भारत में तंबाकू और मीठे पेय पदार्थों पर टैक्स नीति में पुनर्विचार की ज़रूरत

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भारत में तंबाकू और मीठे पेय पदार्थों पर टैक्स नीति में पुनर्विचार की ज़रूरत

भारत में मोटापे की समस्या बढ़ने के साथ-साथ हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गैर-संचारी बीमारियां भी तेजी बढ़ती जा रही हैं। तंबाकू, शराब और मीठे पेय पदार्थों की बढ़ती खपत ने इस समस्या को प्रमुख रूप से बढ़ावा दिया है। भारत में चीनी की खपत पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है, और अगर शराब की बात की जाए तो प्रति व्यक्ति खपत के मामले में देश में शराब का चलन बढ़ रहा है। हालांकि, तंबाकू का इस्तेमाल कम हो रहा है लेकिन भारतीय आज भी दुनिया में तंबाकू के दूसरे सबसे बड़े उपभोक्ता हैं।

इन सबके कारण भारतीयों की सेहत पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा है। अकेले 2019 गैर-संचारी रोगों (NCD) की वजह से करीब 16 लाख लोगों की जान गई। यानी उस साल देश में जितनी मौतें हुईं, उनमें से दो-तिहाई से भी ज़्यादा मौतें इन बीमारियों के कारण हुईं। इसके अलावा, अगर हम विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (DALY) (अक्षमता के कारण व्यक्ति ने स्वस्थ जीवन के कितने साल खो दिए हैं, इससे जुड़ा स्वास्थ्य मापदंड) के आधार पर देखें तो लोगों ने अपने स्वास्थ्य जीवन के क़रीब 5 करोड़ (4 करोड़ 93 लाख) साल गंवा दिए हैं।

इसका आर्थिक बोझ बहुत भारी है। सिर्फ तंबाकू के सेवन से होने वाली बीमारियों और मौतों से 2017-18 में भारत को 36.2 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। वहीं, शराब के सेवन से 2013-14 में 31.4 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इसमें शराब से जुड़ी बीमारियों का इलाज, समय से पहले होने वाली मौतें और अक्षमता के कारण कामकाज में आई कमी शामिल है।

 

भारत में हानिकारक उत्पादों पर लगाया जाने वाला टैक्स डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों की तुलना में काफी कम है।

दुनिया भर में सेहत के लिए नुकसानदेह उत्पादों पर टैक्स लगाकर उनकी खपत को कम करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन भारत में मीठे पेय पदार्थों और तंबाकू जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों पर टैक्स की दरें 2017 से अब तक वैसी की वैसी हैं जबकि लोगों की इन उत्पादों तक पहुंच पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है।

भारत में सिगरेट पर उसकी खुदरा कीमत का लगभग 53 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता है, जबकि बिना धुएं वाले तंबाकू पर 65 प्रतिशत और बीड़ी (पारंपरिक रूप से बनाई गई सिगरेट है, जिसे तेंदू पत्ते में तंबाकू भरकर हाथों से लपेट कर बनाया जाता है) पर सिर्फ 22 प्रतिशत टैक्स लगाया है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इन उत्पादों पर 75 प्रतिशत टैक्स लगाने का सुझाव दिया है। वहीं दूसरी ओर, ब्राज़ील में टैक्स दरें आमतौर पर 60 से 70 प्रतिशत के दायरे में रखी जाती हैं, जो इंडोनेशिया के लिए 50 से 60 प्रतिशत है और यूरोपीय संघ के 28 देशों में लगभग 67.5 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता है। मीठे पेय उत्पादों (शर्करा युक्त) पर भारत में केवल 28.6 प्रतिशत टैक्स लगाया गया है।

अब भारत के पास इस समस्या को सुलझाने का एक अच्छा मौका है। 31 मार्च 2026 को वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत लगने वाला मुआवजा उपकर ख़त्म होने वाला है जिसे फिलहाल तंबाकू, मीठे पेय पदार्थों जैसे कुछ उत्पादों की बिक्री पर लगाया गया है। अगर मुआवजा उपकर की जगह एक स्वास्थ्य उपकर लगाया जाए तो इससे इन हानिकारक चीज़ों की खपत में कमी लाई जा सकती है, और इससे सरकार की आय पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा। अच्छी बात यह है कि खबरों के मुताबिक जीएसटी परिषद इस दिशा में विचार कर रही है।

