"मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी, जब मैंने उनसे स्कूल जाते समय सड़क और बस में होने वाली छेड़छाड़ के बारे में शिकायत की| वे मुझे स्कूल ले जाने के लिए हर रोज़ किसी पुरुष सदस्य को नहीं भेज सकते थे|"
"रात में बस पकड़ना असुरक्षित है क्योंकि बस स्टॉप पर देर तक इंतज़ार करना पड़ता है| घर वापिस लौटते समय मुझे डर और ख़तरे का एहसास होता है क्योंकि सड़कों पर अंधेरा होता है और बहुत कम औरतें आती-जाती दिखाई पड़ती हैं|"
"जब मेरे कार्यस्थल की जगह परिवर्तित हुई, तो मुझे बस से नई जगह जाना पड़ता था| मैंने नौकरी छोड़ दी क्योंकि मुझे कई घंटों तक इंतज़ार करना पड़ता था और बस में काफ़ी भीड़भाड़ होती थी|"
ऊपर लिखे वाकयों समेत आपको ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे, जहां औरतें शिक्षा, रोजगार या फिर शहरी जीवनशैली का लुत्फ़ उठाने से सिर्फ इसलिए वंचित रह जाती हैं क्योंकि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्थाएं उनके लिए सुरक्षित नहीं हैं|
चेन्नई शहर और जेंडर एंड पॉलिसी लैब के साथ काम करते हुए हमने कस्बों और शहरों में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते समय महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने और उनकी यात्रा को सुरक्षित बनाने की दिशा में कुछ ज़रूरी कदम उठाने की कोशिश की| उसके बाद हमने उसका विस्तार करते हुए भारत में सार्वजनिक स्थलों एवं शहरी गतिशीलता को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने के लिए एक टूलकिट का निर्माण किया|
सार्वजनिक परिवहन से जुड़ा लैंगिक पक्ष:
पूरी दुनिया में, महिलाओं और पुरुषों के बीच सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल को लेकर अंतर देखने को मिलता है| भारत में, विशेष रूप से, महिलाएं पुरुषों की तुलना में ऐसे समय में यात्राएं करती हैं, जब भीड़भाड़ कम होती है, उनकी यात्राएं भी सीमित दूरी की होती हैं, अक्सर अपने साथ बच्चों को लेकर चलती हैं और घर के कामों या बच्चों को स्कूल से लाने के लिए कई छोटी यात्राएं करती हैं|
जबकि पुरुष, अक्सर नौकरी या काम पर जाने के लिए यात्राएं करते हैं, अत्यधिक भीड़भाड़ में सफ़र करते हैं और सुबह और शाम के वक्त एक लंबी दूरी की यात्रा करते हैं|
लेकिन परिवहन अधिकारियों ने लंबे समय से व्यस्त समय में आवागमन की अनिवार्यता पर ध्यान दिया है, महिलाओं की यात्रा की जरूरतों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है|
यह अब बदल रहा है| स्थानीय सरकारें और सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण महिलाओं की यात्रा को समान रूप से सुरक्षित, सुविधाजनक और आरामदायक बनाने के प्रति तेजी से जागरूक हो रहे हैं|
क्योंकि महिलाएं अपने कई छोटे-छोटे कामों को निपटाने के लिए कई छोटी-छोटी यात्राएं करती हैं, जिन्हें ‘ट्रिप चेनिंग’ कहा जाता है| वे अपनी दैनिक यात्रा के लिए अधिक भुगतान करती हैं| इसे ही हम 'गुलाबी कर' कहते हैं , जिसका भुगतान महिलाएं शहरी क्षेत्रों में अपने आवागमन को सुगम बनाने के लिए करती हैं| 2019 में दिल्ली में किए गए एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि महिलाओं की यात्राएं पुरुषों की तुलना में औसतन 38 प्रतिशत छोटी होने के बावजूद उन्हें पुरुषों की तुलना में 35 प्रतिशत ज्यादा भुगतान करना पड़ता है|
इसके अलावा एक और मुद्दा ये भी है कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पुरुष यात्रियों की ज़रूरतों के अनुसार तैयार की गई है, जो ऑफ पीक आवर्स (यानी जब यात्रियों की भीड़ कम होती है) के दौरान अनियमित हो जाती है, जबकि उस दौरान ज्यादातर महिला यात्री सफ़र करती हैं| इसका परिणाम ये होता है कि महिलाओं को यातायात के वैकल्पिक साधनों जैसे ऑटोरिक्शा आदि को चुनना पड़ता है जबकि ये साधन अधिक खर्चीले हैं|
हालिया समय में भारत के शहरी क्षेत्रों में किए गए सर्वेक्षण इन आंकड़ों की पुष्टि करते हैं, हालांकि उनके परिणाम महिला-सुरक्षा के चिंताजनक हालात को भी व्यक्त करते हैं| उदाहरण के लिए, 2021 में, एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहनों में यात्रा करने वाली 56 प्रतिशत महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं|
महिलाओं और पुरुषों की यात्राएं किस प्रकार भिन्न हैं?
सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन से जुड़े चार महत्वपूर्ण बिंदु:
जैसे-जैसे नगर अधिकारी, शहरी स्थानीय निकाय और सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरण महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को अधिक सुलभ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वैसे-वैसे एक बात जो स्पष्ट रूप से सामने आई है, वर्तमान में यातायात साधनों और सेवाओं से जुड़े लैंगिक अंतराल का ज़मीनी स्तर पर आकलन करना होगा| आंकड़ा आधारित इस दृष्टिकोण में चार महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल हैं:
१) सबसे पहले तो, गतिशीलता के लिंग आधारित अंतरों को समझना होगा और तीन मुख्य सवालों के जवाब ढूंढ़ने होंगे:
ख) इन चुनावों के पीछे कौन से प्रमुख कारक हैं: सुरक्षा, विशेष स्थानों पर भीड़भाड़, यातायात की दरें या लागत वहन करने की क्षमता, यात्रा के पहले और आखिरी पड़ाव के बीच जुड़ाव यानी कनेक्टिविटी से जुड़े मुद्दे, यात्रा के प्रयोजन से जुड़ी भिन्नताएं या अन्य दूसरी चिंताएं?
महिलाओं, पुरुषों एवं अन्य जेंडर के लोगों से जुड़े आंकड़ों को नियमित रूप से एकत्रित करना और उनका विश्लेषण करना ताकि उनकी गतिशीलता से जुड़ी विभिन्न आवश्यकताओं और उनके यात्रा पैटर्न को समझा जा सके और साक्ष्य-आधारित समाधान की खोज की जा सके| इसके अलावा ऐसे लोगों के बीच गुणात्मक सर्वेक्षण की ज़रूरत है, जो यातायात के किन्हीं साधनों के इस्तेमाल से बचते हैं ताकि हम ये समझ सकें कि वे ऐसे कौन व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक कारक हैं जो महिलाओं को यात्राएं करने से रोकते हैं| इसे लेकर हमने संक्षेप में "अनलॉकिंग जेंडर डिफरेंसेस फॉर डिजाइनिंग इनक्लूसिव एंड सेफ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम्स (समावेशी और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के निर्माण से जुड़े लैंगिक अंतरालों को समझना)" में दिशानिर्देश जारी किए हैं|
२) दूसरा, लोगों के बीच सर्वेक्षण के ज़रिए सार्वजनिक परिवहन और सार्वजनिक स्थलों से जुड़ी सुरक्षा चिंताओं को समझना होगा, जिसमें सार्वजनिक परिवहन के उपयोगकर्ता और गैर उपयोगकर्ताओं, दोनों को शामिल करने की ज़रूरत है| इस सर्वेक्षण के माध्यम से हमें यौन उत्पीड़न की घटनाओं और उसकी कम रिपोर्टिंग के कारणों का पता चल सकेगा| सुरक्षा ऑडिट एक ऐसा उपकरण है, जो सार्वजनिक स्थलों/परिवहन साधनों से जुड़े ख़तरों के संदर्भ में प्रतिभागी महिलाओं की धारणाओं का लेखाजोखा जमा करता है, जिसके माध्यम से हम अवसंरचना की रूपरेखा और सार्वजनिक स्थलों के उपयोग से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटा सकते हैं|
