भारत में फ्लोटिंग सोलर की संभावनाएं अपार हैं

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भारत में फ्लोटिंग सोलर की संभावनाएं अपार हैं सूर्यास्त के समय झील पर तैरता हुआ सौर फार्म।

बचपन में मैं अक्सर दिल्ली की एक ख़ूबसूरत झील में नौकाविहार के लिए जाती थी।   मुझे नाव पर चढ़ने से पहले फ्लोटिंग जेटी पर खड़े होना अच्छा लगता था।  मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि ये सदियों पुराने प्लेटफॉर्म एक सौर ऊर्जा उत्पादन में अहम भूमिका निभाएंगे और भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने का काम करेंगे।

ये देखते हुए कि भूमि की लागत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, भारत अपने विशाल जलस्रोतों का इस्तेमाल ऊर्जा की बढ़ती मांग के लिए कर सकता है। 'फ्लोटिंग सोलर‘ की मदद से भारत 2050 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकता है। इससे 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन के लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी, जैसा कि सरकार ने अपने ‘पंचामृत’ एजेंडे के तहत घोषणा की है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट, “अनलॉकिंग सोलर पोटेंशियल इन इंडिया” (Volume 1 [Main Report], Volume 2 [Guidance Document], Volume 3 [Green Jobs]) में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेपों को लेकर चर्चा की गई है जिनसे इस तकनीक के विकास को बढ़ावा मिलेगा। अगर इन हस्तक्षेपों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है तो भारत में फ्लोटिंग सोलर पॉवर तीव्र विस्तार के लिए ज़रूरी माहौल तैयार किया जा सकता है।

 

फ्लोटिंग सोलर क्या है?

फ्फ्लोटिंग सोलर में झीलों, जलाशयों और तालाबों जैसे जलस्रोतों पर स्थित तैरते ढांचों पर सौर पैनल लगाया जाता है। इससे न केवल पानी की खाली सतह का इस्तेमाल होता है बल्कि पानी के शीतलन प्रभाव के कारण सौर पैनलों की दक्षता भी बढ़ जाती है। फ्लोटिंग सोलर पानी की सतह को ढक देता है, जिससे पानी का वाष्पीकरण कम होता है। कुल मिलाकर इससे जल संरक्षण में भी मदद मिलती है।

सबसे पहला फ्लोटिंग सोलर 2007 में जापान में स्थापित किया गया था। लेकिन, 2016 के बाद से इस प्रौद्योगिकी का बाज़ार गति पकड़ रहा है।

अब दुनिया में लगभग सभी बड़े देशों के पास फ्लोटिंग सोलर को स्थापित करने की थोड़ी-बहुत क्षमता है।

दक्षिण एशिया क्षेत्र की बात करें, तो भारत, मालदीव और बांग्लादेश में फ्लोटिंग सोलर परियोजनाएं चालू हो गई हैं।  वहीं पाकिस्तान और श्रीलंका में यह अभी अपने शुरुआती चरण में है।

भारत में फ्लोटिंग सोलर की संभावित क्षमता 280-300 गीगावाट है। हालांकि, भारत ने मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना, बिहार और राजस्थान राज्यों में फ्लोटिंग सोलर परियोजनाएं स्थापित की हैं, लेकिन यह उसकी अनुमानित क्षमता का बहुत छोटा सा हिस्सा है।

सूक्ष्म प्रौद्योगिकी के स्तर पर फ्लोटिंग सोलर मिनी ग्रिड और ऑफ-ग्रिड सिस्टम से लेकर ऐसी बड़ी परियोजनाओं के लिए उपयोगी साबित हो सकता है जो इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड से जुड़ी हों। इस तरह से फ्लोटिंग सोलर का लाभ गांवों और शहरों दोनों जगहों पर पहुंचाया जा सकता है।

 

बाधाओं का निवारण

वर्तमान में, भारत में फ्लोटिंग सोलर उत्पादन की लागत ज़मीन पर लगाए गए सोलर पैनल सिस्टम की तुलना में कहीं ज्यादा है।  फ्लोटिंग सोलर कहाँ स्थापित किए जाएं, इसके चुनाव संबंधी मानदंडों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। इसके अलावा, फ्लोटिंग सोलर उपकरण के लिए उत्पादन क्षमता काफ़ी सीमित है। इतना ही नहीं, एक संयंत्र को स्थापित करने के लिए जिन मानकों और प्रमाणों की आवश्यकता होती है, वे अपर्याप्त हैं।

हमें ऐसे कौन से उपायों की ज़रूरत है जिनसे हम फ्लोटिंग सोलर के उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं और उससे जुड़े लाभों का अधिकतम इस्तेमाल कर सकते हैं?

●          सबसे पहले, हमें फ्लोटिंग सोलर क्षमता के लिए स्पष्ट लक्ष्य तय करने होंगे ताकि देश के समग्र दौर ऊर्जा लक्ष्यों को स्थापित किया जा सके।

  • बाजार को सकारात्मक संदेश देने और विकास परियोजनाओं को व्यवस्थित करने के लिए ऐसे संभावित स्थलों की एक सूची तैयार करनी होगी जहां फ्लोटिंग सोलर परियोजनाएं स्थापित की जा सकती हैं।
  • फ्लोटिंग सोलर उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा देने और इन उपकरणों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए उचित मानकों को लागू करने की ज़रूरत है।
  • संस्थानों में निवेश करना होगा ताकि वे फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं की सफ़लता के लिए व्यवहार्यता सर्वेक्षण करवा सकें।

 

भविष्य की दिशा

जैसे जैसे फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं की लागत में कमी  हो रही है और तकनीकी सुधार बढ़ रही है, हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि आगे चलकर पूरे भारत में फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं में बढ़ोतरी होगी जो आने वाली पीढ़ियों के लिए हरित भविष्य की नींव रखने में मददगार साबित होगा।

विश्व स्तर पर जलविद्युत बांधों पर फ्लोटिंग सोलर को स्थापित करके बिजली की 50 प्रतिशत मांग को पूरा किया जा सकता है। इसे समझते हुए कई देशों ने इस तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया है। हालांकि, फ्लोटिंग सोलर को अभी लंबी दूरी तय करना है। विश्व स्तर पर ज़मीन पर लगाए गए सोलर पैनल सिस्टम की स्थापित क्षमता 1,000 गीगावाट से अधिक है, वहीं फ्लोटिंग सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 10 गीगावाट से भी कम है।

दक्षिण एशिया में फ्लोटिंग सोलर तकनीक के क्षेत्र में भारत के अनुभव अन्य देशों को इस दिशा में उचित मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।
 


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Authors

सुरभि गोयल

वरिष्ठ ऊर्जा विशेषज्ञ

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