
लगभग तीन दशक पूर्व एक प्रभावशाली आलेख में अमर्त्य सेन ने लिखा कि दस करोड़ से भी अधिक महिलाएं लापता हैं। जीवन-प्रत्याशा के मामले में महिलाओं की हर आयु वर्ग में पुरुषों पर बढ़त के बावजूद दुनिया के अनेक हिस्सों में महिलाओं व पुरुषों का अनुपात पुरुषों के पक्ष में झुका हुआ है। इस विषय
की आवश्यकता पर हाल ही में चर्चा व बहस काफी तेज हो गई है। कोविड-19 महामारी के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में भी काफी बढ़ोतरी देखी गई है (अग्वेरो, 2021; लेस्ली और विल्सन, 2020)। हेल्पलाइनों पर मदद मांगने वालों की संख्या बढ़ी है जबकि विधिक संसाधनों तक पहुंच और मुश्किल हुई है क्योंकि कानूनी तंत्र पहले से ही अत्यधिक बोझ तले दबा हुआ है। फिर भी, हम इन सब चीजों के बीच एक बड़े सवाल की पड़ताल करना चाहते हैं- क्या कानून घरेलू हिंसा की रोकथाम में प्रभावी हैं?
घरेलू हिंसा की वास्तविक कीमत अथाह है, और इसके नतीजे शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप में हैं और इनकी गूंज लंबे समय तक रह सकती है। इन प्रभावों की मात्रा निर्धारित करने के कई प्रयास हुए हैं। एंडरसन और रे (2010) के अनुसार "चोटों" की वजह से बहुतायत महिलाओं की मृत्यु- कुछ हद तक घरेलू हिंसा का परिणाम है- जो कि वर्ष 2000 में भारत में अत्यधिक थी, लगभग
225,000 के बराबर । बेलेचे (2019) ने पाया कि मेक्सिको के विभिन्न प्रांतों में घरेलू हिंसा को कानूनी तौर पर अपराध घोषित करने के कदम को महिलाओं की आत्महत्या की दर में आई खासी कमी से जोड़कर देखा जाता है। घरेलू हिंसा की आर्थिक कीमत 4.4 खरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई है जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का 5.2% है। किसी भी तरह से देखें तो यह अकूत राशि है।
क्या घरेलू हिंसा कानून महिलाओं की सुरक्षा कर सकते हैं? अपने हाल ही में किए अध्ययन में हमने इस सवाल की पड़ताल की। हमने घरेलू हिंसा कानूनों की मौजूदगी और 159 अर्थव्यवस्थाओं में स्त्री-पुरुष मृत्यु दर अनुपात के बीच अंतर्संबंधों का 1990 से 2014 तक के बीच यानी लगभग ढाई दशक के आंकड़ों का अध्ययन किया। इसके लिए हमने घरेलू हिंसा कानूनों पर विश्व बैंक की महिलाएं, कारोबार और कानून (डब्ल्यूबीएल) परियोजना के आंकड़ों की भी सहायता ली। संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा का अनुसरण करते हुए डल्यूबीएल की घरेलू हिंसा की परिभाषा में शारीरिक हिंसा, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक हिंसा, यौन हिंसा, आर्थिक या वित्तीय हिंसा सम्मिलित है। जो भी विधान या कानून घरेलू हिंसा को प्रतिबंधित नहीं करता या उससे सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराता, उसे घरेलू हिंसा कानून के मानदंडों पर खरा उतरने लायक नहीं समझा जाता।
यह आंकड़ा दो महत्वपूर्ण कारणों से सारगर्भित है। पहले, आंकड़ों के नमूनों के विश्लेषण से पता चलता है कि अभी तक, यहां तक कि 1990 में सिर्फ चार देशों में महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा देने के लिए कानून बनाए गए थे। यह आंख खोलने वाला तथ्य है अगर हम देखें कि बहुत से देशों में वहां की संसद 100 साल से ज्यादा समय से कानून बना रही थीं, लेकिन स्पष्टतः
महिलाओं की सुरक्षा का विषय उनकी शीर्ष विधायी प्राथमिकता में नहीं था। दूसरा, जो काफी उत्साहवर्धक है, वो यह कि इस तरह के कानूनों को अपनाने वाले देशों की संख्या बहुत तेजी से बढ़कर 2014 तक 89 तक पहुंच गई। यह कुछ हद तक समकक्षों के दबाव और बड़ी संख्या में राष्ट्रों द्वारा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न समझौतों के अंगीकरण से संभव हुआ है।
घरेलू हिंसा विधान या कानूनों को अपनाने वाले देशों की संख्या
ध्यान दें: सिर्फ अद्ययन देशों के नमूने ही शामिल हैं।