दिल्ली राज्य ने 2015 से, सुरक्षा ऑडिट के प्रभावी इस्तेमाल के जरिए से महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने का प्रयास किया है| सेफ्टीपिन जैसे एक सामुदायिक संगठन ने नियमित अंतराल पर पूरे शहर से आंकड़े इकट्ठा किए और कुल 25,294 सुरक्षा अंकेक्षण किए ताकि यह पता लगाया जा सके कि बुनियादी ढांचे से जुड़े ऐसे कौन से कारक हैं जिसके कारण फुटपाथ, बस स्टॉप, मेट्रो स्टेशन और यात्रा के अंतिम पड़ाव और उसके साथ ही साथ पार्क, शौचालय और बाज़ार जैसे सार्वजनिक स्थल असुरक्षित करार किए जाते हैं| सड़कों पर रोशनी की कमी एक प्रमुख कारक के रूप चिन्हित की गई और, 2016 से 2019 के बीच, शहर में अंधेरे कोनों की संख्या लगभग 7,500 से घटकर 2,700 हो गई|
हमने इस संबंध में 'फ्रॉम ऑडिट्स टू एक्शन: मेकिंग पब्लिक ट्रांसपोर्ट एंड अर्बन स्पेसेस सेफर फॉर वूमेन (अंकेक्षण से कार्रवाई तक: सार्वजनिक परिवहन और शहरी स्थानों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना)' के रूप एक टूलकिट तैयार किया है, जो नीति निर्माताओं को सुरक्षा ऑडिट और महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के अन्य उपायों पर और अधिक जानकारी प्रदान करता है|
३) तीसरा, नीतियों, नियमों, दिशानिर्देशों और कानूनी ढांचों में मौजूद लैंगिक अंतरालों की पहचान करना| 2021 में चेन्नई शहर की परिवहन नीतियों और विनियमों का लैंगिक अंतराल विश्लेषण किया गया, जिससे पता चलता है कि राज्य के प्रमुख कानूनों और नियमों जैसे तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 1998; तमिलनाडु नगर एवं देश योजनाअधिनियम (TNCP एक्ट) (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट) , 1971; और तमिलनाडु मोटर परिवहन श्रमिक नियम (मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स रूल्स), 1965 आदि में संशोधन के माध्यम से महिला यात्रियों के साथ-साथ परिवहन क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है|
४) चौथा, और आखिरी महत्त्वपूर्ण बिंदु: लैंगिक संवेदनशीलता के आधार पर तैयार किए गए कार्यक्रमों को लागू करने की सांस्थानिक क्षमता से जुड़ी कमियों का आकलन करना| इसमें जेंडर मेनस्ट्रीमिंग (यानी सार्वजनिक कार्यक्रमों, कानूनों एवं नीतियों के विभिन्न जेंडरों पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करना) के लिए ज़रूरी तकनीकी कौशल की कमी और किसी प्रकार के पूर्वाग्रहों की मौजूदगी का पता लगाना और साथ ही साथ नीतिगत कार्यान्वयन से जुड़े संस्थानों में कार्यरत लोगों में महिलाओं एवं अल्पसंख्यक जेंडरों के व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व का आकलन शामिल है|
'इनेबलिंग जेंडर रिस्पॉन्सिव अर्बन मोबिलिटी एंड पब्लिक स्पेसेस इन इंडिया (सार्वजनिक स्थलों और शहरी गतिशीलता को जेंडर के आधार पर संवेदनशील बनाना)' पर विश्व बैंक की टूलकिट राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू किए जा रही योजनाओं (अभ्यासों) के विश्लेषण पर आधारित है| इसमें विभिन्न नमूनों, वास्तविक उदाहरणों (केस स्टडी) और कार्यान्वयन के अलग-अलग चरणों को शामिल करके विस्तृत दिशानिर्देशों का एक दस्तावेज तैयार किया गया है, जिसके माध्यम से हम वर्तमान में निर्मित की जा रही परिवहन प्रणालियों को सभी के लिए सुरक्षित और सुलभ बना सकते हैं|
सारा नताशा की मदद से इस लेख को तैयार किया गया है|
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