पूरी दुनिया के साक्ष्य यह बताते हैं कि कई बाधाएं हैं जो सार्वजनिक परिवहन तक महिलाओं की पहुंच को कमजोर करती हैं। समग्रता में देखें तो, सार्वजनिक परिवहन बुनियादी ढांचा, सेवाएं और किराया नीतियां शायद ही कभी महिलाओं की विशिष्ट आवागमन जरूरतों को ध्यान में रखती हैं, जिनके यात्रा पैटर्न पुरुषों से काफी भिन्न हो सकते हैं। व्यक्तिगत सुरक्षा एक और बड़ी चिंता है: उदाहरण के लिए, सभी भारतीय शहरों में, 50-70% महिलाओं ने बताया कि वे उत्पीड़न के डर से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से बचती हैं।
इसका निस्तारण करने के लिए कई अलग-अलग प्रकार के भागीदारों और हितधारकों के बीच घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता होगी, लेकिन इन सब की शुरुआत सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को डिजाइन, कार्यान्वित करने के प्रभारी निर्णयकर्ताओं और हर दिन संचालित करने वाले श्रमिकों के एक प्रमुख समूह से होती है।
इसमें सार्वजनिक परिवहन और सार्वजनिक स्थलों को सुचारू रखने वाले अग्रपंक्ति के कर्मचारी जैसे बस ड्राइवर, कंडक्टर, टिकटिंग स्टाफ, सुरक्षा गार्ड शामिल हैं और ये महिला यात्रियों की मदद करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में हैं। शहरों को ऐसे कर्मचारियों की जरूरत है जो महिलाओं के उत्पीड़न के समय हस्तक्षेप करें और जो स्वयं महिलाओं को परेशान न करें। उन्हें महिलाओं और एलजीबीटी+ व्यक्तियों की जरूरतों का ध्यान रखने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
इसी तरह, सार्वजनिक परिवहन अधिकारियों और सार्वजनिक एजेंसियों को भी पुरुषों और महिलाओं की गतिशीलता की जरूरतों में अंतर के बारे में पता होना चाहिए - और उसके अनुसार परिवहन बुनियादी ढांचे और सेवाओं को अनुकूलित करना चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत में, महिलाओं के सुस्त घंटों में यात्रा करने, एक सीमित क्षेत्र के भीतर रहने, बच्चों और आश्रितों के साथ यात्रा करने और घरेलू कामों को पूरा करने के लिए कई छोटी यात्राएं करने की अधिक संभावना रहती है, जैसा कि सार्वजनिक परिवहन और शहरी स्थानों को महिलाओं के लिए सुरक्षित और समावेशी बनाने पर हमारी नीति में उल्लिखित है।
लैंगिक भेदभाव को उजागर करना
एक बड़ी चुनौती यह है कि शहर के कर्मचारी उसी समाज से हैं जो लैंगिक पूर्वाग्रह पैदा करता है। कई सचेत और अचेतन पूर्वाग्रह हैं जिन्हें समाप्त किया जाना चाहिए।
इस मुद्दे को दो मोर्चों पर निस्तारित करना महत्वपूर्ण है। पहला, सुरक्षित, महिलाओं के अनुकूल परिवहन के लिए नीतियां तैयार करने के लिए अधिकारियों की क्षमता का निर्माण करें। दूसरा, व्यक्तिगत और सामुदायिक, दोनों स्तरों पर मानसिकता में दीर्घकालिक बदलाव लाएं।
मराकेश जैसे शहरों ने 2012 से 2017 के बीच मराकेश : सभी कार्यक्रम के लिए सुरक्षित और अनुकूल शहर के तहत इस प्रकार की दो-आयामी रणनीति को लागू किया। कार्यक्रम में शहर के अधिकारियों से लेकर परिवहन श्रमिकों और मीडिया पेशेवरों तक, समाज के सभी हिस्सों के लोग शामिल किए गए थे। इसने उन्हें यह समझने के लिए प्रोत्साहित किया कि महिलाओं ने कहां और कैसे सर्वाधिक असुरक्षा महसूस की, अपराधी कौन थे, और किस तरह के हस्तक्षेप सबसे प्रभावी होंगे। इसके अलावा, 1,500 टैक्सी ड्राइवरों और बस ड्राइवरों को यौन उत्पीड़न के बारे में जागरूकता किया गया था।
अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता
सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण, शहरी स्थानीय निकाय और अन्य नागरिक एजेंसियां ड्यूटी अधिकारियों (जैसे वरिष्ठ प्रबंधन, प्रशासनिक अधिकारियों) और अग्रपंक्ति के कर्मचारियों के लिए नियमित क्षमता निर्माण योजना तैयार कर सकती हैं। ये लैंगिक पूर्वाग्रहों और तकनीकी क्षमता के आधारभूत मूल्यांकन पर आधारित होना चाहिए। ये प्रशिक्षण स्थानीय भाषाओं में दिए जाने से वे अधिक प्रभावी होंगे।
सड़कों, स्टेशनों और वाहनों की डिजाइन महिलाओं के अनुकूल बनाने के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण और अतिरिक्त क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। अग्रपंक्ति के कर्मचारियों को सुरक्षा स्थितियों को संभालने में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है, जैसे कि बसों में महिलाओं का यौन उत्पीड़न होने पर कैसे हस्तक्षेप किया जाए।
