वर्ष 2023 फरवरी में भारत में 1901 के बाद से सर्वाधिक गर्म रही। 1901 में ही देश के मौसम विभाग ने अपने मौसम रिकॉर्ड दर्ज करने शुरू किये थे। इस तरह की चरम मौसमी घटनाएं हो रही हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी हालत और बदतर होने की आशंका है। भारत चरम मौसमी घटनाओं के असर से सर्वाधिक प्रभावित देशों में शामिल है।
लगभग 1.4 अरब निवासियों के साथ दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होने के नाते भारतीय अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता का वैश्विक उत्सर्जन, और इस तरह जलवायु परिवर्तन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। वर्ष 2021 में, भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी) 3.9 अरब कॉर्बन डाई ऑक्साइड (CO2)- समतुल्य टन था, जिससे यह चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक बन गया, हालांकि प्रति व्यक्ति जीएचजी उत्सर्जन 6.9 के वैश्विक औसत और 17.5 के अमेरिकी औसत के मुकाबले मात्र 2.8 CO2 समतुल्य टन था।
पर्यावरण के प्रति भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता
पर्यावरण के संरक्षण एवं सुधार के साथ ही साथ वनों एवं वन्यजीवन सुरक्षा देश के संविधान में अंतर्निहित है। वर्ष 2008 में, भारत सरकार ने आठ राष्ट्रीय मिशनों के साथ जलवायु परिवर्तन पर अपनी राष्ट्रीय कार्ययोजना लॉन्च की, जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को कम करना, ऊर्जा दक्षता को सुधारना, वनाच्छादित क्षेत्र को बढ़ाना और सतत आवासों का विकास करना था। जलवायु नीति ऊर्जा पहुंच और जल सुरक्षा जैसे अन्य नीतिगत लक्ष्यों से जुड़ी हुई है।
पेरिस समझौते के तहत दाखिल भारत के वर्ष 2030 के जलवायु लक्ष्यों में 2005 के मुकाबले इसकी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत घटाना और गैर-जीवाश्म ईधन आधारित ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी को स्थापित क्षमता के आधे तक बढ़ाना शामिल है। इन और अन्य प्रतिबद्धताओं के वित्तपोषण के लिए देश को प्रतिवर्ष लगभग 170 अरब डॉलर निवेश की आवश्यकता है। हालांकि, अनुमानित जलवायु वित्तपोषण प्रवाह औसतन 44 अरब डॉलर प्रतिवर्ष कम हो रहा है।
पिछले नवंबर में, मिस्र में 27वें युनाइटेड नेशंस कान्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) के दौरान भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और अपनाने के उभरते देशों के प्रयासों को मजबूत करने के लिए उनके लिए वित्तीय प्रवाह का पैमाना बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। सीओपी के तत्काल बाद भारत सरकार ने अपनी स्वयं की जरूरतों के लिए निजी क्षेत्र से पूंजी जुटाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये।
सतत वित्तपोषण की ओर एक बड़ी छलांग
1 फरवरी, 2022 को केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलात मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने हरित बुनियादी ढांचे के लिए संसाधन जुटाने के लिए सेवरन ग्रीन बॉन् जारी करने की भारत सरकार की योजना की घोषणा की। इनकी प्राप्तियों को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में योगदान करेंगी। 25 जनवरी, 2023 को, भारत ने 80 अरब रुपये (98 करोड़ डॉलर के बराबर) मूल्य के अपने पहले सोवरन ग्रीन बॉन्ड की पहली खेप जारी की। 9 फरवरी, 2023 को भारत सरकार ने सोवरन ग्रीन बॉन्ड की 80 अरब रुपये (96.8 करोड़ डॉलर) की एक और खेप जारी करने की घोषणा की।
"25 जनवरी, 2023 को, भारत ने 80 अरब रुपये (98 करोड़ डॉलर के बराबर) मूल्य के अपने पहले सोवरन ग्रीन बॉन्ड की पहली खेप जारी की।"
अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और प्रदूषण नियंत्रण का समर्थन
