भारतीय कामकाजी महिलाओं का महज 5 प्रतिशत हिस्सा परिवहन, लॉजिस्टिक्स एवं कस्टमर क्लियरेंस जैसे व्यापार एवं व्यापार संबंधी सेवाओं में कार्य करता है।

तो, व्यापार में महिलाओं की अधिक भागीदारी की शुरुआत कराने के लिए सबसे अच्छा तरीका क्या है? शुरुआत कर सकते हैं व्यापार सुगमता से – निर्यात एवं आयात प्रक्रियाओं का सरलीकरण, आधुनिकीकरण एवं सामंजस्य। विश्व बैंक का सर्वे बताता है कि व्यापार सुगमता सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के व्यापार संबंधी सेवा सेक्टर में महिलाओं की उद्यमिता एवं रोजगार को बेहिसाब लाभ पहुंचाती है। 

अधिकांश व्यापार को समानता का चालक बनाने के लिए, महिलाओं को सभी स्तरों – व्यापार से जुड़े व्यवसायों के संस्थापक एवं सीईओ और व्यापारिक कंपनियों में कर्मचारी के तौर पर प्रतिनिधित्व देना चाहिए और उनको सुना जाना चाहिए । महिलाओं को व्यापार के सभी भिन्न कार्य भूमिकाओं एवं क्रियाओं – चाहे वह व्यापारी हो, कस्टम हाउस एजेंट हो, फ्रेट फार्वर्डर हो या कस्टम ब्रोकर, में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

करने को कई काम हैं। समस्त उभरते बाजारों एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर विश्व बैंक के सर्वेक्षण बताते हैं कि व्यापार में बहुत लैंगिक अंतर है। व्यापार संघों में कम प्रतिनिधित्व और सरकारी परामर्शों में अनदेखी के कारण महिलाओं की बात सुनी नहीं जा रही है। इसके अलावा, महिलाओं को दस्तावेजीकरण और कस्टम क्लियरेंस प्रक्रियाओं की जानकारी होने की संभावना कम होती है, खासकर जब वे डिजिटल हों - स्मार्टफोन जैसे डिजिटल औजारों एवं उपकरणों तक पहुंच, स्वामित्व एवं उपयोग में कमी – के कारण उन्हें नुकसान में रहना पड़ता है।  

पिछले दशक की सबसे तेजी से बढ़ती उभरती अर्थव्यवस्थाओं में एक, भारत के एजेंडे में व्यापार की सामाजिक-आर्थिक क्षमता को बढ़ाना शीर्ष पर है। भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी विदेश व्यापार नीति 2023 में भी भारत के निर्यात को वर्तमान के 750 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर करने का लक्ष्य है। 

परंतु भारतीय महिलाओं की भागीदारी में अड़चनें बहुत हैं। तीन चौथाई भारतीय पुरुषों की तुलना में कामकाजी उम्र की केवल एक तिहाई महिलाएं कार्यशक्ति का हिस्सा  हैं। वैश्विक मानकों में देखा जाये तो यह बहुत कम है । व्यापर से सम्बंधित कार्य करने वाले जैसे फ्रेट फरर्वर्डर, कस्टम हाउस एजेंट, ट्रांसपोर्टर एवं अन्य सेवा प्रदान करनेवाले कार्य सीमावर्ती इलाकों, शहर की सीमा से बाहर और यहां तक कि देर रात तक काम करने वाले होते हैं। उन्हें अक्सर यात्राएं करना पड़ता है, निर्यातकों (जो मुख्य रूप से पुरुष हो सकते हैं) से मिलना होता हैं और लंबे, अप्रत्याशित घंटों तक काम करना पड़ता है।

ऐसा काम करना भारतीय महिलाओं के लिए विशेष रूप से कठिन है, जिनके परिवार और यहां तक की मकान मालिक अक्सर उनकी आवाजाही को सीमित इलाकों तक, यहां तक कि दिन के घंटों में भी सीमित रखते हैं। सुरक्षित एवं समावेशी सार्वजनिक परिवहन का अभाव, और बंदरगाहों, वेयरहाउस एवं अन्य लॉजिस्टिक्स सुविधाओं तक सीमित कनेक्टिविटी, स्वच्छ शौचालयों का अभाव और उत्पीड़न का खतरा भी मुख्य अड़चनें हैं।

