भारत: पोषण अभियान से गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों का पोषण बेहतर

This page in:
Survey findings show that the services delivered through the POSHAN Abhiyaan were associated with better nutrition practices among pregnant and lactating mothers and their children. सर्वे के नतीजे बताते हैं कि पोषण अभियान के चलते गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने वाली महिलाओं और शिशुओं का पोषण बेहतर हुआ है।

बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले की गर्भवती महिला अमृता कुमारी, याद करते हुए बताती हैं कि किस तरह से कोविड संक्रमण के दौरान भी फ्रंटलाइन वर्कर ने देशव्यापी पोषण अभियान तहत उनकी मदद की थी।

अमृता कुमारी ने बताया, “जब मैं गर्भवती थी, तब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नियमित तौर पर मेरे घर आकर मेरा हाल चाल लेती थी। वह इस दौरान चेकअप की अहमियत के बारे में बताती थी और नियमित तौर पर आयरन एवं फोलिक एसिड की गोलिओं  के अलावा पोषण युक्त खाना खाने के लिए कहती थीं। उन्होंने मेरे पोषण के लिए चावल, दाल और सोयाबीन भी दिए थे। मैं गर्भवती थी, इसलिए उन्होंने स्थानीय मेडिकल टीम को भी अलर्ट किया हुआ था ताकि ज़रूरत पड़ने पर उनसे मदद मिल सके।”

अनीता की कहानी उन असंख्य गर्भवती महिलाओं की कहानियों में से एक है जिन तक पोषण अभियान पहुंच रहा है। यह अभियान, गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने वाली महिलाओं औऱ उनके नवजात बच्चों तक उनके सबसे मुश्किल समय में मदद करता है।

इस अभियान को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2018 में लाँच प्रमोचन किया था। इस अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं और दो साल से कम उम्र के नवजात बच्चों पर विशेष ध्यान देकर लंबे समय से चली आ रही एकीकृत बाल विकास योजनाओं (आईसीडीएस) को प्रभावी बनाने की कोशिश की गई। 

 

Services delivered through the POSHAN Abhiyaan lead to improved nutrition behaviour.
पोषण अभियान के ज़रिए दी गई सुविधाओं से लोगों के पोषण संबंधी व्यवहार को बेहतर बनाया गया।

2018 से विश्व बैंक भारत के 11 राज्यों में प्राथमिकता के आधार पर पोषण अभियान की मदद कर रहा है- आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश। 

मार्च और अप्रैल, 2021 में वर्ल्ड बैंक ने इस अभियान की पहुंच, लाभार्थियों तक पोषण संबंधी जानकारी की पहुंच और पोषण संबंधी व्यवहार को बेहतर करने की कोशिशों के बारे में पता लगाने के लिए एक  सर्वेक्षण किया। 

सर्वेक्षण के नतीजे से ज़ाहिर हुआ कि पोषण अभियान के ज़रिए- लाभार्थियों तक संदेश की पहुंच, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की घर तक पहुंच और सामुदायिक आधारित आयोजनों में हिस्सेदारी से पोषण की स्थिति बेहतर हुई है।

 

 

During the pandemic, the anganwadi workers went from house to house to distribute rations (supplementary nutrition) and messages on appropriate nutrition practices.
कोरोना महामारी के दौरान, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर पोषण सामग्री वितरित किए और पोषण संबंधी बातों का ध्यान रखने के बारे में जानकारी दी।

 सर्वेक्षण में यह भी पाया गया:

  • 60 प्रतिशत से अधिक लाभार्थियों ने पोषण संबंधी संदेशों को सुना है। 
  • 80 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने पांच अहम संदेशों को सुना है- गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर आयरन और फोलिक एसिड की के टैबलेट्स गोलियाँ खाना, गर्भावस्था के दौरान विविध खानपान, नवजात शिशु के शुरुआती घंटों में स्तनपान, नवजात शिशु को पहले छह महीने के दौरान स्तनपान कराना, और छह से आठ महीने के बाद नवजात शिशु को स्तनपान के अलावा ठोस आहार देने की शुरुआत। 
  • 56 से 67 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे सबसे पोषक संबंधी व्यवहार को अपना रहे थे। 
  • 81 प्रतिशत लाभार्थी नवजात शिशु का पोषण स्तनपान के ज़रिए कर रहे हैं। 
  • हालांकि छह महीने से 23 महीने के नवजात बच्चों को स्तनपान के अलावा पोषण संबंधी आहार देने पर सबसे कम लोग ध्यान दे रहे हैं और महज 18.9 प्रतिशत बच्चों को यह उपलब्ध हो रहा है।