सरकारों को कार्रवाई करने में मदद के लिए, हमने हाल ही में एक नया टूलकिट जारी किया है जो सार्वजनिक परिवहन को महिलाओं के अधिक अनुकूल बनाने के लिए क्षमता निर्माण और जागरूकता बढ़ाने समेत कुछ आवश्यक प्रमुख हस्तक्षेपों पर प्रकाश डालता है। यद्यपि टूलकिट भारत के मामलों पर केंद्रित है, परंतु इसमें कई आवश्यक सबक शामिल हैं जिन्हें अन्य देशों में आसानी से लागू किया जा सकता है। उन हस्तक्षेपों के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें जो मानसिकता को बदलने और दीर्घकालिक परिवर्तन करने के लिए बुनियाद हैं।
भारत में केस स्टडी
पूरे भारत के शहरों (दिल्ली, पुणे और गुरुग्राम सहित) ने बस ड्राइवरों और अग्रपंक्ति के कर्मचारियों के लिए लैंगिक संवेदीकरण प्रशिक्षण शुरू किया है।
दिल्ली में सार्वजनिक बस संचालन का प्रबंधन करने वाला दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी वार्षिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए जागोरी और मानस फाउंडेशन जैसे कई समुदाय-आधारित संगठनों के साथ साझेदारी कर रहा है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को महिला यात्रियों के सामने आने वाली सुरक्षा चुनौतियों से परिचित कराना और उन्हें हस्तक्षेप करने के तरीके के बारे में व्यावहारिक मार्गदर्शन देना है। इनमें से कुछ प्रशिक्षण अब ड्राइविंग लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए आवश्यक हैं। डीटीसी कर्मचारी "सेफ गाड़ी" ("सुरक्षित वाहन") नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन भी डाउनलोड कर सकते हैं जो प्रोत्साहन-आधारित गेम और क्विज़ के रूप में अग्रपंक्ति के कर्मचारियों के लैंगिक संवेदीकरण के लिए प्रशिक्षण सामग्री प्रदान करता है। आकर्षक और इंटरैक्टिव प्रारूप ड्राइवरों की रुचि को बनाए रखने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे प्रशिक्षण लेते रहें।
भारत की सफलता 'दखल दो' ("हस्तक्षेप") अभियान ने लोगों को सार्वजनिक और निजी स्थानों पर महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों की निंदा करने के लिए प्रेरित किया। इस संदेश को एक बॉलीवुड सेलिब्रिटी, लोकप्रिय रेडियो चैनलों पर प्रतियोगिताओं और सोशल मीडिया चुनौतियों द्वारा बढ़ाया गया था। यह लाखों में पहुंच गया है।
अगले कदम
भारत में अधिकांश नागरिक प्राधिकरण अपने कर्मचारियों के लिए नियमित क्षमता निर्माण में निवेश करते हैं। इन कार्यक्रमों में लैंगिक एकीकरण करना महिलाओं के अनुकूल सार्वजनिक परिवहन बनाने और महिला यात्रियों के समग्र अनुभव में सुधार करने में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है। इष्टतम परिणामों के लिए, बहु-वर्षीय योजनाएं लागू करना सबसे अच्छा है जिसमें वार्षिक प्रशिक्षण और निरंतर क्षमता निर्माण, सभी कर्मचारियों के लिए लैंगिक संवेदीकरण पर ध्यान केंद्रित करने और इसके साथ पूरक रूप में (i) शहरी गतिशीलता बुनियादी ढांचे के लिंग-सूचित डिजाइन, एवं (ii) सार्वजनिक स्थानों की लैंगिक संवेदनशील शहरी योजना पर लक्षित तकनीकी प्रशिक्षण शामिल है।
व्यवहार को बदलने और महिलाओं के अधिकारों को पहचानने के लिए निरंतर जन और सोशल मीडिया अभियानों के जरिए सामुदायिक मानसिकता को बदलना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अभियान महिलाओं को हेल्पलाइन, शिकायत तंत्र और निवारण प्रणालियों के बारे में सूचित करने पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
नगर के अधिकारियों, सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरणों और कार्यान्वयन एजेंसियों का उपयोगकर्ताओं के साथ सीधा संबंध नहीं हो सकता है। ऐसे परिदृश्य में, नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) के साथ साझेदारी समाज के विभिन्न वर्गों के यात्रियों तक पहुंचने में मदद कर सकती है, ताकि ड्यूटी करने वाले और अग्रपंक्ति के कर्मचारी महिलाओं और एलजीबीटी+ व्यक्तियों सहित अपने सबसे कमजोर उपयोगकर्ताओं से सीधे प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकें।
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