जैसे जैसे दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक जनसंख्या बढ़ रही है और जलवायु के घटनाक्रम के बारे में अनुमान लगाना और कठिन हो रहा है। वैसे ही हमें भरोसेमंद खाद्य और जल आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए और पेचीदा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ष 2050 तक 10 अरब लोगों के भोजन के लिए कृषि उत्पादन में 50 प्रतिशत की वृद्धि की ज़रूरत होगी । पहले ही ताज़े पानी का कुल 70 प्रतिशत खेती के लिए इस्तेमाल होता है । भोजन की बढ़ती मांग का मसला केवल अधिक उत्पादन से उसकी आपूर्ति करने का नहीं है । यह मसला खाद्य आपूर्ति को स्थायी तौर पर, बराबरी से और कुशलतापूर्वक करने का है ।
प्रौद्योगिकी में प्रगति, ख़ास तौर पर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (ए-आई), इन आपस में जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए बहुत उम्मीद जगाती है। ए-आई संचालित एनालिटिक्स (आंकड़ों का विश्लेषण) और डेटा आधारित निर्णय प्रणालीv से पानी और उर्वरकों का कुशलता से इस्तेमाल किया जा सकता है । इससे ही किसानों को फ़सल की ऐसी किस्में चुनने में मदद मिलती है जो प्रतिकूल परिस्थियों में भी बची रहें और फ़सलों की बुवाई और कटाई के समय का भी बेहतर चयन हो सके । लेकिन केवल प्रौद्योगिकी से परिवर्तनकारी और दीर्घकालिक बदलाव नहीं हो सकता है।
कृषि समस्याओं संबंधित समाधान स्थानीय हालात के मुताबिक होने चाहिए, किसानों के लिए सस्ते होने चाहिए और ऐसे होने चाहिए जिन पर समुदाय भरोसा करते हों। यदि प्रौद्योगिकी में जुटे डेवेलपर्स, नीति निर्माताओं और स्थानीय समुदायों के बीच व्यापक सहयोग नही होता तो ये खतरा बना रहेगा कि नवीनोत्पादन या नवीनीकरण 50 करोड़ छोटे खेतों पर कृषि करने वाले किसानों को पीछे छोड़ जाएगा । वैश्विक स्तर पर छह में से पांच किसान ऐसे हैं और वे दुनिया में उपलब्ध खाद्य सामग्री का लगभग एक तिहाई पैदा करते हैं ।
परिवर्तन के लिए एक मंच
उत्तर प्रदेश (यूपी), भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक, दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक और कृषि उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है । उत्तर प्रदेश उन्नत प्रौद्योगिकी और समावेशी विकास साथ-साथ करने में अग्रणी प्रदेश के तौर पर उभर रहा है । छोटे किसानों और बहुत की कम ज़मीन पर खेती करने वाले किसानों पर निर्भर यूपी का कृषि क्षेत्र बढ़ती हुई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे- घट रहा भूजल का स्तर, मौसम, जिसका अनुमान लगाना कठिन है और खेती की बढ़ती लागत।
यूपी प्रगति एक्सलरेटर वर्ष 2022 में शुरु किया गया एक तकनीकी सहायता कार्यक्रम है। इसे उत्तर प्रदेश सरकार, 2030 जल संसाधन समूहv, गेट्स फाउंडेशन और कई निजी क्षेत्र की शीर्ष की कंपनियाँ - माइक्रोसॉफ्ट, कोका-कोला, बेयर और कृषि व तकनीकी स्टार्ट अप के सहयोग से चलाया जा रहा है।
वैश्विक स्तर की महारत को स्थानीय जानकारी को साथ मिलाकर, एक्सेलेरेटर सहयोग से समाधान निकालता है जिससे छोटे किसानों की उत्पादकता बढ़ाने, प्रतिकूल हालात का सामना करने की क्षमता और संसाधनों को संरक्षित करने का काम होता है । इसका मकसद पूरे उत्तर प्रदेश में कई महत्वपूर्ण फ़सलें उगाने और उनकी गुणवत्ता में हिस्सेदारी पाने वाले 10 लाख छोटे किसानों की पांच साल में मदद करना है।
ठोस नतीजों के लिए लक्ष्य आधारित नवीनीकरण
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा चावल उगाने वाला राज्य है। दोनों फसलों की लंबे समय तक उत्पादकता बने रहने पर गंभीर दबाव है । गन्ना खेती से मिट्टी कमज़ोर होती है और जल भंडार भी घटता है । जबकि, चावल उत्पादन के लिए स्थिर जल से भूजल पर नकारात्मक असर पड़ता है और मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है ।