कुछ अहम नतीजे: 

Frontline anganwadi workers visit homes to advise pregnant women about the importance of ante-natal checkups, regularly taking iron and folic acid tablets and consuming a variety of foods.
अग्रिम स्थान के आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, गर्भवती महिलाओं को घर जाकर उन्हें प्रसव पूर्व जांच की अहमियत के बारे में बताती थीं। इसके अलावा नियमित तौर पर उन्हें आयरन और फोलिक एसिड की गोली मुहैया कराती थीं और विविध तरह के खान पान को लेकर जानकारी देती थीं।

पोषण अभियान से भारत लंबे समय से चली आ रहे पोषण कार्यक्रम को मज़बूती

पोषण अभियान ने पहले के प्रयासों से मिली सीख को शामिल करते हुए बीते 40 साल से चल रही एकीकृत बाल विकास योजनाओं की कमियों को पूरा किया है और पांच नए दृष्टिकोण से इसे मज़बूती दी है:

सबसे पहले तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्मार्टफ़ोन मुहैया कराकर उन्हें पेपर वर्क से छुटकारा दिलाया है। स्मार्टफ़ोन के ज़रिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ज़रूरत के मुताबिक अपने कामों को प्राथामिकता दे सकते हैं, अपने कामों की समीक्षा कर सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर क़दम उठा सकते हैं।

दूसरी अहम बात के तौर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्तनपान कराने वाली मांओं माताओं

और नवजात शिशुओं के पोषण के बारे में जानकारी मुहैया करायी गई है ताकि काउंसलिंग परामर्श करने के लिए उनकी जानकारी और सक्षमता बढ़े. इतना ही नहीं, काम के आधार पर इंसेंटिव प्रोत्साहन दिए जाने की शुरुआत भी हुई है।

कई मीडिया और सार्वजनिक बैठकों के ज़रिए व्यवहारगत परिवर्तन के लिए संवाद किया गया जिससे गर्भावस्था के दौरान और नवजात शिशुओं की देखभाल के दौरान किन बातों का ध्यान रखना है, इसको लेकर जागरूकता बढ़ाई गई है। सामुदायिक स्तर पर भी गर्भवती महिलाओं औऱ नवजात शिशुओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सक्रिय कोशिशें हुई हैं।

चुनौतियों के कई क्षेत्रों में होने के चलते, विभिन्न अहम विभागों, जैसे कि स्वास्थ्य एवं जनकल्याण विभाग, जल एवं स्वच्छता विभाग और ग्रामीण विकास विभाग, के बीच आपसी संयोजन को बढ़ावा दिया गया है।

यह कार्यक्रम भारत सरकार के कार्यक्रम - पोषण 2.0 के अगले चरण के लिए सीख प्रदान करता है। भविष्य में, सेवा वितरण को मजबूत करने, गर्भवती माताओं के बीच उचित पूरक आहार और पोषण के तौर तरीक़ों में सुधार करने और किशोर लड़कियों के पोषण और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी।

 


Authors

दीपिका चौधरी

हेल्थ, न्यूट्रीशिएन एंड पॉपुलेशन की सीनियर स्पेशलिस्ट

क्रिस एंडरसन

युवा प्रोफेशनल

राहुल पाण्डेय

सीनियर ऑपरेशंस ऑफ़िसर

दीपाली हरिप्रसाद

कंसल्टेंट, न्यूट्रीशिएन

मोहिनी काक

सीनियर हेल्थ स्पेशलिस्ट

Join the Conversation

The content of this field is kept private and will not be shown publicly
Remaining characters: 1000