मई 2021 में, भारत कोरोना महामारी के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा। महामारी की दूसरी लहर के आते ही, मेडिकल ऑक्सीजन की मांग दस गुना बढ़ गई और हमारे सामने लोगों के इस जीवन-रक्षक वस्तु के लिए मारामारी करने का दुःखद दृश्य सामने आया।
अचानक ऑक्सीजन की मांग का बढ़ना इस बात से भी प्रभावित था कि देश के ज्यादातर ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र पूर्वी भारत के औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैं। केवल कुछ ही अस्पतालों में इस कीमती गैस के आंतरिक उत्पादन की सुविधा थी; अधिकांश अन्य जगहों से ऑक्सीजन सिलिंडर या लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति पर निर्भर थे। इतना ही नहीं, लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन को ले जाने के लिए आवश्यक क्रायोजेनिक टैंकर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे, जिसके कारण अचानक बढ़ी हुई मांग से निपटना काफ़ी मुश्किल था।
सरकार ने कई कदम उठाए: विदेशों से अतिरिक्त टैंकर मंगवाए गए, तरल आर्गन और नाइट्रोजन के टैंकरों को ऑक्सीजन टैंकरों में परिवर्तित किया गया, और रेलवे ने नवाचार करते हुए विशेष ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनों की शुरुआत की। इसके अलावा, 550 से ज्यादा शहरों और जिलों का भौगोलिक मानचित्रण किया गया और सामानों के रियल टाइम मूवमेंट पर नज़र रखने के लिए एक ऑनलाइन सिस्टम तैयार किया गया।
औद्योगिक ऑक्सीजन की खेप इस्पात संयंत्रों से अस्पतालों में पहुंचाई गई। सरकार द्वारा प्रेशर स्विंग एडसोर्पशन (पीएसए) संयंत्रों की स्थापना तेजी से की गई, जो हवा में मौजूद ऑक्सीजन को संघनित करता है। उसके अलावा ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स के ख़रीद और वितरण को बढ़ावा दिया गया।
ऑक्सीजन के उत्पादन, उसके संग्रहण और परिवहन की लागत उसके बाज़ार मूल्य की तुलना में कहीं ज्यादा ह। स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में उसकी मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ सकती है और ऐसी स्थिति के दुबारा आने पर हमें इससे निपटने के लिए कैसी तैयारियां करनी चाहिए?
इस अनुभव से निम्नलिखित प्रश्न खड़े होते हैं:
जबकि ऑक्सीजन के उत्पादन, उसके संग्रहण और परिवहन की लागत उसके बाज़ार मूल्य की तुलना में कहीं ज्यादा है, और स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में उसकी मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है. ऐसी किसी स्थिति के दुबारा आने पर हमें इससे निपटने के लिए कैसी तैयारियां करनी चाहिए? उतना ही ज़रूरी ये सवाल भी है कि हम वितरण व्यवस्था को कैसे और बेहतर बनाए ताकि ज़रूरत पड़ने पर ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके, और सामान्य दिनों में भी कोई इस जीवन रक्षक उत्पाद से वंचित न रहे?