सोवरन ग्रीन बॉन्ड अक्षय ऊर्जा और परिवहन प्रणाली के विद्युतीकरण का वित्तपोषण करके अक्षय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने और अपनी कार्बन तीव्रता घटाने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इन क्षेत्रों में निवेश विशेषरूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 में भारत के जीएचजी उत्सर्जन में इनकी 41 प्रतिशत हिस्सेदारी थी और अर्थव्यवस्था का बढ़ना जारी रहने से 2050 तक उत्सर्जन में इनकी हिस्सेदारी दो-तिहाई हो जाने का अनुमान है। अक्षय ऊर्जा के लिए आवंटित ग्रीन बॉन्ड की प्राप्तियां सुसिद्ध अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को लागू करने के साथ-साथ ज्वार (टाइडल) ऊर्जा जैसी नयी प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करेंगी। यह भारत की ऊर्जा कायाकल्प यात्रा के समर्थन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि फिलहाल कोयला देश की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है जो ऊर्जा आवश्यकताओं के 55 प्रतिशत हिस्से को पूरा करता है।
सोवरन ग्रीन बॉन्ड से वित् प्राप्त करने की अन्य परियोजना श्रेणियों में अक्षय ऊर्जा, सतत जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता, हरित भवन, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, जीवंत प्राकृतिक संसाधन एवं भूमि उपयोग का सतत प्रबंधन, और स्थलीय एवं जलीव जैवविविधता संरक्षण शामिल है। बॉन्ड की प्राप्तियों का उपयोग जीवाश्म ईंधन के निष्कर्षण, उत्पादन एवं वितरण पर होने वाले खर्च का या जहां मुख्य ऊर्जा स्रोत जीवाश्म ईंधन आधारित हो, का वित्तपोषण नहीं किया जाएगा।
"सोवरन ग्रीन बॉन्ड अक्षय ऊर्जा और परिवहन प्रणाली के विद्युतीकरण का वित्तपोषण करके अक्षय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने और अपनी कार्बन तीव्रता घटाने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।"
विश्व बैंक के साथ साझीदारी
विश्व बैंक की सतत वित्त एवं ईएसजी परामर्श सेवा ने सोवरन ग्रीन बॉन्ड कार्यक्रम लाने के लिए भारत सरकार को तकनीकी सहायता प्रदान की है। यह कार्य सतत विकास के लिए बड़े वित्तीय अंतराल को भरने के लिए निजी पूंजी जुटाने में उभरते बाजारों को मदद करने के लिए अपनी विशेषज्ञता का लाभ देने के विश्व बैंक के प्रयासों का हिस्सा है। विश्व बैंक समूह जलवायु कायाकल्प एवं हरित विकास के लिए वित्तपोषण को अधिकतम करने के लिए भारत के साथ काम कर रहा है। उदाहरण के लिए, दुनिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों में एक, मध्य प्रदेश स्थित रीवा अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजना से बुनियादी ढांचे के लिए विश्व बैंक ऋण, स्थानीय मुद्रा निवेश जुटाने के लिए आईएफसी फंडिंग और सार्वजनिक-निजी साझीदारी करने एवं निजी पूंजी जुटाने के लिए परामर्श सेवाएं जुड़ी हैं।
ग्रीन बॉन्ड जारी करने में एशियाई उभरते बाजारों में भारत सबसे आगे
वित्तीय संस्थानों और सरकारी एजेंसियों ने 2015 से ही इस वित्तीय उपकरण का उपयोग किया है। फरवरी, 2023 तक जारी ग्रीन बॉन्ड की राशि 21 अरब डॉलर तक पहुंच गयी है। कुल राशि में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 84 प्रतिशत थीं (देखें चित्र 1)।
भारत में सबसे बड़ा ग्रीन बॉन्ड जारीकर्ता, ग्रीनको ग्रुप अपनी ग्रीन बॉन्ड प्राप्तियों से विभिन्न भारतीय राज्यों में जलविद्युत, सौर और पवन ऊर्जा परियोजना का वित्तपोषण कर रहा है। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय, गाजियाबाद नगर निगम ग्रीन बॉन्ड (2021 में 2 करोड़ डॉलर के बराबर) जारी करने वाली पहली भारतीय स्थानीय सरकार है। इंदौर नगर निगम ने 2023 में 8.7 करोड़ डॉलर के ग्रीन बॉन्ड जारी किये।
भारतीय जारीकर्ताओं ने चीन को छोड़कर एशिया में अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले ज्यादा राशि के ग्रीन बॉन्ड (21 अरब डॉलर) जारी किये। ग्रीन बॉन्ड बाजार में भारत सरकार के प्रवेश के साथ ही हम हरित एवं पर्यावरण उन्मुख परियोजनाओं एवं गतिविधियों में ज्यादा निवेश की उम्मीद कर सकते हैं जो हरित, लचीले एवं समावेशी विकास की ओर भारत के कायाकल्प में योगदान करेगा।
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