मुआवजा उपकर (Compensation Cess) जुलाई 2017 में इसलिए शुरू किया गया था ताकि GST लागू होने के बाद राज्यों को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई की जा सके। अगर यह उपकर खत्म हो गया और इसकी जगह कोई नया टैक्स नहीं लगाया गया, तो तंबाकू और शक्कर वाली पेय जैसी चीज़ें और सस्ती हो जाएंगी, जिससे लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ेगा।

भारत में उत्पादों के तय मूल्य के आधार पर जीएसटी लगाई जाती है जबकि यह स्पष्ट है कि उत्पादों की मात्रा के हिसाब से टैक्स लगाने से उनकी खपत को कहीं बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। जैसे हर एक सिगरेट या बीड़ी पर, शराब की मात्रा और प्रति ग्राम चीनी पर टैक्स लगाया जाए। क्योंकि इन चीज़ों से होने वाला नुकसान इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कितनी मात्रा में इन्हें इस्तेमाल करता है, न कि उनकी कीमत पर। साथ ही, जब मात्रा के आधार पर टैक्स लगाया जाता है तो कंपनियों के लिए इनकी कीमतों के साथ छेड़छाड़ करना मुश्किल हो जाता है। इतना ही नहीं, उनके लिए ग्राहकों को किसी दूसरे सस्ते मगर इतने ही नुकसानदायक उत्पादों को खरीदने के लिए प्रेरित करना भी मुश्किल होता है।

ज्यादातर देशों में हानिकारक उत्पादों पर या तो तय मात्रा के आधार पर टैक्स लगाया गया है या फिर मात्रा और कीमत दोनों पर आधारित टैक्स प्रणाली को अपनाया गया है। लेकिन भारत में इन उत्पादों पर सिर्फ़ कीमतों के आधार पर जीएसटी लगाया गया है। जब से जीएसटी आया है तब से तंबाकू पर लगने वाला उत्पाद शुल्क काफ़ी नीचे गिर गया है। सिगरेट के मामले में यह 54 प्रतिशत से गिरकर केवल 8 प्रतिशत रह गया है। बीड़ी, बिना धुएं वाला तंबाकू और मीठे पेय पदार्थों पर भी इसी तरह उत्पाद शुल्क की हिस्सेदारी घटी है। इससे टैक्स व्यवस्था कमज़ोर पड़ गई है और इसके कारण हानिकारक उत्पादों के प्रचलन को रोकने में यह असमर्थ साबित हुई है। हाल ही में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट “ए डायग्नोस्टिक ऑफ द हेल्थ टैक्सेज लैंडस्केप इन इंडिया” में इन समस्याओं के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।

 

भारत के पास लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का एक बड़ा मौका है। 

31 मार्च 2026 को जीएसटी परिषद को हानिकारक उत्पादों पर टैक्स ढांचे की खामियों को दूर करने का भी मौका मिलेगा। उदाहरण के लिए, भारत में बीड़ी का प्रचलन सबसे ज्यादा है, लेकिन अभी तक इसे मुआवजा उपकर से छूट मिली हुई है। इसी कारण बीड़ी पर कुल टैक्स सिर्फ 22 प्रतिशत है, जबकि इसका नुकसान सिगरेट जितना ही है। नए स्वास्थ्य उपकर को बीड़ी पर भी लागू किया जा सकता है, ताकि सभी हानिकारक उत्पादों पर एक जैसे टैक्स लगें और लोग एक उत्पाद के बदले दूसरे हानिकारक उत्पादों को न अपनाएं। यह कदम अंतरराष्ट्रीय मानकों के भी अनुरूप होगा।

भारत को मौजूदा मुआवजा उपकर की जगह मात्रा पर आधारित स्वास्थ्य उपकर को लागू करना चाहिए जिसमें तंबाकू के पारंपरिक और वैकल्पिक उत्पाद (जैसे बीड़ी) भी शामिल हों। इससे भारत की टैक्स व्यवस्था को देश के स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों के साथ जोड़ने में मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, यह विकास के लिए ज़रूरी राजस्व जुटाने के लिहाज से भी हितकर साबित होगा। यह नीति निर्माताओं के लिए एक ऐसा मौका है जिसके जरिए वह एक साथ स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था, दोनों मोर्चों के लिए आवश्यक कदम उठा सकते हैं।


मोहन नागराजन

वरिष्ठ अर्थशास्त्री

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