पिछले कुछ महीनों में भारत ने मेडिकल ऑक्सीजन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक मध्यम अवधि की रणनीति बनाई है और केंद्र और राज्य सरकारों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
विश्व बैंक द्वारा चार भारतीय राज्यों, आंध्र प्रदेश, मेघालय, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल को दी गई तकनीकी सहायता और उसके केंद्रीय प्राधिकारियों के साथ काम करने से जो सबक हासिल हुए हैं, उसे ध्यान में रखते हुए हम कुछ ऐसे विकल्पों पर बात करेंगे, जिससे देश की मेडिकल ऑक्सीजन नीति को और भी ज्यादा मजबूत बनाया जा सके:
उत्पादन क्षमता में विस्तार
केंद्र सरकार ने पीएम केयर्स फंड के माध्यम से 1,222 पीएसए संयंत्रों का वित्त पोषण किया है, जिससे प्रतिदिन 1,750 मीट्रिक टन कैप्टिव ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी क्षेत्र के वित्तपोषण के माध्यम से राज्यों में कई संयंत्रों की स्थापना की गई है।
आगे बढ़ने के लिए, सरकार के लिए ये ज़रूरी है कि वह निजी क्षेत्र द्वारा लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की उत्पादन, भंडारण और परिवहन की क्षमता को बढ़ाने में सहयोग करे और आवश्यकता पड़ने पर इसका लाभ उठाने की योजनाएं तैयार करे। अब तक, कई मध्यम से लेकर बड़े निजी अस्पताल (100 से 200 बेडों की क्षमता वाले) ऐसा करने से बचते रहे हैं क्योंकि अपने परिसरों में ऑक्सीजन संयंत्रों को स्थापित करने के लिए बहुत बड़े पूंजीगत निवेश की आवश्यकता होती है। फिर भी जब महामारी की दूसरी लहर अपने चरम पर पहुंच गई, तब सरकार ने अपने परिसर में चिकित्सा ऑक्सीजन सुविधाओं की स्थापना से जुड़े नियमों में ढिलाई का फ़ैसला लिया और परिणामस्वरूप कुछ बड़े निजी अस्पतालों ने अपने निजी स्वामित्व वाले ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना की।
वर्तमान में, कुछ राज्य ऐसे हैं, जो निजी कंपनियों को ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, अपनी नई ऑक्सीजन उत्पादन नीति 2021 के तहत, बिहार राज्य सरकार ने संयंत्रों और मशीनरी की स्थापना के लिए 30 प्रतिशत की पूंजीगत सब्सिडी प्रदान करने का निर्णय लिया है। देश के अन्य हिस्सों में भी, निजी स्वास्थ्य केंद्रों को इन संयंत्रों की स्थापना के लिए प्रोत्साहन के रूप में रियायती ज़मीनों एवं अन्य सुविधाओं के साथ- साथ बहुत कम ब्याज दरों पर वित्तीय निवेश की पेशकश किए जाने की आवश्यकता है।
ऑक्सीजन आपूर्ति के बुनियादी ढांचे का रखरखाव
पहले, कई सरकारी अस्पतालों के पास अपने ऑक्सीजन संयंत्र थे लेकिन रखरखाव के अभाव में वे उपयोग लायक नहीं रहे। इसलिए ये सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है कि जिन कैप्टिव ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए गए हैं, उनके संचालन और रखरखाव को लेकर वही गलती पुनः न दोहराई जाए और इसके लिए संसाधनों की कमी जैसी समस्या पैदा न हो।
इन संयंत्रों की उच्च उत्पादक क्षमता को सुनिश्चित करने के अलावा, यह भी ज़रूरी है कि ऑक्सीजन आपूर्ति की इस पूरी श्रृंखला, संयंत्र से लेकर अस्पताल के बेड तक, के संचालन और रखरखाव की बेहतर व्यवस्था हो। भारत में खरीदे जा रहे 3,500 से अधिक संयंत्रों में, पीएम केयर्स फंड के तहत खरीदे गए 1,222 संयंत्रों के साथ पांच साल का वार्षिक रखरखाव अनुबंध (एएमसी) भी शामिल है। दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी संयंत्रों, भंडारण टैंकों और वितरण प्रणालियों को इसी तरह के वार्षिक रखरखाव अनुबंध (एएमसी) के दायरे में लाने की आवश्यकता है।
इन नए संयंत्रों के संचालन और रखरखाव के लिए कौशल की कमी एक नई समस्या हो सकती है। इसे देखते हुए भारत ने पहले से ही इन संयंत्रों के संचालन और रखरखाव के लिए एक पहल की शुरुआत की है, जिसके तहत 8,000 तकनीशियनों को प्रशिक्षित किए जाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण की शर्तों को पूरा करने के साथ-साथ हस्त संचालन प्रशिक्षण भी आवश्यक है। आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने भी इन संयंत्रों के साथ-साथ अन्य बायोमेडिकल और कोल्ड स्टोरेज के रखरखाव के लिए लोगों को कौशल प्रशिक्षण दिए जाने जैसी स्वागतयोग्य पहलों की शुरुआत की है।