इसके अलावा, भारतीय महिलाएं बच्चों एवं बुजुर्गों की देखभाल, खाना बनाने एव घर की साफ-सफाई करने जैसे अवैतनिक कार्यों का बोझ भी सहती हैं। एक हालिया सरकारी सर्वे बताता है कि पुरुषों के मुकाबले भारतीय महिलाएं अवैतनिक कार्यों पर 8.4 गुना अधिक घंटे खर्च करती हैं। वैश्विक स्तर पर यह अनुपात एक के मुकाबले तीन का है।  महिलाओं की भूमिका को प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में कायम रखने वाले स्थायी सामाजिक मान्यता वैतनिक कार्य के लिए उपलब्ध समय को सीमित करती है, विशेष रूप से यदि महिलाएं व्यापार एवं व्यापार से जुड़े सेवा में उद्यमी बनने की इच्छुक हैं।

परंतु, उद्योग संघों के साथ हमारे चल रहे संवादों में यह देखा गया है कि भारतीय संस्थान अब महिला उद्यमिता एवं व्यापार में महिलाओं का रोजगार बढ़ाने में व्यापार सुगमता द्वारा निभायी जा सकने वाली भूमिका को मान्यता देना शुरू कर रहे हैं।

कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री (CII) ने भारत में व्यापार सुगमता के लैंगिक आयाम पर विश्व बैंक के साथ नयी दिल्ली में एक कार्यशाला का सह-आयोजन किया। विश्व बैंक टीम ने विशेष रूप से सुरक्षा, समावेशी बुनियादी ढांचा एवं सामाजिक मान्यताओं से जुड़े सेक्टरों में लैंगिक अंतराल एवं अड़चनों पर विमर्श करने के लिए फेडरेशन ऑफ फ्रेट फारर्वर्डर्स एसोसिएशन इन इंडिया की राष्ट्रीय बैठक में हिस्सा लिया। महिला व्यापारियों ने कहा कि उनकी भागीदारी में कार्यशील पूंजी की आवश्यकता एक अड़चन है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि नियमन एवं अनुपालन प्रक्रियाओं पर जानकारी हासिल करना, निर्यात गुणवत्ता मानक हासिल करना, और लॉजिस्टिक्स सेवा प्रदाताओं एवं बैंकरों से डील करना पुरुष व्यापारियों के मुकाबले महिलाओं के लिए ज्यादा कठिन है।

यह कोई एक बार किया गया कार्य नहीं है। विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष में पूरे भारत में व्यापार सुगमता के लैंगिक आयामों पर एक सर्वेक्षण करने की योजना बनायी है जो जुलाई, 2023 से प्रारंभ हो गया है। हमारा मानना है कि यह सर्वे न केवल व्यापार में महिलाओं की भागीदारी में अड़चनों की पहचान करेगा बल्कि यह समझने में भी मदद करेगा कि भारत के हालिया व्यापार सुगमता उपाय कैसे सभी कार्य भूमिकाओं में पुरुषों एवं महिलाओं पर असर डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटाइज प्रक्रियाओं को लागू करना कस्टम केंद्रों तक जाने की जरूरत को कम कर सकता है – जो सभी फ्रेट फार्वर्डरों एवं कस्टम हाउस एजेंटों के लिए लाभकारी है। परंतु यह डिजिटल साक्षरता के अभाव से जूझ रही महिला व्यापारियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

सभी उभरते बाजारों एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में विश्व बैंक का कार्य भारत को दो महत्वपूर्ण सबक देता है।

पहला सबक यह है कि, व्यापार में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में मदद करने की अद्भूत क्षमता है, जो एक अधिक समान विश्व सृजित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस सेक्टर में लैंगिक अंतराल को दूर कर, भारत अपनी कार्यशक्ति की पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल  कर सकता है, और सभी के लिए अधिक समावेशी एवं समृद्ध अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है।

दूसरा सबक समावेशन पर विचार -विमर्श के महत्व के बारे में है। परिवर्तन की शुरुआत संवाद से होती है। उद्योग संघों में विमर्श में शामिल होने के लिए महिलाओं को आमंत्रित करके और बात करने का समय एवं अवसर देकर, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं की अपनी आवाज हो और वे व्यापार से लाभ उठा सकें । हम समझ को सुगम बनाते हैं, हम जागरूकता बढ़ाते हैं, हम परिवर्तन के लिए प्रेरित करते हैं।


Authors

नोरा दिहेल

मैक्रोइकोनॉमिक्स और राजकोषीय प्रबंधन ग्लोबल प्रैक्टिस में वरिष्ठ अर्थशास्त्री

सत्य प्रसाद साहू

वरिष्ठ व्यापार सुगमता विशेषज्ञ

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