ए-आई4शूगर और ए-आई4राईस एक्सलरेटर के माध्यम से विकसित की जा रही ऐसी दो सटीक कृषि पहल हैं जो इन चुनौतियों का सामना अनुमान से नहीं, बल्कि डेटा-आधारित फ़ैसलों से करती हैं । ये क्लिक2क्लाऊड, यूपी विविधीकृत कृषि समर्थन परियोजना जो सरकार की विशेष लक्ष्य हासिल करने की एक योजना है, माईक्रोसॉफ़्ट और 2030 जल संसाधन समूह के बीच सहकार्य से चल रही हैं । इसके तहत उपग्रह चित्रण, मिट्टी की गुणवत्ता के मापदंड और वास्तविक समय के मौसम पूर्वानुमानो को समाहित किया जाता है। इन पहल के ज़रिए उपलब्ध प्लेटफार्म किसानों का सिंचाई, उर्वरक आवेदन और कीट प्रबंधन के बारे में मार्गदर्शन करते हैं, जिससे उन्हें उपज में सुधार, फसल से जुड़ी लागत में कटौती और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है।
चावल की खेती करने वाले किसानों के लिए, एक्सलरेटर इस डेटा-आधारित कृषि प्रक्रिय को सीधे बीजने वाले चावल (डीएसआर) की खेती से जोड़ता है, जो धान की पनीरी को पारंपरिक तरीके से खेत में लगाने का ऐसा विकल्प है जिसमें जल का इस्तेमाल कुशलता से होता है । अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के सहयोग से एक्सलरेटर यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों में जलवायु की विविधता को देखते हुए क्षेत्र के लिए उपयुक्त विशेष डीएसआर बीज किस्मों के विकास का समर्थन करता है। ये बीज मज़बूत जड़ प्रणाली, सूखे के प्रति सहनशीलता और कीट प्रतिरोध की विशेषताएँ रखते हैं, जिससे किसानों को उत्पादकता बनाए रखने में मदद मिलती है जबकि उर्वरक और कीटनाशक का इस्तेमाल घटाया जाता है ।
इससे सकारात्मक नतीजे हासिल हुए हैं:
· दो लाख 90 हज़ार किसाने ने सटीक सिंचाई को अपनाया है और उत्पादकता बढ़ाते हुए 18-35 प्रतिशत पानी की भी बचत की है ।
· एक साल में ही डीएसआर तकनीक को अपनाने में 400 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2023 में 20 हज़ार हेक्टेयर से बढ़कर ये 80 हज़ार हेक्टेयर में होने लगी है जिससे दो लाख किसानों को फ़ायदा मिला है ।
ये समाधान न केवल महत्वपूर्ण संसाधनों को संरक्षित रखते हैं, बल्कि किसानों की पहुँच कार्बन क्रेडिट बाजारों तक बढ़ाने में मदद करते हैं । एक्सलरेटर विश्व बैंक जलवायु वेयरहाऊस की मदद से उन उपकरणों के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहा है जो पानी और कार्बन की बचत को मापने, रिपोर्ट करने और सत्यापित करने में मदद करते हैं । दीर्घकालिक फ़ायदों से नकदी कमाकर किसान इसका जलवायु के लिए फ़ायदेमंद (जलवायु समार्ट) प्रथाओं में पुनर्निवेश कर सकते हैं।
कृषि में डिजिटल क्रांति
जहाँ परिवर्तनकारी कृषि प्रथाओं के ज़रिए दीर्घकालिक समय तक उत्पादकता बनाए रखने की चुनौतियों का समाधान होता है, वहीं डिजिटल नवाचार इसके मूलभूत आधार की तरह काम करता है । ये किसानों और अन्य हितधारकों की बदलती और बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सटीकता, पहुंच और पैमाने का सहारा लेता है । यूपी प्रगति एक्सेलेरेटर पहल के अलावा, निजी क्षेत्र के साथ सहयोग और गेट्स फाउंडेशन की मदद से, यूपी सरकार राज्य के किसानों की बेहतर सेवा के लिए कृषि में डिजिटल क्रांति को अपना रही है । इस बहु-आयामी तकनीकी प्रयास से महत्वपूर्ण योजनाओं और कृषि सेवाओं तक पहुंच को आसान बनाया जा सकेगा ।
इसके मूल में महत्वाकांक्षी एग्रीस्टैक परियोजना है, जो तीन आपस में जुड़ी रजिस्ट्रियों यानी सूचीबद्ध रिकॉर्ड्स की स्थापना कर रही है। इनमें एक रजिस्ट्री किसानों की है जिसमें उनकी जनसांख्यिकी और ज़मीन की मिलकियत का विवरण है, दूसरी फसलों के लिए है और तीसरी भूमि रिकॉर्ड के लिए है । ये ‘दर्शन’ नाम के एकीकृत वेब पोर्टल की नींव बनेगा जहां विभाग योजनाओं को रूप देकर इनका निरीक्षण कर सकता है और दूसरी ओर किसान आसानी से अपने आवेदन खोज सकते हैं और उनको ट्रैक कर सकते हैं। एक अन्य मोबाइल ऐप पारदर्शिता को और बढ़ाएगा, जो प्रत्येक लाभार्थी के लिए ‘आधार’ के ज़रिए वास्तविक समय में योजना के कार्यान्वयन को रिकॉर्ड करेगा।