माल ढुलाई
महामारी की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य आपातकाल की समस्या ऑक्सीजन की कमी के चलते नहीं पैदा हुई थी। बल्कि भारत के अधिकांश ऑक्सीजन संयंत्र उसके पूर्वी क्षेत्रों में स्थित हैं और ऑक्सीजन वितरण प्रणाली मांग के दस गुना बढ़ जाने का दबाव को झेल सकने में असमर्थ थी। अगर हम ऐसे बुनियादी ढांचे को खड़ा नहीं करना चाहते, जिसकी लागत बहुत ज्यादा हो और जिसके निरंतर उपयोग की संभावना न हो, और इसके बिना ही मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता को बढ़ाना चाहते हैं तो हमें आपूर्ति केंद्रों को मांग के साथ जोड़ने के लिए अपने मल्टीमॉडल परिवहन नेटवर्क को मजबूत करने की आवश्यकता होगी। चूंकि मेडिकल ऑक्सीजन अपेक्षाकृत सस्ता होता है लेकिन इसके परिवहन की लागत काफ़ी ज्यादा है, इसलिए आपूर्ति में लगने वाले समय को बचाने के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ऑक्सीजन के बफर स्टोरेज तैयार करने होंगे।
इसके अलावा, ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर एक महत्त्वपूर्ण साधन है, इसलिए उसके डिजिटलीकरण के साथ-साथ उसे ट्रैक किए जाने की आवश्यकता है। कुछ राज्यों ने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में, 30,000 ऐसे ऑक्सीजन सिलेंडरों का वितरण मेडिकल ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं और अस्पतालों को किया गया, जिन पर रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) टैग लगे हुए थे।
खपत की निगरानी और मांग का पूर्वानुमान
कोरोना महामारी की पुरानी लहरों के अनुभवों से सीखते हुए सरकार, तकनीकी विशेषज्ञों और निजी संस्थानों ने भारत की भविष्य में ऑक्सीजन की मांग का अनुमान लगाने के लिए मिलकर काम किया है। उत्पादन, मांग और भंडारण आवश्यकताओं की गहरी समझ विकसित करने के लिए कई पूर्वानुमान और मॉडलिंग तकनीकों का उपयोग किया गया है।
राज्य अब ऑक्सीजन डिमांड एग्रीगेशन सिस्टम (ओडीएएस) और ऑक्सीजन डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम (ओडीटीएस) जैसी प्रणालियों की मदद से आपूर्ति श्रृंखला के साथ विभिन्न बिंदुओं पर ऑक्सीजन की डिलीवरी को ट्रैक और सुनिश्चित कर सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल कनेक्टिविटी का उपयोग ऑक्सीजन की खपत के पैटर्न को समझने के साथ साथ उसकी मांग के पूर्वानुमान के लिए भी किया जा सकता है, जिससे किसी भी संभावित उछाल के प्रति त्वरित कार्रवाई को संभव बनाया जा सकता है। दिल्ली उन राज्यों में से एक है जो ऑक्सीजन की ढुलाई और आपूर्ति प्रणालियों की दक्षता बढ़ाने के लिए इस तकनीक का उपयोग कर रहा है।
विश्व बैंक से मिलने वाली सहायता
विश्व बैंक समूह ने भारत की कोरोना महामारी से निपटने में अभी तक 300 करोड़ डॉलर की धनराशि प्रदान की है। इसी संदर्भ में बैंक परियोजनाएं राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भारत के साथ मिलकर काम कर रही बैन ताकि देश की ऑक्सीजन आपूर्ति व्यवस्था के अंतराल को पाटा जा सके।
दूसरी लहर के चरम पर, विश्व बैंक समूह ने देश के लिए 29,600 उच्च गुणवत्ता वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स की खरीद और वितरण को गति प्रदान करने के लिए वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर काम किया। बैंक ने ऑक्सीजन आधारित दूसरे सामानों जैसे ऑक्सीजन सिलेंडरों के जुटान में भी भारत की मदद की।
और अंत में, एक गैर सरकारी संगठन 'पथ' के साथ मिलकर बैंक ने चार राज्यों, आंध्र प्रदेश, मेघालय, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल को ऑक्सीजन व्यवथा सुदृढ़ करने और उनकी क्षमता निर्माण करने के लिए उन्हें तकनीकी सहायता प्रदान की। इसके अलावा, बैंक ने केंद्र सरकार की मेडिकल ऑक्सीजन की ढुलाई और परिवहन से जुड़ी प्रमुख समस्याओं पर उसकी मदद की।
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