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कोविड महामारी के संकट के बाद महिलाओं को प्राथमिकता दें

????8???????????? © Shutterstock 全球仍有8亿多学生不能返校。图片: © Shutterstock

शिक्षा से लेकर उद्यमिता तक वैश्विक सुधार की कोशिशों में महिलाओं और लड़कियों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।

आर्थिक संकट किस तरह से महिलाओं और पुरुषों को अलग अलग प्रभावित करते हैं और सरकारों को किस तरह से इसका सामना करना चाहिए, इस मुद्दे पर नीति निर्माता हमेशा विचार नहीं करते हैं।

जब 2008 में आर्थिक मंदी आई तब कुछ लोगों ने पूछा था कि प्रोत्साहन उपायों का पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

यह दृष्टिकोण कोविड -19 संकट के दौरान सही नहीं है। अब दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों के सामने महामारी के बाद की अर्थव्यवस्था को संभालने की चुनौती है, उनकी रणनीति के केंद्र में महिलाओं को होना चाहिए।

कई देशों में कोविड-19 की लॉकडाउन से महिलाओं को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है। उदाहरण के लिए, लैटिन अमेरिका में महामारी के शुरुआती महीनों में पुरुषों की तुलना में 50 प्रतिशत ज़्यादा महिलाओं के सामने नौकरी खोने का संकट था।

आमतौर पर महिलाएं रिटेल, रेस्टोरेंट और हॉस्पीटलिटी सेक्टर में नौकरियां करती हैं और इन सेक्टरों को सबसे जोख़िम वाला सेक्टर माना जाता है। वे अक्सर असंगठित क्षेत्रों में भी काम करती हैं, जैसे सड़कों पर सामान बेचने से लेकर घर पर सिलाई करने तक, इन कामों में ऐसी छुट्टियां नहीं होती हैं, जिसका भुगतान मिलता हो या फिर बेरोज़गार होने पर कोई बीमा मिले। जब ये नौकरियां ख़त्म हो गईं या काम नहीं रहा तो महिलाओं के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था भी मौजूद नहीं थी।

इसके अलावा, आर्थिक सुधार के लिए निम्न और मध्यम आय वाले देशों में महिलाओं के योगदान का व्यापक प्रभाव हो सकता है। वर्ल्ड बैंक के शोध से पता चलता है कि अगर महिलाओं के साथ भेदभाव को कम किया जाए तो नाइजर जैसे देश में प्रति व्यक्ति जीडीपी 25 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ सकती है।

ऐसे में सवाल यही है कि सरकारें क्या कर सकती हैं? कम से कम तीन व्यापक क्षेत्रों पर सरकारें ध्यान दे सकती हैं।

सबसे पहले, देश में निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी के साथ सरकारी पहचान प्रणालियों, भुगतान प्लेटफ़ार्मों और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं का तेज़ी से डिज़िटलीकरण कर सकते हैं।  आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाली महिलाएं अक्सर अपनी सरकारों को नज़र नहीं आती हैं। उनके पास औपचारिक पहचान पत्र होने, मोबाइल फ़ोन रखने या सामाजिक पहचान वाले रजिस्ट्रर में दर्ज होने की संभावना भी कम होती है।

जबकि 200 से अधिक देशों ने कोविड -19 के जवाब में सामाजिक-सुरक्षा उपायों को विकसित किया तो कई जगहों पर अनौपचारिक श्रमिकों की पहचान करने और उन्हें सहायता पहुंचाने में मुश्किल हुई है। इससे ज़ाहिर है कि महिलाओं की अनदेखी हुई होगी।

उन्नत डिजिटल सिस्टम होने से ज़रूरतमंद महिलाओं की पहचान करने में आसानी होगी और इससे उन्हें जल्दी और सुरक्षित तरीके से आर्थिक मदद पहुंचायी जा सकती है। इंडोनेशिया, नाइज़ीरिया और ज़ाम्बिया जैसे देशों में अब लाखों महिलाओं को कहीं ज़्यादा और सुरक्षित तरीके से नकद राशि मिल रही है, इससे पूंजी पर इन महिलाओं के नियंत्रण का प्रतिशत भी बढ़ा है।

भारत का अनुभव भी इसके फ़ायदों को दर्शाता है। पिछले साल ही भारत सरकार, 20 करोड़ से अधिक महिलाओं को कोविड सहायता राशि का भुगतान जल्दी से करने में सक्षम थी क्योंकि इन महिलाओं की संख्या से संबंधित आंकड़े और बुनियादी डिज़िटल सुविधाएं मौजूद थीं। साथ ही इन महिलाओं के पास अपना बैंक एकाउंट भी मौजूद था। सरकारें इंटरनेट की पहुंच को बढ़ाकर, मोबाइल कनेक्टिविटी को बढ़ाकर और लोगों को डिज़िटल कौशल में सक्षम बनाकर आर्थिक अवसरों को एकसामन रूप से लोगों के बीच में पहुंचा सकती है।