किसान उत्पादक संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, राज्य ने पहले ही ‘एफ़पीओ शक्ति’v पोर्टल लॉंच किया है, जो किसानों को बाज़ार से जोड़ने में मदद करता है और सरकारी कार्यक्रमों तक पहुंच को सुविधाजनक बनाता है। इसके अलावा, हाल ही में शुरु हुआ ‘किसान मित्र’ ए-आई चैटबॉट कृषि सेवाओं की उपलब्धता को लोकतांत्रिक बनाता है। शुरुआत में एक्सटेंशन वर्कर्स के लिए उपलब्ध ए-आई से संचालित ये उपकरण जल्द ही किसानों को सीधे ऑन-डिमांड सलाह प्रदान करेगा, जिससे वे जब चाहें विशेषज्ञ की सलाह पा सकेंगे । योजनाओं तक बढ़ी हुई पहुंच, वास्तविक समय में ट्रैकिंग और ए-आई से संचालित सलाह से छोटे किसान बेहतर उपज, बाज़ार तक बेहतर पहुंच और फिर बेहतर आजीविका पा सकेंगे और इससे सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी ।
किसानों को ध्यान में रखकर लिए गए इन पहल के अलावा, राज्य समझदारी से मज़बूत बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है। योजना की प्रगति और नतीजों को ट्रैक करने के लिए एक व्यापक निगरानी, सिखलाई और मूल्यांकन प्रणाली विकसित की जा रही है, जिससे रणनीतियों में डेटा-आधारित संशोधन हो सकेंगे। एक निर्णय समर्थन प्रणाली विभिन्न प्लेटफार्मों से डेटा को एकीकृत करेगी और विश्लेषण के लिए रिपोर्ट पैदा करेगी । इस डेटा की विस्तृत जांच एक समर्पित निगरानी केंद्र द्वारा की जाएगी, जो नियमित रूप से ग्राउंड सर्वेक्षण और अध्ययन भी करेगा। इस समग्र दृष्टिकोण के ज़रिए – योजनाओं तक किसानों की पहुँच को बढ़िया डेटा विश्लेषण के साथ मिलाना, उस कृषि समर्थन प्रणाली की ओर महत्वपूर्ण कदम है जो डेटा-आधारित, अधिक कुशल और उत्तरदायी है और जिसमें पारदर्शिता बढ़ी है।
दीर्घकालिक सफलता के लिए क्षमता का विकास
सतत परिवर्तन के लिए दीर्घकालिक क्षमता निर्माण की ज़रूरत होती है । उत्तर प्रदेश के नोएडा में ए-आई और नवाचार संचालित आंतरप्रन्योरशिप सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंसv को उत्तर प्रदेश सरकार ने माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग, वाधवानी ए-आई और एचसीएल टेक्नोलॉजीज़ के साथ साझेदारी से चलाया है । ये स्थानीय प्रणालियों के भीतर प्रौद्योगिकी अपनाने को समाहित करता है। 2030 जल संसाधन समूह इस केंद्र का समर्थन करता है, कृषि से संबधित महत्वपूर्ण समझ प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि ए-आई समाधान किसानों की विशिष्ट ज़रूरतों के अनुरूप हों और किसानों को जलवायु के अनुरूप कृषि उपकरण मिल सकें । पूरी तरह से काम करना शुरु करने के बाद ये केंद्र स्थानीय भाषाओं में स्थानीय ए-आई आधारित ग्रामीण सलाहकार सेवाएं प्रदान करेगा । ये केंद्र कृषि मशीनरी को एक किसान से दूसरे किसान तक पहुँचाने और किराए पर लेने के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों को बढ़ावा देगा । इसी के साथ ये केंद्र कृषि इनोवेटरें, सरकारी अधिकारियों और शोधकर्ताओं की अगली पीढ़ी को सशक्त बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम भी चलाएगा।
एक सहयोगपूर्ण मार्ग जो भविष्य की चुनौतियों का सामना करने लायक बनाए
जैसे-जैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी का समाधान खोज रही है, व्यापक सहयोग यह निर्धारित करेगा कि क्या हम प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से फ़ायदा उठा पाते हैं । यूपी प्रगति एक्सेलेरेटर एक स्पष्ट मॉडल प्रदान करता है: सरकारें, निजी कंपनियां, शोधकर्ता और समुदाय मिलकर स्थानीय आवश्यकताओं के साथ नवाचार को संरेखित करने के लिए काम कर रहे हैं।
सहयोग का यह तरीका सुनिश्चित करता है कि नई प्रौद्योगिकियां न केवल व्यावहारिक हों बल्कि समानता भी प्रदान करें और समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग तक पहुँचें ।
प्रगति जैसे मॉडलों को वैश्विक स्तर पर बढ़ाकर, हम इंटेलिजेंस युग का उपयोग करके एक स्थायी भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं —जहां नवाचार समुदायों को सशक्त बनाता है, संसाधनों का संरक्षण करता है, और साझा समृद्धि का निर्माण करता है।
जानें कि यूपी प्रगति एक्सेलेरेटर कैसे नवाचार को स्थानीय समाधानों के साथ संरेखित कर रहा है ताकि सतत प्रगति को बढ़ावा दिया जा सके। सहयोग के अवसरों की खोज के लिए 2030 जल संसाधन समूह से संपर्क करें।
Join the Conversation