घरेलू हिंसा कानूनों और घरेलू हिंसा के अंतर्संबंधों को सहजता से समझा जा सकता है, लेकिन यहां व्यावहारिक चुनौतियां हैं। जिन महिलाओं के पास बेहतर संसाधन हैं, उनके पास हिंसक संबंधों से बाहर निकल जाने का विकल्प है और इस प्रकार उनके हिंसक साथी को छोड़ देने की संभावना अधिक है। इस अंतर्दृष्टि को आधार बनाते हुए घर के भीतर मोल तोल वाले माडल की यह दलील है कि जिन महिलाओं के पास अपने पुरुष साथियों की तुलना में उत्तम संसाधन हैं, उनके पास "धमकी के उत्तम बिंदु" हैं और जो कि अपने साथी को छोड़कर चले जाने की उनकी धमकियों को विश्वसनीयता प्रदान करता है और मूल रूप में यह कम हिंसा के लिए मोलभाव है। हम मानते हैं कि घरेलू हिंसा कानूनों से महिलाओं की धमकी के बिंदुओं में सुधार होता है और इस प्रकार यह घरेलू हिंसा और पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मृत्यु दर को कम करता है। यद्यपि, यह तभी संभव है जब कानूनों का पालन किया जाए और जहां पर विश्वसनीय सम्यक प्रक्रिया हो और न्यायिक तंत्र सभी की पहुंच हो। हालांकि, कुछ सिद्धांत इसके ठीक विपरीत की ओर संकेत करते हैं, जहां महिलाओं की अधिक स्वायत्तता का अर्थ अधिक घरेलू हिंसा है। उदाहरण के तौर पर, ईश्वरन और मल्होत्रा (2011) क्रमिक विकास के सिद्धांत में पाते हैं कि महिलाओं की वृहत्तर स्वायत्तता "पितृत्व अनिश्चितता" की ओर ले जाती है जो पुरुष साथी में असुरक्षा और ईर्ष्या पैदा करती है और जिसका प्रत्युत्तर हिंसा के रूप में सामने आता है। फिर भी, अगर हम हिंसक बर्ताव पर एक महंगी कीमत थोप दें तो पुरुष असुरक्षा के कारण महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा घरेलू हिंसा कानूनों के जरिए काफी कम की जा सकती है।
हमने पाया कि घरेलू हिंसा कानून कारगर और प्रभावी हैं। सबसे रूढ़िवादी आधाररेखा अनुमानों के अनुसार भी, घरेलू हिंसा कानूनों को पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मृत्यु दर में इसके मध्यमान के हिसाब से 2.27 फीसद की गिरावट से जोड़कर देखा जाता है। इसका अर्थ है कि लाखों महिलाओं का जीवन बच गया। हम जिस प्रमुख चुनौती का सामना करते हैं, वह है घरेलू हिंसा के आंकड़ों का अभाव। सूचनाएं शायद ही संग्रहित की जाती हैं और जब की भी जाती हैं तो भी इसमें अत्यधिक कम सूचना दी जाती है यानी ज्यादातर मामले छोड़ दिए जाते हैं। हमने अपने निष्कर्षों में पूरक के तौर पर अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के डब्ल्यूएचओ के 73 देशों के 2000 से 2014 तक के बीच इन देशों के सिर्फ एक साल के आंकड़ों का अध्ययन किया। इनकी पड़ताल ने हमारे इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि घरेलू हिंसा कानून का अंतरंग साथी द्वारा घरेलू हिंसा में कमी से सीधा संबंध है।
सीमित आंकड़ों के मद्देनजर क्षेत्रपार आंकड़ों का पता लगाना चुनौतीपूर्ण है। हमारे अनुमानों में बहुत सारी चीजें हमारे नियंत्रण में हैं जिसमें विकास का स्तर, आर्थिक विकास, श्रम क्षेत्र में महिलाओं व पुरुषों की सहभागिता का अनुपात, और शैक्षणिक उपलब्धियां, स्वास्थ्य के लिए मुख्तारी और साथ ही साथ प्रजनन दर। हमने लेखे जोखे में संस्थानों की गुणवत्ता, महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण, भेदभावपूर्ण कानूनों और नागरिक संघर्षों का भी हिसाब रखा है। हमने इस संभावना का भी ध्यान रखा है कि भविष्य में किसी समय कानूनों पर अमल से आगे क्या असर होगा। आखिर में, हमने लैंगिक हिंसा पर विभिन्न समझौतों की भूमिका का विश्लेषण किया जैसे कि बेलेम डो पारा और इस्तंबूल कन्वेंशन ऑफ काउंसिल ऑफ यूरोप के अनुसमर्थन के विधायी सुधार और जिससे हमारे अनुमानों में सुधार हुआ (अर्थशास्त्री इसे तकनीकी रूप से साधनभूत चर के रूप में जानते हैं)। दूसरे शब्दों में कहें तो हमने इन अपूर्ण आंकड़ों को आखिरी सीमा तक विश्लेषित किया और सबसे मुख्य बिंदु तक पहुंचे- वो यह कि घरेलू हिंसा कानून तमाम विविध संदर्भों में प्रभावी हैं।
दुनिया की आबादी में महिलाओं का हिस्सा आधा है। वे कानून और संस्थाएं जो महिलाओं की स्थिति में सुधार कर सकती हैं, उन पर तत्काल विशेष ध्यान और प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। हमारा शोध यह संकेत करता है कि घरेलू हिंसा कानूनों की मौजूदगी ने शायद बहुत सी महिलाओं का जीवन बचाया है- जिस अवधि का हमारा विश्लेषण है, उस दौरान शायद लाखोंलाख। यह अपने आप में एक स्वागत योग्य उपलब्धि है जिसके साथ आर्थिक लाभ भी जुड़े हैं। निश्चित रूप से घरेलू हिंसा कानून अपने आप में एक समग्र कहानी नहीं है और इसे महिलाओं की बेहतरी के लिए किए जा रहे तमाम प्रयासों में से एक के रूप में देखा जाना चाहिए। आगे चलकर वे कानून जो अवांछित व्यवहार को रोकते हैं और सकारात्मक परिणामों को सुदृढ़ करते हैं, सामाजिक मानकों में बदलाव लाते हैं और इस प्रकार, ये जीवन बचाने की समग्र रणनीति का एक महत्वपूर्ण अंग हैं।
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