दूसरी अहम बात यह है कि सरकारों को अर्थव्यवस्था में महिलाओं की चाहें वो कर्मचारी हों या उद्यमी हों, पूर्ण भागीदारी के रास्ते की बाधाओं को दूर करना चाहिए। कोविड महामारी के दौरान सबसे कड़े लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के स्वामित्व वाली कंपनियों के बंद होने की आशंका पुरुषों के स्वामित्व की तुलना वाली कंपनियों से 10 प्रतिशत ज़्यादा थी। इसमें अचरज की कोई बात नहीं है क्योंकि महिलाओं के स्वामित्व वाले ज़्यादातर व्यवसाय छोटे होते हैं - यानी उसमें उद्यमी के अलावा पांच से भी कम कर्मचारी होते हैं।

उद्यम के क्षेत्र में महिलाओं के साथ भेदभव को कम करने से ग़रीबी कम होगी, नौकरियां सृजित होंगी और विकास और नयी पहल को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए सरकार को महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों के लिए ऋण और अन्य प्रकार से वित्त पोषित करने का लक्ष्य बनाना चाहिए। महिला उद्यमियों को बाज़ार तक पहुंचने में सक्षम बनाने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म के निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए। साथ ही बिज़नेस इनक्यूबेटरों को महिलाओं के स्वामित्व वाले स्टार्टअप में निवेश के साथ भेदभाव नहीं करने और पूर्वाग्रहों को दूर करने में मदद करनी चाहिए।

कर्मचारियों को भी कई तरह की सहायता चाहिए होती है। कई देशों में यह मदद सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना हो सकता है, ताकि वे उत्पीड़न के डर के बिना काम पर जा सकें। वहीं कुछ देशों में मानव संसाधन में महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव रोकने के लिए नियम और प्रावधानों की समीक्षा की आवश्यकता है। इसके अलावा सभी देशों में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में, परिवार के लिए उपयुक्त लीव पॉलिसी और बच्चों की गणुवत्तापूर्ण देखभाल के लिए प्रावधान होने चाहिए।

और अंत में, सरकारों को कम से कम माध्यमिक स्कूल तक लड़कियों को अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। कोविड महामारी से पहले भी, दुनिया के सामने शिक्षा का संकट मौजूद था। निम्न और मध्यम आय वाले देशों के स्कूलों में 10 साल के आधे से अधिक बच्चे सामान्य पाठ को ना तो पढ़ सकते थे और ना ही समझ सकते थे।

कोविड महामारी से संकट और गहराया है। इस समय दुनिया भर में पर 80 करोड़ से अधिक छात्र स्कूलों से बाहर हैं और ग्रामीण इलाक़ों के ग़रीब छात्रों के पास दूरस्थ शिक्षा तक कोई पहुंच नहीं है। अफ्रीका में, 45% बच्चों का स्कूल बंद होने से पढ़ाई से नाता टूट गया है।

लड़कियों को दूरस्थ शिक्षा के दौरान अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि परिवार में केवल एक फ़ोन है, तो इसका उपयोग लड़कियों के बजाय लड़कों द्वारा किए जाने की संभावना है। इसके अलावा घरेलू काम का भारी बोझ भी कई लड़कियों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करता है।

शिक्षा भविष्य में रोज़गारों के अवसरों को मुहैया कराती है और महिलाओं के जीवन में ताक़त और प्रभाव का समावेश करती है।

जैसे जैसे छात्र स्कूलों में लौटते हैं, वैसे वैसे लड़कियों और लड़कों दोनों की सीखने की प्रक्रिया से जोड़ना सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए सामाजिक और भावानात्मक कौशल के साथ साथ सीख प्रदान करने वाली दूरस्थ और व्यक्तिगत हाइब्रिड योजनाओं में निवेश की ज़रूरत होगी। इससे बच्चों को पढ़ाई की पटरी पर आने में मदद मिलेगी।

सच यह है कि ऐसे समय में जब बढ़ता कर्ज़ प्रमुख चिंता का विषय है, इन उपायों की व्यवस्था करने में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी।  लेकिन उस कर्ज को चुकाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि अर्थव्यवस्थाओं को रफ़्तार दी जाए और ज़्यादा से ज़्यादा परिवारों को ग़रीबी से निकाला जाए।

सही नीतियों के साथ कोई भी देश मज़बूत और अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण कर सकते हैं। हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी चुनौती से निकलने की तैयारी करते हुए देशों को कोविड के बाद की मज़बूत दुनिया के निर्माण में महिलाओं को केंद्रीय निर्माता के तौर पर देखना चाहिए।

यह आलेख मूल रूप से ब्लूमबर्ग ओपिनियन पर प्रकाशित हुआ था।


Authors

मेलिंडा गेट्स

बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सह-अध्यक्ष

डेविड मालपास

वर्ल्ड बैंक समूह के अध्यक्ष

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